Jaipur: राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्ट रूप से बताने को कहा है कि प्रदेश में भिखारी और निर्धन व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए हैं. अदालत ने चेतावनी दी है कि यदि तीन सप्ताह में शपथ पत्र पेश नहीं किया गया, तो राज्य सरकार पर भारी हर्जाना लगाया जाएगा. वहीं अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जताई की मामले में पैरवी के लिए एक अतिरिक्त महाधिवक्ता का नाम दर्शाया गया है, लेकिन वे अदालत में पेश नहीं हुए. वहीं उनकी जगह पेश दूसरे अतिरिक्त महाधिवक्ता के पास केस की फाइल ही नहीं है.


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अदालत ने कहा कि यह बड़े दुख की बात है कि सरकारी वकीलों का केस के प्रति ऐसा रवैया है. इसके साथ ही अदालत ने महाधिवक्ता और विधि सचिव को आदेश की कॉपी भेजने को कहा है. सीजे पंकज मित्थल और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश जनहिताय जन सुखाय एनजीओ और जिनेश जैन की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए.


सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से अदालती आदेश की पालना रिपोर्ट पेश की गई है, लेकिन इससे यह साफ नहीं है कि उनका पुनर्वास किस तरह किया गया है और ना ही भिखारियों और निर्धन व्यक्तियों का पुनर्वास अधिनियम, 2012 के क्रियान्वयन की जानकारी मिल रही है. ऐसे में अतिरिक्त महाधिवक्ता सीएल सैनी शपथ पत्र पेश कर स्पष्ट रूप से बताए कि उनके पुनर्वास और पुनर्वास कानून के क्रियान्वयन के लिए क्या कदम उठाए गए हैं.


जनहित याचिका में कहा गया कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में कुल 22 हजार 548 भिखारी हैं. इनमें पांच से 14 साल की उम्र के पांच हजार 807 बच्चे भी शामिल हैं. राज्य सरकार ने भिखारियों और निर्धन व्यक्तियों का पुनर्वास अधिनियम, 2012 बनाकर ऐसे लोगों के कल्याण के प्रावधान किए हैं. अधिनियम की धारा तीन के तहत ऐसे लोगों को रोजगार के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा. जबकि आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार अब तक एक भी भिखारी का पुनर्वास नहीं किया गया है.


Reporter- Mahesh Pareek