Human compositing: अब तक आपने खाद बनाने के कई तरीके सुने होंगे.लेकिन अब आपको जो हम बतानें जा रहे हैं, शायद कम ही लोग इसके बारें में सुना होगा. दरअसल शव के खाद बनाने का काम दुनिया के कुछ देशों में शुरू हो रहा है. इस प्रक्रिया को नाम दिया गया है ह्यूमन कम्पोजिटिंग, आखिर क्या है ह्यूमन कम्पोजिटिंग? दुनिया को क्यों इसकी जरूरत पड़ी.


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क्या पर्यावरण को देखतें हुए शव से जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया पर शोध किया जा रहा है. या फिर ये कहें कि ये एक शुरूआत है इको फ्रैंडली अंतिम संस्कार की. जो भी हो पर इसकी पूरी कहानी काफी दिलचस्प है.


आपकों बता दें कि दुनिया के कुछ देशों में मुर्दों से खाद बनानें की प्रक्रिया जोर पकड़ रही है.  अब ऐसे में सबके जहन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर इंसानी शव से खाद बनाने में कितना समय लगेगा. कितने दिनों में यह प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी.


पर्यावरण के लिए काम करने वाली एक संस्था की मानें तो इंसानों के शव दाह से वायुमंडल में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती है. साथ ही अन्य विषाणु और जीवाणु जनित बीमारियों के फैलने की संभावना भी बढ़ जाती है. इस लिए अब दुनिया इस तरह के प्रयोगों को तलाश रही है. 


दरअसल ह्यूमन कम्पोजिटिंग में इंसानी शव को सूक्ष्मजीवी विघटित करके छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित कर देते हैं. जिससे शरीर नेचुरल तरीके से 30 दिन में जैविक खाद के रूप में बदल जाता है. इस प्रक्रिया को इको फ्रैंडली मना जा रहा है.  जिसमें शव को एक चैंबर में रखा जाता है. उसमें लकड़ी के चिप्‍स, पुआल और जैविक मिश्रण डाला जाता है. जैविक मिश्रण में मौजूद सूक्ष्‍मजीव शरीर को खत्‍म कर देते हैं. 


आपको बता दें कि 2019 में वाशिंगटन ह्यूमन कंपोस्टिंग को मंज़ूरी दे दिया है. इसके बाद से यह पहला अमेरिकी राज्‍य बन गया है जो ह्यूमन कंपोस्टिंग को मान्यता दी है. इसके बाद कैलिफोर्निया, कोलोराडो, ओरेगन, वर्मोंट और न्यूयॉर्क में इसकी शुरुआत हुई. लेकिन 30 दिन बाद भी इंसानी शव से खाद बनने के बाद भी संक्रमण फैलने के खतरे से गुरेज नहीं किया जा सकता है.


भारत जैसे देश में जैविक खाद निर्माण की यह प्रक्रिया पर लोग क्या सोचेंगे. इसको अपनाने पर विचार करेंगे की नहीं ये बड़ा सवाल है. क्योंकि यहां विभिन्न धर्म जाति, संप्रदाय के लोग रहते हैं. प्राय: यहां लोग अपने-अपने धर्म शास्त्र के अनुसार ही अंतिम संस्कार करते है.