Jaipur News: लंपी,अफ्रीकन फीवर के बाद अब राजस्थान के जयपुर,झुंझुनू,अलवर और बीकानेर के इलाकों के घोड़ों में यह खतरनाक बीमारी तेजी से फैल रहा हैं. इसको लेकर पशुपालन विभाग ने घोड़ों के आवागमन पर रोक लगा दी है.


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Jaipur News: लंपी,अफ्रीकन फीवर के बाद अब ग्लैंडर्स संक्रमण का कहर देखने को मिल रहा है.ग्लैंडर्स रोग घोड़ों की प्रजातियों में फैल रहा है.अब तक 4 जिलों में घोड़ों में इस रोग की पुष्टि हुई है.जयपुर,झुंझुनू,अलवर,बीकानेर जिले में रोग की पुष्टि की गई है, जिसके बाद में पशुपालन विभाग ने घोड़ों के आवागमन पर रोक लगा दी है.


अब तक 900 सैंपल लिए गए
प्रदेश में अब तक घोड़ों की प्रजातियों के 900 सैंपल लिए हैं,जिसमें से अब तक 6 घोडों में रोग की पुष्टि हुई है.यह रोग घोडों से घोड़ों में फैलता है.अब तक बीमारी से बचाव के लिए कोई दवा और टीका नहीं बना है. मार्च में होने वाले बाड़मेर में मल्लिनाथ जी मेला,तिलवाड़ा में अश्ववंशीय पशुओं के प्रवेश के लिए एलिसा और सीएफटी परीक्षण में नेगेटिव जांच रिपोर्ट आने के बाद ही घोड़ों को प्रवेश दिया जाएगा.नेगटिव रिपोर्ट के आभाव में अश्ववंशीय पशुओं को मेला क्षेत्र में प्रवेश नहीं दिया जाएगा.


केंद्र सरकार द्धारा मिलेगा मुआवजा
संयुक्त निदेशक रोग एवं निदान डॉ.रवि इसरानी ने बताया कि विभाग द्वारा त्वरित कार्यवाही करते हुए रोग प्रकोपित घोड़ों को मानवीय तरीके से युथनाइज कर वैज्ञानिक रीती की अनुपालना करते हुए निस्तारण किया गया है. इस रोग से प्रभावित अश्ववंशीय पशुओं के पशुपालकों को केंद्र सरकार द्वारा पूर्व में जारी निर्देशानुसार मुआवजा दिया जाएगा.


ग्लैंडर्स रोग क्या है ? 
पशु चिकित्सक डॉ. सत्यनारायण मीणा के अनुसार,  ग्लैंडर्स जीवाणु  जनित बीमारी है. अगर किसी घोड़े को ये बीमारी होती है, तो उसके नाक से तेज म्यूकसनुमा  पानी बहने लगता है, शरीर में फफोले हो जाते हैं, सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है. साथ ही बुखार आने के कारण घोड़ा सुस्त हो जाता है. एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलने वाली यह  बीमारी  आमतौर पर घोड़ों में होती है.इस बीमारी से बचाव के लिए अभी तक कोई भी दवा या टीका नहीं बना है.  


लक्षण हो तो तुरंत चिकित्सक को संपर्क करें
सामाजिक दूरी और बायो सेफ्टी उपाय ही बचाव के उपचार है.उन्होंने कहा की यदि किसी अश्व वंशीय पशु में ग्लैंडर्स रोग के लक्षण देखे जाए तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क किया जाना अति आवश्यक है, ताकि रोग की समय रहते रोकथाम की जा सके.


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