Shahpura, Jaipur News: राजस्थान के जयपुर जिले के शाहपुरा पुलिस थाने में एक महिला ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का मामला दर्ज कराया है. पीड़िता ने आरोपी व उसके भाई के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दी है.


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पीड़िता ने आरोपी के भाई के खिलाफ अश्लील वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया है. दर्ज रिपोर्ट में पीड़िता ने बताया है कि वह अजीतगढ़ स्थित एक फैक्ट्री में काम करती थी. आरोपी संदीप सिंह भी वहीं काम करता था.


आरोपी ने उसे शादी का झांसा देकर दोस्ती कर ली बाद में दुष्कर्म किया. साथ ही, आरोपी ने उससे कई बार फोन पे के जरिए रुपये भी लिए. बाद में आरोपी ने उसकी नौकरी छुड़वा दी. इसके बाद आरोपी ने उसका फोन उठाना बंद कर दिया.


इस पर पीड़िता ने आरोपी के भाई रविंद्र सिंह से फोन पर बात की तो उसने नग्न अवस्था में वीडियो कॉल करने की बात कहते हुए संदीप सिंह के चालू नंबर देने को कहा. इस पर पीड़िता ने नग्न अवस्था में उसे वीडियो कॉल किया. 


इस दौरान रविंद्र सिंह ने उसकी नग्न अवस्था में अश्लील वीडियो रिकॉर्ड कर लिया और उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए ब्लैकमेल करने लगा. परेशान होकर पीड़िता ने पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है. पुलिस ने पीड़िता का मेडिकल कराया है. फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है. 


पढ़िए जयपुर की एक और खबर 
पेपर लीक प्रकरण में आरोपी ट्रेनी एसआई को रिहा करने के आदेश निरस्त, डीजीपी जांच कर रिपोर्ट करें पेश


Jaipur News: राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस उप निरीक्षक भर्ती 2021 पेपर लीक से जुड़े मामले में मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, द्वितीय के गत 12 अप्रैल के उस आदेश को निरस्त कर दिया है. इसके तहत अदालत ने 11 ट्रेनिंग एसआई सहित कुल 12 आरोपियों की अवैध हिरासत मानते हुए उन्हें रिहा करने के आदेश दिए थे.


इसके साथ ही अदालत में डीजीपी को कहा है कि वह आरोपियों की अवैध हिरासत के संबंध में जांच कर 15 दिन में निचली अदालत में तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश करें, जिसके आधार पर निचली अदालत अवैध हिरासत के बिंदू को तय करें. जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश राज्य सरकार की अपील को मंजूर करते हुए दिए. 


अदालत ने कहा कि 19 मार्च 2024 को मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट ने अन्य आरोपियों की अवैध हिरासत के संबंध में डीजीपी को जांच करने के आदेश दिए थे और उनसे रिपोर्ट मांगी थी. डीजीपी की रिपोर्ट आए बिना ही निचली अदालत के पास इन 12 आरोपियों की अवैध हिरासत को मानने का कोई आधार नहीं था. यह विस्तृत जांच का विषय था. ऐसी स्थिति में एक समान प्रकरण में दो अलग-अलग प्रकार के निर्णय देना उचित नहीं था. 


राज्य सरकार की ओर से याचिका में कहा गया कि आरोपी एसओजी की अवैध हिरासत में नहीं थे और उन्हें पूछताछ के बाद ही गिरफ्तार किया गया था. राज्य सरकार के विशेष लोक अभियोजक अनुराग शर्मा ने कहा कि आरोपियों से 2 अप्रैल को पूछताछ हुई थी और उस समय उन्हें अवैध हिरासत में नहीं लिया था.


पूछताछ के बाद ही 3 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार किया और 24 घंटे की अवधि में कोर्ट में उनकी पेशी कर दी गई. ऐसे में राज्य सरकार ने उनकी कोर्ट में पेशी करने में किसी भी कानूनी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है. वहीं, आरोपियों की ओर से कहा गया कि एसओजी ने आरोपियों को आरपीए से उठाया और अपने पास अवैध हिरासत में रखते हुए उन्हें बाद में गिरफ्तार दिखाकर अदालत में पेश किया.  
निचली अदालत की ओर से आरोपियों को रिहा करने का आदेश सही है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत में निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए डीजीपी को जांच रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं. 


गौरतलब है कि गत 12 अप्रेल को सीएमएम, द्वितीय ने आरोपियों की अवैध हिरासत मानते हुए उन्हें रिहा करने के आदेश दिए थे. इस आदेश के खिलाफ पेश अपील पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी. वहीं, हाईकोर्ट के इस आदेश को आरोपियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दखल से इनकार करते हुए हाईकोर्ट को फैसला देने को कहा था. 


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