Jaipur news: राज्य के दूसरे सबसे बड़े टाइगर रिजर्व सरिस्का में बाघों के अस्तित्व पर एक और संकट मंडरा रहा है. यहां बाघों के लिए वाहनों से उत्सर्जित कार्बन तो संकट का कारण है ही, सालों से जीनपूल में बदलाव नहीं होने से बाघों पर बांझपन का संकट भी मंडरा रहा है. इससे बाघों में बीमारी और मौत के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं.


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राजस्थान में बाघों की उत्पत्ति एक ही बाघ से मानी जाती है. खासतौर पर सरिस्का में वर्ष 2008 में जब बाघों का पुनर्वास किया गया, तब ये एक ही संतति के थे. पिछले कुछ सालों में सरिस्का में बाघों की संख्या बढ़ी है, लेकिन यह एक ही संतति के बाघों के प्रजनन से बढ़ रही है.


इस कारण बाघों के जीन पूल में बदलाव नहीं हो पा रहा है. इसके पीछे एक वजह बाघों का कॉरिडोर नहीं होने से एक्सचेंज नहीं होना भी है. सरिस्का में बाघों में इनब्रीडिंग होने के चलते बांझपन के मामले बढ़े हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक बाघों के प्रजनन में उनके जेनेटिक संरचना में बदलाव नहीं होगा, तब तक अधिक मजबूत संतति होना मुश्किल है.


एक ही संतति से उत्पन्न होने से बाघों में बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. बाघों से जुड़े विशेषज्ञों की मानें तो इसी कारण कुछ मादा बाघों पर बांझ रह गई हैं. वहीं सरिस्का में जो क्रिटिकल टाइगर हैबिटाट एरिया है, वह पांडुपोल हनुमान जी मंदिर वाला रूट है. लेकिन यहां बड़ी संख्या में भक्तों के वाहनों का आवागमन होने से बाघिन प्रजनन के लिए सुरक्षित महसूस नहीं करती. इस कारण इस क्षेत्र में बाघों के प्रजनन की संख्या काफी कम रहती है.


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