Govatsa Dwadashi 2022 : हिंदू धर्म में बच्चों की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए बछबारस यानि की गोवत्स द्वादशी पर मां व्रत करती हैं. भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष द्वादशी पर किए जाने वाले इस व्रत का विशेष महत्व हैं. आज के दिन महिलाएं गाय और बछड़ों की पूजा करती हैं.


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गोवत्स द्वादशी (बछबारस ) पर पूजन के लिए शुभ मुहूर्त 
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि आज 06:07 सुबह से शुरू हो रही है, जो 24 अगस्त यानि की कल सुबह 08:30 तक रहेगी. चर, सुस्थिर और सिद्धि नाम के 3 शुभ योग भी इस पर्व पर बन रहे हैं, जिसके चलते इस पर्व का महत्व और बढ़ जाता है.


बछबारस की पूजन विधि
सुबह स्नान कर महिलाएं व्रत-पूजा का संकल्प लें और दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को स्नान कराएं, दोनों को नए वस्त्र ओढ़ाएं
 गाय और बछड़े को फूलों की माला पहनाकर, चंदन का तिलक लगाकर, तांबे के बर्तन में चावल, तिल, जल, इत्र और फूलों को मिला लें और अब ये मंत्र बोलते हुए गाय के पैर धो लें.



क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते, सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:


पूजा के बाद गाय के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाकर, गाय और बछ़़ड़े को भोजन दें और गौमाता की आरती करें.
पूजा के बाद बछबारस की कथासुन कर, पूरे दिन व्रत रखा जाता है.


बछबारस पर कभी ना खाये ये चीजें



गाय के दूध, दही, चावल और गेंहू से बनी चीजें खाने की मनाही आज के दिन होती है. मक्का, बाजरा और चने सेबनी चीजें आप खा सकती हैं.


बछबारस (गोवत्स द्वादशी ) व्रत कथा 
एक बार जब गोवत्स द्वादशी का पर्व आया तो इंद्रलोक से इंद्राणी कई अप्सराओं को साथ लिये, गायों की पूजा के लिए धरती पर आई. उन्होंने देखा एक गाय अकेली घास चर रही है. इंद्राणी पूजा की इच्छा से उसके पास पहुंची. जैसे ही इंद्राणी पूजा करने लगी, वैसे ही वहां से जाने लगी. तब इंद्राणी ने गाय से विनती की और बोला हमारी पूजा स्वीकार करें.  तब गाय ने कहा मेरे साथ मेरे बछड़े की भी पूजा करो.


इंद्राणी ने मिट्टी से गाय का बछड़ा बनाया और उसमें प्राण डाल दिए, इसके बाद इंद्राणी ने अप्सराओं सहित गाय और बछड़ों की पूजा की.  जब गाय घर पहुंचीं तो ग्वालन ने उससे पूछा ये बछड़ा किसका है ? गाय ने पूरी बात उसे सच-सच बता दी और ये भी कहा “अगली गोवत्स द्वादशी पर मैं तुम्हारे लिए भी संतान लेकर आऊंगी. अगले साल जब ये व्रत आया तो गाय ने इस बार इंद्राणी से ग्वालन के लिए भी पुत्र मांगा.


इंद्राणी ने मिट्टी का एक पुतला बना दिया और उसमें प्राण डाल दिए. इसके बाद एक पालने को गाय के सींगों से बांधकर बच्चे को उसमें डाल दिया गया. गाय के साथ बच्चे को देख ग्वालन ये बात पूरे गांव वालों को बता चुकी थी. बस तभी से गोवत्स द्वादशी पर गाय और बछड़ों की पूजा की परंपरा चली आ रही है, ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से संतान सुख मिलता है.


(Disclaimer: मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और धार्मिक जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ZEE Media किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है)


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