Jaipur Highcourt: राजस्थान के जयपुर हाईकोर्ट ने वर्ष 1992 में बनाई वसीयत को 23 साल बाद सिविल केस के जरिए चुनौती देने और उसके तीन साल बाद समान बिंदु पर एफआईआर दर्ज करने को प्रारंभिक रूप से गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने निचली अदालत को आदेश दिए हैं, कि वह मामले में पेश आरोप पत्र पर कार्रवाई ना करे. 


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जानकारी के अनुसार याचिका में अधिवक्ता मोहित बलवदा याचिकाकर्ता अशोक की मां राधा देवी ने वर्ष 1992 में अपनी पुत्रवधू किरण के पक्ष में वसीयत कराई थी, जिसमें याचिकाकर्ता के पिता और बहन गवाह बने थे. वहीं वर्ष 1993 में राधा देवी की मौत के बाद संपत्ति किरण के अधिकार में आ गई. याचिका में कहा गया की याचिकाकर्ता के भाई के बेटे ने वर्ष 2015 में इस वसीयत को फर्जी बताकर निचली अदालत में सिविल केस दायर कर दिया.


फर्जी वसीयत का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करा दी
वहीं यह केस अभी तक लंबित चल रहा है, इसके बाद भाई के बेटे की ओर से फर्जी किरायानामा बनाने पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. याचिका में बताया गया कि भाई के बेटे ने सिविल केस लंबित रहने के दौरान वर्ष 2018 में श्याम नगर थाने में फर्जी वसीयत का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करा दी. साथ ही मिलीभगत कर आरोप पत्र भी पेश करवा दिया.


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आरोप पत्र पर कार्रवाई नहीं करने के आदेश दिए हैं
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि जब सिविल केस लंबित है, तो समान मामले में आपराधिक कार्रवाई नहीं हो सकती है. इसलिए अदालत में पेश आरोप पत्र को रद्द किया जाए, जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने निचली अदालत को आरोप पत्र पर कार्रवाई नहीं करने के आदेश दिए हैं. इस दौरान जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश अशोक कुमार शर्मा और किरण देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए है.