Jaipur, जयपुर : राजस्थान में गहलोत सरकार ने हाल ही में ज्योतिबा फुले बोर्ड का गठन किया है. चुनावी साल से पहले इस बोर्ड के गठन का सीधा असर प्रदेश की 90 सीटों पर दिखाई देगा. माली-सैनी समाज के वोटर्स पर निशाना साधने के लिए सरकार का ये फैसला मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जल्द होगी बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियां
माली-सैनी समाज के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ज्योतिबा फुल बोर्ड का गठन किया है. इस बोर्ड के गठन के राजनीतिक मायने है, क्योंकि सरकार के इस कदम से 80 से 90 सीटों पर सीधा प्रभाव पडेगा. समाज के पुर्नत्थान और संबल प्रदान करने के लिए ज्योतिबा फुल बोर्ड बनाया गया. जल्द ही बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियां दी जाएगी. बोर्ड में योजनाओं को लेकर माली समाज के संगठन समाज से सुझाव मांग रहा है.


पूर्वी राजस्थान के 17 जिलों में माली बाहुल्य क्षेत्र
पूर्वी राजस्थान में माली बाहुल्य क्षेत्र है, जिसमें 17 जिलों की 90 सीटे सीधे तौर पर प्रभावित होगी. जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, धौलपुर, कोटा, बूंदी, टोंक, बांरा, सीकर, झुंझुनू, बीकानेर, अजमेर, जोधपुर, पाली जिले में मालियों की संख्या ज्यादा है. पूरे प्रदेश की बात करें तो करीब 70 लाख मालियों के वोटर्स है. 


10 सीटो पर 50 से 80 हजार, 60 सीटों पर 20 से 40 हजार, 25 सीटों पर 10 से 20 हजार वोटर्स है. जाहिर है कि कांग्रेस सरकार के इस फैसले से माली वोटर्स पर लुभाने की कोशिश है, क्योंकि माना ये जाता है कि अधिकतर वोटर्स का झुकाव ज्यादातर बीजेपी की तरफ है. हालांकि माली समाज अभी भी आरक्षण को लेकर लड़ाई लड़ रहा है. समाज की मांग है कि ओबीसी में समाज का आरक्षण का कोटा बढ़ाया जाए.


आर्थिक,सामाजिक,राजनीतिक रूप से सक्षम
सरकार के बोर्ड के गठन के बाद में माली-सैनी समाज को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से संबल प्रदान होगा. सरकार द्धारा छात्रावास, छात्रवृत्ति, लेपटॉप, स्कूटी योजनाओं का लाभ मिल पाएगा. इसके साथ साथ राजनीतिक रूप से भी माली समाज का वजूद भी बढ़ेगा.