UCC की खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ठोकी ताल, मुसलमानों से की ये अपील
Uniform Civil Code : देश में यूनिफॉर्म सिविल कॉड को लागू करने को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है. इस पर जमकर सियासत भी हो रही है. इसी बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से UCC पर आपत्ति जताई गई है.
Uniform Civil Code : देश में यूनिफॉर्म सिविल कॉड को लागू करने को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है. इस पर जमकर सियासत भी हो रही है. इसी बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से UCC पर आपत्ति जताई गई है. इसे लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड की ओर से समाज के लोगों से एक अपील भी की गई है.
AIMPLB की अपील में कहा गया है कि आप सबको पता होगा कि हमारे देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने का माहौल बनाया जा रहा है और अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों के इस देश को समान नागरिक संहिता के माध्यम से धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर चोट पहुंचाई जा रही है. इस संबंध में भारत के विधि आयोग ने देश के शहरों से समान नागरिक संहिता के बारे में राय मांगी है. हमें इस संबंध में बड़े पैमाने पर उत्तर देना चाहिए. समान नागरिक संहिता का विरोध करना चाहिए. इसी संबंध में एक लिंक भी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से जारी किया गया. जिसमें क्लिक करके विधि आयोग को इसका विरोध करते हुए जवाब देने की अपील की गई है.
दरअसल ऑल इंडिया पर्सनल मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बयान जारी करने से पहले एक बैठक हुई. इस साधारण बैठक में यूनिफॉर्म सिविल कॉड को लेकर चर्चा की गई और इसके विरोध का फैसला लिया गया.
इस मसले पर बोर्ड का कहना है कि भारत एक बहुलतावादी सिद्धांतों, व्यापक विविधता और बहुसांस्कृतिक प्रकृति का देश है ऐसे में यहां विभिन्न समुदायों के विविध पर्सनल लॉ लागू है, जो कि भारत के संविधान में वर्णित धार्मिक सांस्कृतिक अधिकारों के तहत संरक्षित है. बोर्ड की ओर से कहा गया कि भारत का संविधान अपने आप में समानता पूर्ण नहीं है और इसमें विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग सामंजस्य किए गए हैं. विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग आचरण तय किए गए हैं और विभिन्न समुदायों को उनसे संबंधित विभिन्न अधिकार भी दिए गए हैं.
संविधान सभा में समान नागरिक संहिता को लेकर 1949 में हुई चर्चा का भी उल्लेख करते हुए बोर्ड की ओर से कहा गया है कि संविधान सभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है इसका जवाब भले ही आसान लगता हो लेकिन यह जटिलताओं से भरा हुआ है. संविधान सभा में जब इसकी चर्चा हुई थी तब यह जटिलताएं उभर कर सामने आई थी और मुस्लिम समुदाय ने इसका पुरजोर विरोध भी किया था. उस वक्त डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के स्पष्टीकरण के बाद यह विवाद खत्म हुआ था. इस मसले पर डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था कि यह बिल्कुल संभव है कि भविष्य की संसद एक ऐसा प्रावधान कर सकती है कि संहिता उन्हीं लोगों पर लागू हो जो इसके लिए तैयार होने की घोषणा करें. इसलिए संहिता को लागू करने की शुरुआती स्थिति पूरी तरह से स्वैच्छिक होगी.
कुल मिलाकर समान नागरिक संहिता पर आगामी दिनों में विवाद और बढ़ता दिखाई दे सकता है. जहां केंद्र सरकार आगामी मानसून सत्र में इसका खाका तैयार कर पेश कर सकती है. तो वहीं विपक्षी पार्टियां और मुस्लिम समुदाय की ओर से इस पर विरोध जताया जा रहा है.