जयपुर के इस बाजार में होता है करोड़ों का कारोबार, 1 हजार दुकानें लेकिन टॉयलेट नहीं
Jaipur News: जयपुर के सबसे व्यस्तम बाजार पुरोहितजी का कटला, मनिहारो का कटला, डिग्गी कटला, पुरोहित का खंदा, सेठी कॉम्पलेक्स में टॉयलेज की सुविधा ना होने से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
Jaipur: कहने को स्मार्ट सिटी हैं. लेकिन लोग परेशान है क्योंकि उन्हें विकास नही दिख रहा, लेकिन नगर निगम दस्तावेजों में विकास की उपलब्धि गिनवाते नही थक रहा.शहर में कई ऐसी जरूरी चीजें हैं जिनका निर्माण निश्चित तौर पर जनहित में होना ही चाहिए. जिसमें मुख्य रूप से शौचालयों का होना है. शहर के सबसे बड़े और व्यस्त मुख्य बाजार में अब तक एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं है.बाजार में रोजाना हजारों लोग खरीदारी को आते हैं. जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है लेकिन शौचालय न होने की वजह से उन्हें खासी परेशानी होती है.
राजधानी का सबसे व्यस्तम बाजार पुरोहितजी का कटला, मनिहारो का कटला, डिग्गी कटला, पुरोहित का खंदा, सेठी कॉम्पलेक्स. राजधानीवासियों की जरूरत इन मार्केट में आए बिना पूरी नहीं होती. एक हजार से अधिक दुकानें और यहां रोज बीस से तीस हजार लोग खरीदारी करने के लिए आते हैं. इनमें 50 प्रतिशत महिलाएं भी होती हैं. लेकिन हैरत की बात है कि चारदीवारी को स्मार्ट सिटी बनाने का काम हो रहा है. नगर निगम का मुख्यालय इस बाजार से 500 मीटर दूर हैं.उ सके बावजूद मार्केट में एक भी टॉयलेट नहीं है.
मेट्रो स्टेशन बनने से पहले यहां टॉयलेट था लेकिन मेट्रो तो चल गई लोग सफर भी कर रहे हैं लेकिन जब स्टेशन से उतरते हैं तो उन्हे टॉयलेट नजर नहीं मिलता. जबकि ये पुरोहितजी का कटला, मनिहारो का कटला, डिग्गी कटला, पुरोहित का खंदा, सेठी कॉम्पलेक्स में करोडों का व्यापार प्रतिदिन होता हैं.उसके बावजूद बाजार में मूलभूत सुविधाएं ही उपलब्ध नहीं है.शहर को स्मार्ट बनाने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं.
नगर निगम का बजट भी करोड़ों रुपए का है.लेकिन स्मार्ट होते शहर में आधी आबादी के लिए सुविधाजनक टॉयलेट तक की व्यवस्थाएं नहीं हैं.जिसकी वजह से शोरुम-दुकानों पर काम करने वाली, बाजारों में खरीदारी को निकलने वाली और सामान बेचने वाली महिलाओं-युवतियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
भीड़ भरे बाजार में टायलेट की बात कोई नहीं करता.अफसोस.अब तो नगर निगम हैरिटेज की मेयर भी महिला हैं.बावजूद इसके मेयर मुनेश गुर्जर ने अपने ऑफिस से 500 मीटर दूर पुरोहितजी के कटले के पास शौचालय निर्माण की कोई पहल नहीं की. इसकी वजह से दुकानदार तो छोडिए खरीदारी के लिए आने वाली महिलाओं को कितना कष्ट उठाना पड़ रहा है, यह तो वही जानती हैं.
लेकिन आम जनता की समस्याओं की ओर निगम ने कभी गौर ही नहीं किया.जब भी किसी महिला को लघुशंका आती है तो उसे बाजार से सीधे अपने घर ही जाना पड़ता है.इधर नगर निगम हैरिटेज की मेयर मुनेश गुर्जर का कहना है की व्यापारियों से इस मामले में शिकायत मिली हैं.यूरिनल्स को लेकर अभियंताओं से रिपोर्ट मांगी है.निगम आयुक्त के निर्देश पर जेईएन से बाजार में विभिन्न स्थानों पर यूरिनल्स बनाने के लिए रिपोर्ट मांगी है.अभियंता सर्वे करके बताएंगे कि कहां-कहां यूरिनल्स बनाए जा सकते हैं.
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बडी चौपड स्थित पुरोहितजी के कटले मार्केट में यूरिनल्स की मांग अब जोर पकड़ने लगी है.व्यापारियों ने कहा की मेट्रो ने जब स्टेशन बनाया तो कमिटमेंट किया था की बाद में दूसरी जगह पर टॉयलेट बना देंगे.लेकिन आज तक नहीं बना.यदि निगम चाहे तो बाजार में छोटे यूरिनल्स बनाए जा सकते हैं. पुरुष तो सार्वजनिक जगहों पर शौचालय न होने पर कहीं भी निपट लेते हैं.यानी उन्हें पेशाब करने के लिए शौचालयों के मोहताजी नहीं खलती.जबकि महिलाओं के साथ ऐसा नहीं है.
सार्वजनिक स्थलों में साफ-सुथरे शौचालय स्त्रियों का बुनियादी हक हैं.लेकिन सुप्रीम कोर्ट की नोटिस के बाद भी कोई संज्ञान नहीं लिया जा रहा.जबकि स्कूलों में लडक़े-लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालयों की व्यवस्था को शिक्षा के बुनियादी अधिकार से जोड़ा गया है. अक्टूबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों में शौचालयों की व्यवस्था को लेकर बेहद महत्वपूर्ण आदेश दिया था.
राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को आदेशित किया गया था कि वे सभी स्कूलों में अस्थाई शौचालयों की व्यवस्था करें. लेकिन महिलाओं के लिए बाजारों में ऐसी व्यवस्था का नितांत अभाव है.पुरोहितजी के कटले में कपड़े, फैशन, चूडि़यां, स्टेशनरी, बच्चों के आइटम सहित कई तरह की दुकाने और साडि़यों के शोरूम हैं.इन बाजारों में ग्राहकों की दिनभर भरमार रहती है.
शादी हो या आम समारोह अधिकांश खरीदारी इसी बाजार की जाती है.वहीं ग्रामीण लोग भी खरीददारी करने के लिए इसी बाजार में आते है.ऐसे में शौचालय की व्यवस्था की नहीं होने के कारण बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. खासकर महिला ग्राहकों को भी दूसरे घरों में जगह तलाशनी पड़ती है.ऐसे मे उन्हें शार्मिंदगी भी उठानी पड़ती है.
बहरहाल, एक ऐसा शहर जहां सारी सुविधाएं हों, मेट्रो में सफर हो, चमचमाती सडकें हो. वहां कौन नहीं रहना चाहेगा, स्मार्ट सिटी योजना काफ़ी अच्छी है. शहरों को सुंदर बनना ही चाहिए. साफ-सुथरे, सारी सुविधाओं से पूर्ण, पर्यावरण की दृष्टि से उपयुक्त शहर बनने ही चाहिए. इसमें किसी को क्या एतराज़ हो सकता है, लेकिन इसी का अगर आप दूसरा पहलू देखें तो बाजारों में शौचालय तक नहीं है. इसलिए पहले टॉयलेट बनाइएं, फिर स्मार्ट सिटी.