Badrinath Dham : हिंदू धर्म में मंदिर में पूजा की शुरुआत में और अंत में शंखनाद करना शुभ माना जाता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की बद्रीनाथ में शंख नहीं बजाया जाता. इसके पीछे की वजह हम आपको बताते हैं.


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क्या है पौराणिक कहानी
उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल में बाबा केदारनाथ की यात्रा के शुरुआत में ही हिमालय सी सटी एक जगह है जिसे सिल्ला कहा जाता है. माना जाता है कि यहां श्री शनेश्वर महाराज ने तपस्या की थी. यहां एक भव्य मंदिर भी है. 


शनेश्वर महाराज जब तप कर रहे थे. तो राक्षसों ने उनके तप को भंग करने की कोशिश की. समय बीतने के साथ साथ राक्षसों का बोलबाला हो गया और अब वो ना सिर्फ तपस्यारथ तपस्वियों को मार देते थे बल्कि जो मंदिर में पूजा को आता था उसे खा जाते थे.


जिसके चलते शनेश्वर महाराज के मंदिर में अब एक ही पुजारी रह गया. उस पुजारी की मदद को महर्षि अगस्त्य आए. जब पुजारी ने महर्षि को भोजन परोसा तो एक मायावी राक्षस वहां आ गया.


महर्षि ने तुरंत मां कुष्मांडा का ध्यान किया. मां कुष्मांडा ने राक्षस का अंत कर दिया और वो स्थान पूरी तरह से राक्षसों से मुक्त हो गया. लेकिन आतापि और वातापी दो राक्षस भाग निकले.


एक राक्षस बद्रीनाथ के शंख के अंदर छिप गया और दूसरा सिल्ली नाम की नदी में छिप गया. तब माता ने अपने चमत्कार से दोनों राक्षसों को जहां हैं वहीं बांध दिया.  तभी से ये माना जाता है कि शंख की ध्वनि से ये दैत्य फिर सक्रिय हो सकते हैं इसलिए बद्रीनाथ मंदिर में शंख नहीं बजाया जाता है.


वैसे शंख नहीं बजाने के पीछे की वजह वैज्ञानिक भी है. अगर शंख बजा तो इसकी ध्वनि से आसपास जमी बर्फ में दरार आ सकती है या फिर बर्फीला तूफान आ सकता है. इसलिए भी शंख यहां पर नहीं बजाया जाता है.