Jaipur: कोर्ट ने कहा कि परिवादी ने अर्जी में कहा है कि वे यह केस आगे नहीं चलाना चाहते हैं, लेकिन उसने प्रोटेस्ट पिटिशन पेश की थी. इसमें सीआरपीसी के अध्याय 15 के प्रावधान लागू होते हैं. यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ क्लोजर रिपोर्ट दी है. तो कोर्ट खुद निर्धारण कर सकता है कि क्लोजर रिपोर्ट मंजूर किए जाने योग्य है या नहीं. ऐसे में प्रार्थी की इच्छा का कोई अर्थ नहीं है. उसकी अर्जी पर केस खत्म नहीं हो सकता. वहीं एडवोकेट संदेश खंडेलवाल मामले में जब तक पैरवी करेंगे जब तक कि परिवादी नियमानुसार अपना वकालतनामा विड्रो नहीं कर लेता. 


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वकालतनामा विड्रो नहीं होने तक एडवोकेट संदेश खंडेलवाल और अनिल चौधरी परिवादी की पैरवी कर सकेंगे. पैरवी में विरोधाभास होने पर परिवादी का मत लिया जाएगा कि वे किससे पैरवी का समर्थन करते हैं. कोर्ट ने यह निर्देश परिवादी रामशरण सिंह की उस अर्जी पर दिया. जिसमें उन्होंने एडवोकेट खंडेलवाल को सभी केसों में पैरवी करने के लिए दिया वकालतनामा वापस लेने की बात कही थी.


 गौरतलब है कि रामशरण सिंह ने बेटे सुरेन्द्र के जरिए कोर्ट में अर्जी दायर कर कहा था कि उनकी उम्र 93 साल की हो गई है और वे गंभीर रूप से बीमार रहने लगे हैं. मामले में काफी जांच-पड़ताल हो चुकी है, इसलिए वे इस केस आगे चलाना नहीं चाहते. एडवोकेट संदेश खंडेलवाल को भी अपने केसों में पैरवी नहीं करवाना चाहते.


 मामले के अनुसार एसीबी ने 2014 में परिवादी रामशरण सिंह की गणपति कंस्ट्रक्शन कंपनी को एकल पट्टा जारी करने में हुई धांधली की शिकायत पर कंपनी के प्रोपराइटर शैलेन्द्र गर्ग, यूडीएच के पूर्व सचिव जीएस संधू, जेडीए जोन-10 के तत्कालीन उपायुक्त ओंकारमल सैनी, निष्काम दिवाकर, गृह निर्माण सहकारी समिति के पदाधिकारियों अनिल अग्रवाल और विजय मेहता के खिलाफ मामला दर्ज किया था.


वहीं, प्रकरण में एसीबी ने यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल, तत्कालीन यूडीएच उप सचिव एनएल मीणा को क्लीन चिट देते हुए तत्कालीन जेडीसी ललित के पंवार व तत्कालीन जेडीए अतिरिक्त आयुक्त वीएम कपूर के पक्ष में एफआर दी थी.


Reporter- Mahesh Pareek


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