Ashok gehlot News : अशोक गहलोत राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री बने है. पहली बार 1998 में मुख्यमंत्री बने तो राजस्थान में ऐसे नेताओं की लंबी कतार थी. जो खुद को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. एक तरफ मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत साल 2001 में आए भीषण अकाल से लेकर राजस्थान के गांव गांव में राजीव गांधी स्वर्ण जयंती स्कूलें खोलकर ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था का ढ़ांचा सुधारने समेत तमाम प्रशासनिक सुधारों में लगे थे. तो वहीं दूसरी कतार के नेता दिल्ली से लेकर जयपुर तक उनको मुख्यमंत्री पद से हटाने की साजिशें रचने में व्यस्त थे. ऐसे ही एक वाकये में बीडी कल्ला को मुख्यमंत्री बनाने की कुछ नेताओं ने तैयारी की थी. लेकिन कामयाब नहीं हो पाए


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अशोक गहलोत जब पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने तो परसराम मदेरणा, शिव चरण माथुर, नवल किशोर शर्मा, जगन्नाथ पहाड़िया जैसे कई नेता थे जो मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में शामिल थे. तो वहीं गुलाब सिंह शक्तावत, खेतसिंह राठौड़, रामसिंह विश्नोई, चौ. नारायण सिंह, भंवरलाल शर्मा (सरदारशहर), नरेन्द्र सिंह भाटी, माधोसिंह दीवान, बनवारी बैरवा, भीखा भाई, किसन मोटवानी, चन्दनमल वैद, कमला जर्नादन सिंह गहलोत, चौ. रामनारायण, जकिया, वृद्धि चन्द जैन, भगराज चौधरी, गोविन्दसिंह गुर्जर, तकिउ दीन शाह, पंड़ित जयदेव प्रसाद इन्दोरिया, हरिसिंह कुम्हेर, तैयब हुसैन, इन्दिरा मायाराम, बनवारी लाल शर्मा जैसे कई नेता जो खुद को मंत्री बनाने और बड़े मंत्रालय संभालने के सपने संयोए हुए थे.


इस चुनौती से निपटने के लिए अशोक गहलोत ने सबसे पहले ये फैसला लिया कि पहली बार चुनाव जीतकर आए विधायकों को मंत्री नहीं बनाया जाएगा. इस फैसले का फायदा ये हुआ कि उस चुनाव में अशोक गहलोत ने पीसीसी चीफ रहते हुए ज्यादातर युवा नेताओं को, नई पीढ़ी के नेताओं को टिकट दिया था. वो सभी विधायक मंत्री बनने की दौड़ से बाहर हो गए. लेकिन दूसरी चुनौती ये थी किस मंत्री को पहले शपथ दिलाई जाए और किसे बाद में. क्योंकि जिसे क्रम में पहले शपथ दिलाई जाती थी उसे वरिष्ठ माना जाता था. अशोक गहलोत ने इसका रास्ता निकालते हुए तय किया कि ए.बी.सी.डी. के अनुसार मंत्रियों के नाम पुकारें जाएंगे. इससे सीनियर जूनियर का मुद्दा खत्म हो गया. 


गिरीजा व्यास को बनाया था प्रदेशाध्यक्ष


अशोक गहलोत जब मुख्यमंत्री बने. तब वो कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के साथ साथ सांसद भी थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद दोनों पदों से इस्तीफा दिया. उपचुनाव के लिए मानसिंह देवड़ा ने सरदारपुरा सीट खाली की. जहां से वो चुनाव लड़कर विधायक बने. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर आलाकमान ने गिरीजा व्यास पर भरोसा जताया. लेकिन बताया जाता है कि गिरीजा व्यास भी प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद उन नेताओं में शामिल हो गई जो मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए हुए थे. गिरीजा व्यास का नाम उन जाट नेताओं ने भी आगे बढ़ाया जो ये जान चुके थे. कि अशोक गहलोत के रहते उनका मुख्यमंत्री बनना मुश्किल है.


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PCC दफ्तर में गहलोत को घंटों तक बिठाया


गिरीजा व्यास ने पीसीसी चीफ बनने के बाद संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत करने और प्रदेश में संदेश देने के लिए पीसीसी कार्यालय में जनसुनवाई शुरु की. इसमें सरकार के मुखिया के तौर पर मुख्यमंत्री को भी बिठाया जाता था. कई बार 12-12 घंटे तक जनसुनवाई चलती और उसमें मुख्यमंत्री को बिठाए रखा जाता. गिरीजा व्यास के इस हस्तक्षेप से मंत्रिमंडल के सदस्यों में भी असंतोष पनपने लगा. इसकी सूचना दिल्ली पहुंची. तो आलाकमान ने गिरीजा व्यास को हटाने की तैयारी शुरु की. दरअसल उस समय राजस्थान में 200 में से 153 सीटें कांग्रेस ने जीती थी. चुनाव के समय पीसीसी चीफ होने के नाते इसका क्रेडिट अशोक गहलोत को ही जाता था. लिहाजा आलाकमान ने भी राजस्थान में अशोक गहलोत को फ्री हैंड दे रखा था.


बीडी कल्ला को मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी


जब राजस्थान में अशोक गहलोत विरोधी खेमे को ये लगा कि गिरीजा व्यास को पीसीसी चीफ पद से हटाया जा सकता है. तो पंडित नवल किशोर अपने साथ मोतीलाल बोहरा को लेकर सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे. राज्य में सत्ता और संगठन के टकराव को कम कर राज्य में शांति स्थापित करने के लिए सोनिया गांधी के सामने ये प्रस्ताव रखा गया. कि राजस्थान में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों बदल दिए जाएं. जाट और ब्राह्मण की जोड़ी का फॉर्मूला दिया गया. कहा गया कि चूंकि चुनाव में जाट मतदाताओं ने कांग्रेस का भरपूर साथ दिया है. लिहाजा जाट चेहरे के तौर पर हरेंद्र मिर्धा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए. और ब्राह्मण चेहरे के तौर पर बीडी कल्ला को मुख्यमंत्री बनाया जाए. हालांकि आलाकमान ने ये प्रस्ताव ठुकराते हुए अशोक गहलोत पर ही भरोसा जताया. हालांकि गिरीजा व्यास का हटना जरुर रुक गया. हालांकि बाद में 2003 के चुनावों में हार के बाद गिरीजा व्यास को प्रदेशा अध्यक्ष पद से हटाया गया. बाद में 2005 में बीडी कल्ला भी प्रदेशाध्क्ष बने थे जो करीब सवा दो साल तक पीसीसी चीफ रहे थे.