Jaipur RTO : देश का 10 वां सबसे बड़ा शहर यानी जयपुर में दिनोंदिन गाड़ियों की भरमार होती जा रही है और जयपुर की ट्रैफिक व्यवस्था टाइट होती जा रही है इसी बीच जयपुर में लगातार ओवरलोड वाहनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. सबसे ज्यादा हादसे भी ओवरलोडिंग गाड़ियों की वजह से ही होती है और वाहन चालकों और प्रॉपर्टी के नुकसान का भी खतरा ओवरलोड वाहनों से भी होता है. लेकिन सबसे बड़ा गड़बड़झाला RTO के उड़नदस्ते और उनके आंकड़ों में है.


RTO द्वितीय टॉप, प्रथम फिसड्डी


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दरअसल 40 लाख से ज्यादा की आबादी वाले जयपुर में लगातार ट्रैफिक का दबाव बढ़ता जा रहा है, लिहाजा ऐसे में जयपुर में 2 आरटीओ भी है, लेकिन एक की परफॉर्मेंस टॉप तो दूसरे की परफॉर्मेंस फिसड्डी दिखाई पड़ती है. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या आरटीओ प्रथम के उड़नदस्ते सड़क पर नहीं निकलते हैं. यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि जयपुर के दोनों आरटीओ के रिजल्ट अलग-अलग है.


सिर्फ 50 चालान काटे


जहां जयपुर आरटीओ द्वितीय के उड़नदस्तों ने मई महीने में 275 चालान काटे तो वही आरटीओ प्रथम ने महज 50 चालान काटे. यह सवाल इसलिए भी बड़ा हो जाता है क्योंकि जयपुर में ओवरलोड वाहन टोंक और दूदू से ही होते हुए आते हैं, लेकिन इसके बावजूद उड़नदस्ते फील्ड पर नजर नहीं आते. ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि कहीं फिर से कोई सांठगांठ तो नहीं चल रही और सवाल यह भी कि क्या मुख्यालय के अफसरों को समीक्षा के दौरान दोनों आरटीओ के अंतर नहीं दिखाई देते. इस मसले पर परिवहन निरीक्षण निरीक्षक संघ चुप्पी साधे हुए हैं. ऐसे में सवालों का अंबार है कि आखिर यह गड़बड़झाला कहां तक फैला हुआ है,


गौरतलब है कि ओवरलोड वाहनों के प्रदूषण से पर्यावरण पर भी असर पड़ता है. साथ ही सरकार को भी सबसे ज्यादा फटका इसी से लगता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी जयपुर में ओवरलोड वाहनों का मजमा देखने को मिल ही जाता है. 


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