Lumpy Skin Disease: गांव के चोहटे बने गायों के कब्रगाह, हजारों मौत, अब भी मंजूरी के इंतजार में वैक्सीन
Lumpy Skin Disease: देश में मवेशियों की आबादी में लम्पी वायरस रोग (LSD) के मामले बढ़ रहे हैं और गौवंश में फैल रहे लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease) की रोकने के लिए अभी तक कोई स्थायी समाधान नहीं खोजा जा सका है
Jaipur: भारत की मवेशियों की आबादी में लम्पी वायरस रोग (LSD) के मामले बढ़ रहे हैं. साथ ही राजस्थान में अब तक लम्पी से हजारों गायों की मौत हो चुकी है पर अब तक इसका कोई परमानेंट इलाज नहीं हो पाया. आपको बता दें कि एक महीने पहले शुरू किया गया एक स्वदेशी टीका जो अभी भी आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी का इंतजार कर रहा है.
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 10 अगस्त 2022 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित शॉट का शुभारंभ किया. तोमर ने इस वैक्सीन को लम्पी बीमारी के निदान के लिए मील का पत्थर बताते हुए कहा कि मानव संसाधन के साथ ही पशुधन हमारे देश की बड़ी ताकत है, जिन्हें बचाना हमारा बड़ा दायित्व है. साथ ही उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत यह वैक्सीन विकसित करके एक और नया आयाम स्थापित किया गया है. उन्होंने अश्व अनुसंधान केंद्र व पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों को बधाई दी, जिनके प्रयासों से लम्पी रोग के टीके को विकसित किया गया है. 2019 में जब से यह बीमारी भारत में आई, तब से ही संस्थान वैक्सीन विकसित करने में जुटे थे.
वैक्सीन को पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) से आपातकालीन उपयोग के लिए अनुमति की आवश्यकता है. बता दें कि वैक्सीन में देरी का मुख्य कारण वैक्सीन को लेकर भ्रम है और अगर इसकी प्रभावशीलता को लेकर भ्रम है तो इसके उत्पादन के लिए कौन जिम्मेदार होगा ? आपको बता दें कि लुंपी-प्रोवैकइंड (Lumpi-ProVacInd) वैक्सीन के लिए आपातकालीन स्वीकृति देने को लेकर हाल ही में 5 सितंबर को ICAR और पशुपालन विभाग के अधिकारियों के बीच कई बैठकें हुई हैं पर उसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया. लुंपी-प्रोवैकइंड को ICAR-राष्ट्रीय इक्वाइन अनुसंधान केंद्र (ICAR-NRCE), हिसार, हरियाणा द्वारा ICAR-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI), इज्जतनगर, उत्तर प्रदेश के सहयोग से विकसित किया गया है.
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वर्तमान में भारत एलएसडी (LSD) के लिए बकरी के चेचक के टीके का प्रबंध कर रहा है, जिसने लगभग 50,000 गोवंश को मार डाला है और लगभग 12 लाख मवेशियों को संक्रमित किया है. ये एक विषमलैंगिक टीका है जो बीमारी के खिलाफ मवेशियों के लिए क्रॉस-प्रोटेक्शन (60-70 प्रतिशत तक) प्रोवाइड करता है. बकरी का चेचक, भेड़ का चेचक और एलएसडी एक ही कैप्रिपोक्सवायरस जीनस से संबंधित हैं. लुंपी-प्रोवैकइंड रोग के समान वायरस से बना एक घरेलू टीका है
विशेषज्ञों के अनुसार, होमोलॉगस लाइव-एटेन्युएटेड वैक्सीन्स विषमलैंगिकों (Heterosexuals) की तुलना में बेहतर और लंबी प्रतिरक्षा देता है. हालांकि, पशुपालन विभाग में शॉट की सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई है.अधिकारियों ने कहा कि 2017-2019 के बीच रूस, कजाकिस्तान और चीन में होमोलॉगस लम्पी स्किन डिजीज वायरस (एलएसडीवी) वैक्सीन का उपयोग करने के बाद असामान्य नए वायरस स्ट्रेन की खोज की गई थी. लम्पी वायरस रोग स्ट्रेन Lumpi-ProVacInd में इस्तेमाल किया जाने वाला स्ट्रेन रूस में इस्तेमाल होने वाले स्ट्रेन की तरह रीकॉम्बिनेंट स्ट्रेन नहीं है. NRCE के प्रमुख वैज्ञानिक नवीन कुमार ने कहा कि लुंपी-प्रोवैकइंड में इस्तेमाल किया जाने वाला लम्पी वायरस रोग स्ट्रेन एक पुनः संयोजक स्ट्रेन नहीं है, ये केन्या के एक नीथलिंग स्ट्रेन से निकटता से संबंधित है.
वैज्ञानिक ने कहा कि इसका एहसास बाद में हुआ जब वैक्सीन की शीशियों का कई वायरल स्ट्रेन के लिए सकारात्मक परीक्षण किया गया. इस मुद्दे पर विशेष रूप से आईसीएआर के अधिकारियों और विभाग के बीच बैठकें हो चुकी हैं. इसको लेकर कुछ चिंताएं हैं, लेकिन हाल के शोध में पाया गया है कि रूस में वैक्सीन के बैच उस लैब में दूषित थे जो नए उपभेदों का कारण बना और ये टीके के प्रकार के कारण नहीं था. बीएन त्रिपाठी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वह पशु विज्ञान के उप महानिदेशक हैं.
त्रिपाठी 29 जून, 2022 को एमडीपीआई जर्नल में बेल्जियम और कजाकिस्तान के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र का जिक्र कर रहे थे, रिसर्च से पता चला कि प्रयोगशाला में उत्पादन स्तर पर टीके में तीन उपभेदों को मिलाया गया था. एलएसडीवी के टीके यूरोपीय देशों में इसके प्रकोप को रोकने के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किए जा रहे हैं और ये बकरी के चेचक के टीके की तुलना में अधिक प्रभावी हैं. एक भारत में कुछ फार्मों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि बकरी पॉक्स का टीका बहुत प्रभावी नहीं है. सरकार ने पूरी 30 करोड़ मवेशियों की आबादी का टीकाकरण करने का लक्ष्य रखा है. अगस्त में लगभग 1.53 करोड़ मवेशियों को बकरी का टीका लगाया गया था, जिसे वर्तमान में दो कंपनियों-हेस्टर बायोसाइंसेज लिमिटेड और इंडियन इम्यूनोलॉजिकल लिमिटेड द्वारा निर्मित किया जा रहा है.
जैसे-जैसे ये बीमारी फैलती जा रही है, बढ़ी वैक्सीन की मांग
डीएएचडी के पशुपालन आयुक्त प्रवीण मलिक ने कहा कि कई राज्यों ने एक ही समय में वैक्सीन की खुराक मांगी है. 2019 से पहले शॉट्स की मांग कम थी, इसलिए इसकी निर्माण क्षमता भी कम थी. अब इसे पूरा करने के लिए निर्माण क्षमता बढ़ा दी गई है. हालांकि, पशु चिकित्सकों का मानना है कि बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए एक समर्पित एलएसडी वैक्सीन की आवश्यकता है. कई वैज्ञानिकों को विश्वास है कि स्वदेशी टीका सुरक्षित है और एलएसडी वायरस के खिलाफ बकरी के टीके की तुलना में बेहतर सुरक्षा प्रदान करेगा. बता दें कि NRCE के वैज्ञानिकों ने 2019 में वायरस को अलग कर दिया था जब भारत में पहली बार इस बीमारी की सूचना मिली थी. जिसमें वैक्सीन का पहला प्रायोगिक परीक्षण अप्रैल 2022 में आईसीएआर-आईवीआरआई मुक्तेश्वर परिसर में किया गया था और 10 जानवरों को एक खुराक दी गई थी. एक महीने के बाद, उन पांच जानवरों के साथ-साथ जिन जानवरों को टीका नहीं दिया गया था, उन्हें विषाणुजनित वायरस का इंजेक्शन लगाया गया था.
नियंत्रण वाले पशुओं में एलएसडी के लक्षण दिखाई दिए, जबकि टीका लगाए गए पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई. इसके बाद जुलाई में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के 36 फार्मों पर 7,000 पशुओं का फील्ड ट्रायल किया गया, जिनमें से चार फार्मों में वैक्सीन लगने के बाद मामले सामने आए. इस बीच, संगठित क्षेत्र के सरकारी और निजी फार्मों और गौशालाओं को उपक्रम के आधार पर टीका दिया जा रहा है. उपक्रम ने कहा कि यह एक प्रायोगिक टीका है और संस्थान किसी भी प्रतिकूल प्रभाव के लिए जिम्मेदार नहीं होगा. साथ ही कुमार ने कहा कि यह आपातकालीन उपयोग की मंजूरी के लिए एक औपचारिकता है.
आपको बता दें कि विभिन्न राज्य सरकार और निजी फार्मों को 80,000 से अधिक खुराक वितरित की गई है. संस्थान का कहना है कि वह प्रति माह 500,000 से 1 मिलियन खुराक तक का उत्पादन कर सकता है पर वैक्सीन का उत्पादन कौन करेगा यह दोनों इकाइयों के बीच विवाद की एक और हड्डी है. पशुपालन आयुक्त मलिक ने कहा कि एनआरसीई ने देश भर में आपूर्ति के लिए अपनी प्रयोगशालाओं में वैक्सीन का उत्पादन करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन अनुमति नहीं दी जा सकी, क्योंकि प्रयोगशालाएं अच्छी विनिर्माण प्रथा के अनुरूप नहीं है.
हालांकि, त्रिपाठी ने कहा कि आईसीएआर की व्यावसायीकरण शाखा एग्रीनोवेट इंडिया ने 4 कंपनियों के साथ वैक्सीन के लिए रुचि पत्र जारी किया था और हमारा काम वैक्सीन विकसित करना है. साथ ही मंजूरी मिलते ही हम प्रौद्योगिकी कंपनियों को सौंप देंगे. इसमें भी कम से कम छह महीने लगेंगे, जब कंपनियां इसका निर्माण करेंगी, इसका परीक्षण करेंगी और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की मंजूरी लेंगी. वहीं इस बीच राजस्थान ने Lumpy Skin disease को महामारी घोषित करने की मांग केंद्र सरकार से की है.
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