Doctor`s Day: 100 सालों से इस परिवार में सब डॉक्टर, बहू के लिए ये डिमांड
डॉक्टर डे (Doctors` Day) के मौके पर हम आपको ऐसी फेमली से मिलवा रहे हैं, जहां परिवार के हर एक सदस्य डॉक्टर है. जो पिछले 100 सालों से है, यानी 1920 से दिल्ली के सब्बरवाल परिवार में अब 150 से ज्यादा डॉक्टर हैं.
Doctor' s Day: एक जुलाई यानी आज डॉक्टर डे है. कहा जाता है ऊपर भगवान और नीचे डॉक्टर यानी डॉक्टर को भगवान के बराबर ही दर्जा दिया जाता है. कोई भी बड़ी या छोटी बीमारी का पेशंट डॉक्टर के पास बड़ी आस लेकर ही जाता है. कोविड की स्थिति जब पीक पर रही उस दौरान पूरे देश में डॉक्टर्स ने फ्रंट लाइन वर्कर्स के रूप में काम किया और अपनी जान जोखिम में डालकर कई लोगों की जान बचाई.
डॉक्टर डे (Doctors' Day) के मौके पर हम आपको ऐसी फेमली से मिलवा रहे हैं, जहां परिवार के हर एक सदस्य डॉक्टर है. जो पिछले 100 सालों से है, यानी 1920 से दिल्ली के सब्बरवाल परिवार में अब 150 से ज्यादा डॉक्टर हैं. ये परिवार इस पेशे को एक मिशन के रूप में देखता है.
इस परिवार की बहू डॉक्टर ग्लॉसी सब्बरवाल ने एक तस्वीर शेयर की और लिखा कि यह तस्वीर 1920 की है. उन्होंने लिखा कि पाकिस्तान के जलालपुर शहर में सबसे पहले दिवंगत पिता लाला जीवनमल ने अस्पताल की शुरुआत की थी. वह गांधी से प्रेरित थे जिन्होंने कहा था कि इस देश का भविष्य शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की क्वालिटी यानी गुणवत्ता पर निर्भर करेगा. उसी समय लाला जीवनमल ने अपने चारों बेटों को डॉक्टर बनाने का फैसला किया. आजादी के बाद, परिवार दिल्ली में चला गया और यहीं से ही परिवार के सभी सदस्यों की डॉक्टर बनने की परंपरा शुरू हो गई.
परिवार के सदस्य अंकुश सब्बरवाल कहते हैं, 'परिवार में पिछले 102 सालों से सभी सदस्य डॉक्टर का प्रोफेशन ही चुन रहे हैं. हालांकि परिवार सदस्यों के लिए इसे चुनना आसान नहीं था क्योंकि परिवार के एक बेटे ने मैनेजमेंट की डिग्री की पढ़ाई शुरू की, लेकिन दादी के कहने पर उस बेटे ने मैनेजमेंट की पढ़ाई छोड़ने का फैसला लिया और मेडिकल प्रोफेशन को चुना और वह आज एक सफल सर्जन हैं.'
दिल्ली के इस जीवनमाल अस्पताल में सिर्फ पैसे न होने के कारण किसी भी मरीज को नहीं लौटाने का सिस्टम है. उनके परिवार के दो सदस्य, जो डॉक्टर थे, जिनकी पिछले साल कोरोनावायरस से मृत्यु हो गई थी. डॉ विनय चाहते हैं कि परिवार की बहुएं भी डॉक्टर हो और पारिवारिक अस्पताल में शामिल हो. साथ हीं, पीढ़ी दर पीढ़ी ये परंपरा आगे बढ़ती रहे.
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