Jaipur: भारत में आम आदमी हो या संत समाज सभी आपसी सद्भाव प्रेम स्नेह से रहने की बात करते हैं. जब किसी दूसरे देश में युद्ध का संकट आता है तो भी हमारे देश के संत वहां जाकर आपसी सद्भावना की बात करते हैं. श्रीलंका में जब डिप्रेशन तमिल ऑफ टाइगर का आतंक था तो उस समय में भी श्री श्री रविशंकर ने वहां जाकर शांति कायम करवाई थी. इसी शांति को लेखक आर्ट ऑफ लिविंग के अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक स्वामी विरूपाक्ष ने अपनी किताब में लिखा है. ''टूटा टाइगर'' श्री श्री रवि शंकर की श्रीलंका में लिट्टे समस्या पर किए गए शांति प्रयासों की सम्पूर्ण सच्चाई को उजागर करती पुस्तक है.


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श्री श्री के श्रीलंका में मध्यस्थता के प्रयासों के दौरान की वास्तविक सच्चाई, जिसमें कई अनजाने और चौंकाने वाले तथ्य को स्वामी विरुपाक्ष ने 12 वर्षों के लम्बे मौन के बाद किताब के माध्यम से तोड़ा है. लेखक स्वामी विरूपाक्ष ने बताया श्रीलंका में लिट्टे की समस्या के दौरान श्री श्री रवि शंकर के मध्यस्थता के प्रयासों के दौरान हुए अनुभवों की अब तक की अनसुनी कहानियों को समेटे हुए है. यह पुस्तक एक विस्तृत और मानवीय दृष्टिकोण से श्री लंकाई गृहयुद्ध के चौथे और अंतिम चरण में तेजी से बदलते हुए घटनाक्रम को रेखांकित करती है.


गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर के शांति प्रयासों और आर्ट ऑफ लिविंग के मानवीय आधार पर उस कठिन समय में किए जा रहे प्रयासों को इस पुस्तक में विस्तार से बताया गया है. साथ ही, श्री लंका के उस मारक टकराव के अंतिम दिनों की वस्तुस्थिति बयान करती हुई यह एकमात्र पुस्तक है. जब श्रीलंका तमिल अल्पसंख्यकों और सिंघली बहुसंख्यकों के टकराव के 26 वर्षों के इतिहास के अंतिम दौर में पहुँच चुका था, तब श्री श्री ने 2006 से ही अपने संघर्ष समाधान के प्रयास करना आरम्भ कर दिया था, जिससे शांति स्थापित हो सके.


स्वामी विरुपाक्ष ने बताया “एक युद्ध लड़ने में अनेकानेक चुनौतियाँ आती हैं, किन्तु शांति स्थापित करने में आने वाली चुनौतियाँ अपने आप में अनूठी होतीं हैं, और उनका अंदाजा लगाना कठिन होता है. हमारी पुस्तक श्रीलंका द्वारा उन खोए हुए अवसरों, जिससे वो अधिक बेहतर स्थिति में हो सकता था, षड्यंत्रों, भीतर की कहानियाँ लोगों को बताती है. विशेष कर जब आज हम श्रीलंका को इस बुरी स्तिथि में देखते हैं, तो ये कहानियाँ और अधिक प्रासंगिक हो जातीं हैं. बहुत से लोग श्रीलंका की वर्तमान स्थिति के लिए कोविड महामारी और दशकों के राजनैतिक-आर्थिक कुप्रबन्धन को जिम्मेदार मानते हैं, किन्तु इनमें से अधिकतर को इसके मूल कारण के बारे में नहीं पता. यदि शांति को वाकई एक अवसर दिया गया होता, तो इस गृह युद्ध के चौथे और अंतिम चरण, जो कि सबसे अधिक घातक रहा, को टाला जा सकता था, और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता था.”


लेखक श्रीलंका में नौ सालों तक गुरुदेव के संघर्ष समाधान दल का हिस्सा रहे. स्वामी जी ने बताया किस प्रकार, 2006 में, तत्कालीन भारत सरकार ने गुरुदेव को लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन से मिलने की अनुमति नहीं दी, जब वे गर्मियों में श्री लंका के दौरे पर गए. श्रीलंका में सतत शांति एवं समृद्धि का एक अनोखा अवसर हाथ से चला गया. वे यह भी बताते हैं कि कैसे एक युद्ध पीड़ित ने उन्हें बताया था कि शांति प्रयासों के दौरान गुरुदेव का अपहरण करने की तैयारी थी. “टूटा टाइगर” कई ऐसे “सीखे गए सबक” को रेखांकित करता है, जिनसे भारतीय उपमहाद्वीप में हमारे देश को एक स्थिर एवं समृद्ध पड़ोसी उपलब्ध रहता हैं.


Reporter - Anup Sharma


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