EX CM Hiralal Devpura :  राजस्थान में 25 नवंबर को 200 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं. ऐसे में इस ऐतिहासिक राज्य मरूधरा की राजनीति के बारे में कुछ बातें जानना बेहद जरूरी हैं. राजस्थान में स्थित कुंभलगढ़ किले का इतिहास बहुत ही प्राचीन और गौरवशाली रहा है. कुंभलगढ़ क्षेत्र राजपुताना शौर्य के प्रतीक महाराणा प्रताप की जन्मस्थली के लिए भी जाना जाता है, साथ ही यह इलाका पूर्व मुख्यमंत्री हीरालाल देवपुरा के लिए जाना जाता है.


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हीरालाल देवपुरा का जन्म 12 अक्टूबर, 1925 को मेवाड़ के कुंभलगढ़ दुर्ग की तलहटी में बसे गांव केलवाड़ा में हुआ था. देवपुरा ने छात्र जीवन में ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. आर्थिक तौर पर देवपुरा का परिवार कमजोर था, लेकिन हीरालाल देवपुरा ने पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत की.


महाराणा प्रताप और हीरालाल देवपुरा का खास संबंध


 राजस्थान ते चुनावी सफर में आज हम बात करेंगे राजस्थान के उस मुख्‍यमंत्री की जिसका संबंध राजपुताना शौर्य के प्रतीक के रूप में दुनिया भर में जाने वाले महाराणा प्रताप से था. कुंभलगढ़ किले की तरह जिनका जिगर मजबूत, ईमानदारी जिसकी मिसाले दी जाती थी. इसकी सादगी और ईमानदारी यहां की पिढ़ियों को प्रेरित करती है. सच कहा जाए तो कुंभलगढ़ महाराणा प्रताप की जन्मस्थली के साथ पूर्व मुख्यमंत्री हीरालाल देवपुरा के लिए भी उतना ही जाना जाता है. 


ये महज एक संयोग कहे कि महाराणा प्रताप और हीरालाल देवपुरा का गहरा संबंध है. साथ ही इनके मुख्यमंत्री बनने से लेकर इस्तीफा देने की कहानी भी उतनी ही रोचक है. महज 15 दिन के लिए सत्ता में रहे हीरालाल देवपुरा आज भी कांग्रेस के प्रति निष्ठा के लिए याद किए जाते है.


देवपुरा के पूर्वजों ने बचाया महाराणा प्रताप के पिता को 


बात उस समय की है जब मेवाड़ का राणा उदय सिंह किशोर था. 16वीं सदी में महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह को राजा बनने से पहले बनवीर मार देना चाहता था. बालक उदय सिंह को बचाने के लिए पन्‍ना धाय ने अपने बेटे चंदन की बलि दे दी थी. पन्‍ना धाय बालक उदय सिंह को लेकर कुंभलगढ़ के केलवाड़ा गांव पहुंची, जहां आशा शाह देवपुरा ने उन्‍हें अपने घर में छिपाया. पन्‍ना धाय और उदय सिंह को अपने घर में छिपाने वाले आशा शाह देवपुरा हीरालाल देवपुरा के पूर्वज थे. वीरांगना पन्ना धाय की निष्ठा और बलिदान की कहानी आज भी पढ़ाई जाती है.


एक घटना के बाद बने सीएम


राजस्थान में चुनावी मौसम था और  विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनेता प्रचार में जी जान से जुटे थे. साल था 1985, उस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की सरकार में शिवचरण माथुर मुख्‍यमंत्री थे. इनके कार्यकाल खत्म होने में सिर्फ 15 दिन बचे थे. तभी एक घटना घटती है, जिसने उस वक्त लोगों के जज्बात और कांग्रेस के हालत बदल दिए थे.


20 फरवरी 1985 को मान सिंह ने अपनी जीप से राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री और अपने समय के कांग्रेस के कद्दावर नेता शिव चरण माथुर के हेलीकॉप्टर को टक्कर मार दी थी. दरअसल, शिवचरण माथुर एक रैली को संबोधित करने डींग पहुंचे थे. इसी दौरान उनके हेलीकॉप्टर पर सात बार निर्दलीय विधायक रह चुके राजा मानसिंह ने हमला कर दिया. 


अगले दिन यानी 21 फरवरी, 1985 को राजस्थान में पुलिस ने डीग विधानसभा सीट से प्रत्याशी राजा मानसिंह की गोली मारकर हत्‍या कर दी. राजा मानसिंह की हत्‍या का जाटों ने जोरदार विरोध किया, जिससे कांग्रेस आलाकमान को हार का डर सताने लगा. 


जयपुर आ जाइए... और बन गए मुख्यमंत्री


इधर, विधानसभा चुनाव सिर पर सवार था. चुनाव में दो हफ्ते से कम समय बचा था. कांग्रेस पार्टी को पता था कि जाटों की नाराजगी से हार मिल सकती है. कांग्रेस पार्टी किसी भी हाल में चुनाव हारना नहीं चाहती थी. लिहाजा 24 घंटे के भीतर ही शिवचरण माथुर से इस्‍तीफा ले लिया गया. इसके बाद माथुर सरकार में वरिष्‍ठ मंत्री और विधायकी के लिए अपनी सीट कुंभलगढ़ में प्रचार कर रहे हीरालाल देवपुरा को आनन- फानन में सूचना भेजी गई. हीरालाल देवपुरा इस समय प्रचार के लिए कुंभलगढ़ क्षेत्र में मौजूद थे. सूचना मिली कि... जयपुर आ जाइए, आपको सीएम पद की शपथ लेनी है. इस तरह वो सीएम राजस्थान के सीएम बने.


दिल्ली से एक फोन.... 'आप इस्‍तीफा दे दीजिए'


अब कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीता लिया. जीत भी ऐसी कि जिसकी उम्मीद कांग्रेस ने नहीं की थी, भारी बहुमत से जीत मिली थी. जहां दो हफ्ते पहले कांग्रेस के लिए संकट नजर आ रही थी, जहां चुनाव से महज 15 दिन पहले ही सूबे का मुखिया बदलने को लेकर कदम तक उठाया गया था. अब कांग्रेस पार्टी के लिए अनूकुल समय था.  


इधर, 15 दिन पहले मुख्यमंत्री बने हीरालाल देवपुरा को फिर से अपनी ताजपोशी की उम्मीद पाल बैठे थे, लेकिन तभी दिल्‍ली से एक फोन आया- 'आप इस्‍तीफा दे दीजिए, जोशी जी को कार्यभार संभालना है.' दिल्ली आलाकमान की तरफ से आए फोन पर यह सुचना हीरालाल देवपुरा के लिए एक बेहद दुखद सूचना था. हीरालाल देवपुरा को मिली सीएम की कुर्सी 17 दिन बाद यानी 10 मार्च 1985 को चली गई.


हीरालाल देवपुरा का राजनीतिक सफर


हीरालाल देवपुरा ने साल 1972, 1980, 1985, 1990, 1998 के विधानसभा चुनाव जीते. साल 1985 में मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद उन्हें राजस्थान विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन उन्होंने महज सात महीने बाद ही इस्‍तीफा दे दिया था.  इसके बाद वह कांग्रेस संगठन में जिला मंत्री से लेकर प्रदेश महामंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी रहे.  80 साल की उम्र में साल 2004 में हीरालाल देवपुरा का निधन हो गया. एक छोटे सीएम कार्यकाल के लिए हीरालाल देवपुरा को याद किया जाता है.