Real Story of Nandi Bholenath Vahan: भगवान शिव को तीनों लोकों का स्वामी कहा जाता है और पूरी सृष्टि उन्हीं में समाहित है.अगर शिव नहीं हों तो सृष्टि शव के समान है. शिव प्राण देते हैं, जीवन देते हैं और संहार भी करते हैं. लेकिन भक्तों के मन में सवाल उठता है कि आखिर नंदी को ही अपना वाहन क्यों चुना ? कैसे दुनिया के पावरफुल देवों के देव महादेव को जिन्हें भारतीय संस्कृति में संहारकर्ता माना गया है वो इतने शांत रहने वाले नंदी को ही अपना वाहन क्यों बनाया. 


नंदी का स्वभाव भी शिव के तरह 


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भगवान शिव के बारे में कहा गया है कि वो बेहद आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन उनके क्रोध के बारे में पूरी दुनिया परिचित है. कहा गया जैसे शिव भोलेभाले वाले देवता है वैसे ही उनका वाहन नंदी है. बैल का स्वभाव भी शिव के तरह है. बैल की शक्ति और ताकत का आप अंदाजा नहीं लगा सकते. बैल में जितनी आस्था और भरोसा देखा जाता है उसका गुस्सा भी उतना ही भयावह है. जैसे भगवान शिव को चरित्र मोह माया और भौतिक इच्छाओं से परे रहने वाला बताया गया है उसी प्रकार बैल यानी नंदी शिव के विशेषताओं को पूरी तरह चरितार्थ करते हैं. इसलिए शिव का वाहन नंदी हैं. 


ब्रह्मचारी शिलाद ऋषि के पुत्र कैसे बने नंदी


पौराणिक कथाओं के अनुसार नंदी असल में शिलाद ऋषि के पुत्र थे और शिलाद ऋषि ब्रह्मचारी थे. अब इनकी इच्छा थी बंश बढ़ाने की. इसके लिए शिलाद ऋषि एक बच्चा गोद लेने का मन बनाया. अब मन तो बना लिया, लेकिन दुविधा यह थी कि ऋषि ऐसे बालक को गोद लेना चाहते थे, जिस पर भगवान शिव की असीम कृपा हो. अब इतनी बड़ी इच्छा के लिए ऋषि ने घोर तपस्या में लीन हो गए.


भगवान शिव ने शिलाद को पुत्र पाने का वरदान दिया


काफी कठोर और लंबी तप के  बाद आखिर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने ऋषि शिलाद को  साक्षात दर्शन दिए और बोले मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं. भगवान शिव ने शिलाद ऋषि से कहा, “मांगो, क्या वर मांगना चाहते हो.” ऋषि शिलाद ने अपनी इच्छा और कामना भगवान शिव के समक्ष रखी. भगवान शिव ने शिलाद को पुत्र का आशीर्वाद देकर कहा तथास्तु. वह उसे अपने साथ अपने घर ले आए और उसका लालन-पालन करने लगे. देखते देखते नंदी बड़ा हो गया. नंदी ने अपने पिता से कहा, “आपने मुझे स्वयं भगवान शिव के आशीर्वाद से पाया है, तो मेरे इस जीवन की रक्षा भी भगवान शिव ही करेंगे.


नंदी ने भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किये


अपने पिता की तरह ही नंदी ने भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया. फलस्वरूप भगवान शिव प्रसन्न हुए और नंदी को बैल का मुख देकर अपना सबसे प्रिय और वाहक बनाया. इस प्रकार नंदी भगवान शिव के सबसे प्रिय वाहन बने और समाज में उन्हें पूजनीय स्थान भी मिला. यही वजह है कि भगवान शिव की आराधना से पूर्व उनके प्रिय नंदी की पूजा की जाती है.


नंदी ने भी किया विषपान


एक और पौराणिक कथा है कि दानवों और देवताओं के बीच हुए समुद्र मंथन के बाद कालकूट विष निकला था. जिसे शिवजी ने कण्ठ में धारण किया. इसलिए महादेव को “नीलकण्ठ” कहा गया. कहा जाता है कि विषपान के समय इसकी कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं जिसे नंदी ने अपने जीभ से समेट लिया और नंदी के इस समर्पण भाव को देखकर शिव जी बेहद प्रसन्न हुए और नंदी को अपना सबसे बड़े भक्त बनाया.