Ashok gehlot and Sachin Pilot : राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट आमने सामने है. कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के बीच राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चाओं ने एक बार फिर दोनों को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया है. इस बार तो सचिन पायलट को रोकने के लिए अशोक गहलोत गुट आलाकमान से ही टकरा गया है. लेकिन ऐसा नहीं है कि उनके बीच ये अदावत 2018 चुनावों के बाद ही शुरु हुई है. अशोक गहलोत और पायलट परिवार के बीच अदावत का लंबा इतिहास है.


अशोक गहलोत और राजेश पायलट


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अशोक गहलोत और सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट ( Rajesh Pilot ) का राजनीतिक क्षेत्र राजस्थान ही था. दोनों का सियासी करियर भी एक साथ ही शुरु हुआ. अशोक गहलोत 1977 में जोधपुर ( Jodhpur ) की सरदारपुरा विधानसभा सीट से अपना पहला चुनाव हार गए. और 1980 के लोकसभा चुनावों में जोधपुर सीट से जीतकर सियासी करियर को उड़ान दी. तो राजेश पायलट भी नौकरी छोड़कर राजस्थान के भरतपुर ( Bharatpur ) सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. दोनों का संसदीय करियर एक साथ शुरु हुआ.


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अशोक गहलोत जोधपुर से जीतकर संसद पहुंचे. गांधी परिवार से करीबियां बढ़ रही थी. तो इधर राजेश पायलट गांधी परिवार के चहेते पहले से बन चुके थे. ऐसे में राजस्थान के सियासी रण से दोनों की महत्वकांक्षाओं और उसे हासिल करने की प्रतिस्पर्द्धा होना स्वभाविक है.



अशोक गहलोत सांसद के साथ पीसीसी चीफ की जिम्मेदारी भी कई बार संभाल चुके थे. साथ में कई बार केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे. तो उधर राजेश पायलट भी देश की राजनीति में चर्चित चेहरे बनते जा रहे थे. किसान नेता के तौर पर राजेश पायलट की पहचान स्थापित हो रही थी. 


राजेश पायलट ने अशोक गहलोत को कहा था "बेचारा"


दोनों नेता गांधी परिवार के करीबी थे. लेकिन आपस में दोनों के रिश्ते मधुर नहीं थे. गुटबाजी और कड़वाहट हमेशा चलती रही. ये गुटबाजी 1993 में खुलकर सामने आई. जगह अशोक गहलोत का गृहक्षेत्र जोधपुर थी. राजेश पायलट नरसिम्हा राव सरकार के में संचार मंत्री थे. अशोक गहलोत उस समय जोधपुर से सांसद थे. जोधपुर में मुख्य डाकघर भवन का उद्घाटन होना था. लेकिन अशोक गहलोत को इस कार्यक्रम का न्यौता नहीं दिया गया था. जब कार्यक्रम शुरु हुआ तो समर्थकों ने वहीं पर पूछ लिया कि जोधपुर के सांसद अशोक गहलोत कहां है.



राजेश पायलट का जवाब सुनकर हर कोई हैरान था. राजेश पायलट ने कहा, यहीं कहीं होंगे बेचारे गहलोत. 


1998 का खेल भी जीते गहलोत


नरसिम्हा राव सरकार में अशोक गहलोत भी मंत्री बने थे. लेकिन बाद में चंद्रास्वामी से अदावत के चलते 1993 में अशोक गहलोत को मंत्री पद गंवाना पड़ा था . इसके बाद 1998 के विधानसभा चुनाव हुए. तो राजस्थान में कांग्रेस 153 सीटें जीतकर सत्ता में आई. मुख्यमंत्री के नाम पर अशोक गहलोत आलाकमान की पसंद बने. लेकिन अशोक गहलोत उस समय जोधपुर से सांसद और पीसीसी चीफ थे. वो विधायक नहीं थे. आलाकमान उनको फिर भी मुख्यमंत्री बनाना चाहता था. इसे रोकने के लिए शिव चरण माथुर से लेकर परसराम मदेरणा जैसे कई सीएम पद के दावेदारों को आगे किया गया. राजेश पायलट ने उस समय कांग्रेस के भीतर अशोक गहलोत विरोधी गुट का साथ दिया था. लेकिन फिर भी अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे थे.


राजेश पायलट के बाद सचिन पायलट


राजेश पायलट के बाद सचिन पायलट की अशोक गहलोत से अदावत हमेशा चलती रही. 2013 तक सचिन पायलट सांसद और केंद्रीय मंत्री होने के नाते दिल्ली की राजनीति करते रहे. 2013 के चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद जनवरी 2014 में सचिन पायलट को राहुल गांधी की पसंद के तौर पर राजस्थान भेजा गया. सचिन पायलट के पीसीसी चीफ बनने के बाद राजस्थान कांग्रेस संगठन में अशोक गहलोत का दखल काफी कम हो गया. 2017 गुजरात चुनाव से पहले का समय अशोक गहलोत के लिए राजनीतिक सन्यास जैसा था. 


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2017 के गुजरात प्रभारी रहते कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन से अशोक गहलोत की दिल्ली में दखल बढ़ी. बाद में संगठन महासचिव जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई. राजस्थान में 2018 के अंत में विधानसभा चुनाव हुए. पीसीसी चीफ और राहुल गांधी की पसंद होने के नाते सचिन पायलट की मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार माने जा रहे थे. लेकिन आखिरी पलों में अशोक गहलोत बाजी मार गए.


बगावत में भी सचिन पायलट पर जादू हावी


सचिन पायलट गुट ने अशोक गहलोत के खिलाफ 2020 में बगावत की थी. लेकिन करीब 35 दिन तक विधायकों की बाड़ेबंदी के बाद अशोक गहलोत ही उस बाजी को जीतने में कामयाब रहे. यहां तक कि सचिन पायलट को पीसीसी चीफ और डिप्टी सीएम का पद गंवाना पड़ा था.


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आखिरी बाजी भी हारते दिख रहे सचिन पायलट


राजस्थान में 25 सितंबर को जो घटनाक्रम हुआ. उसके पीछे बताया जा रहा है कि आलाकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला ले चुका था. और अशोक गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा रहा था. लेकिन आखिरी वक्त में जादूगर ने खुद को सारे खेल से अलग दिखाते हुए भी सचिन पायलट और उनके गुट के इरादों पर पानी फेर दिया. अब भी हालात जिस दिशा में जाते दिख रहे है. उससे ऐसा लग रहा है कि सचिन पायलट के राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने के सपने पर फिर कुछ समय के लिए ग्रहण लग सकता है.