Motivation: जानिए कौन हैं लक्ष्मणराव किर्लोस्कर, जिन्होंने कहा था आगे बढ़ने के लिए जेब नहीं, सोच बड़ी होनी चाहिए
Motivation: देश का जाना-माना बिजनेस घराना है किर्लोस्कर समूह. लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर समूह की सक्सेज स्टोरी हम सबको मोटिवेट करेगी. आपको लगता होगा कि कोई भी बढ़ा काम करने के लिए बड़े निवेश की जरुरत होती है. बड़े संसाधनों की आवश्यकता होती है. पर जब आप किर्लोस्कर समूह के संस्थापक की कहानी पढ़ेंगे तो ये सब भूल जाएंगे.
Motivation: टीचर शब्द जब भी सामने आता है तो स्कूल, छात्र, पुस्तक, अनुशासन, शालीनता और सादगी कुछ ऐसी ही चित्र हम सबकी आंखों के सामने आते हैं, पर जब लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर की बात आती है तो इन सबके साथ एक और बड़ा किस्सा जुड़ जाता है. स्कूल में सृजन और प्रतिभा निर्माण का कार्य करने वाला शिक्षक वास्तविक जीवन में भी सृजन और निर्माण का महान कार्य कर सकता है. उनकी सफलता से ये साबित होता है. लक्ष्मणराव काशीनाथ ने किर्लोस्कर समूह की स्थापना करके समाज को एक नई दिशा दी है. उनकी कहानी से ये पता चलता है कि सफलता के लिए सोच और हौसलों का बड़ा होना जरुरी है. इसके लिए पैसे और परिवारिक हालात मायने नहीं रखते हैं.
आज अपको जानके थोड़ा अजीब जरुर लगेगा कि महज 45 रुपए की सैलरी में काम करने वाला टीचर 10 हजार करोड़ रुपये का कारोबार कैसे कर सकता है. पर ये कोई कहानी नहीं बल्कि सच है. जो कर दिखाया है लक्ष्मणराव काशीनाथ किर्लोस्कर ने. एक कार्यक्रम के दौरान किर्लोस्कर ने कहा था कि आगे बढ़ने के लिए जेब नहीं सोच बड़ी होनी चाहिए.
किर्लोस्कर का पढ़ने में नहीं लगता था मन
किर्लोस्कर समूह के संस्थापक लक्ष्मणराव किर्लोस्कर भारत के प्रसिद्ध उद्योगपतियों में से एक थे. उनका जन्म 20 जून 1869 को महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव गुरलौहसुर में हुआ था. किर्लोस्कर समूह ने भारत के उद्योग जगत में इतिहास रचा है. किर्लोस्कर का बचपन से ही पढ़ने में मन नहीं लगता था. मुंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में उन्होंने मैकेनिकल ड्राइंग सीखी. मुंबई के विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टीट्यूट में अध्यापक नियुक्त हो गए.
जल्दी ही उन्हें मशीनों की जानकारी हुई. इन्होंने 1888 में अपने भाई रामुअन्ना के साथ मिलकर ‘किर्लोस्कर ब्रदर्स’ नाम से साइकिल की दुकान खोल ली. जल्दी ही नौकरी छोड़ी. फिर चारा काटने की मशीन और लोहे के हल बनाने वाला छोटा सा कारखाना खोल लिया. तमाम मुश्किलों के बाद औंध के राजा से उधार लेकर 32 एकड़ बंजर जमीन खरीदी.
पहला लोहे का हल बेचने में 2 साल लग गए
वहां फैक्ट्री खोलकर जमीन की सूरत ही बदल दी. बंजर जमीन में परिश्रम से मेहनत और सफलता के फूल खिलने लगे. लेकिन लक्ष्मणराव किर्लोस्कर के सामने मुश्किलें और भी थीं. क्योंकि किसानों को मशीनों के लिए मनाना आसान नहीं था. किर्लोस्कर को अपना पहला लोहे का हल बेचने में 2 साल खप गए . लेकिन लक्ष्मणराव किर्लोस्कर ने हार नहीं मानीं.
आज 28,000 कर्मचारी कार्यरत
लक्ष्मणराव सामाजिक समस्याओं में भी चिंतन शील थे. उनकी चिंताएं और सोच सिर्फ कारोबारी मुनाफे तक ही सीमित नहीं थी. इसलिए वो बड़े समाज सुधारक भी थे. उन्होंने अछूत के विरोध में खूब काम किया. उन्होंने पूर्व कैदियों को अपने यहां नाइट वॉच मैन का काम दिया था. 1888 में शुरू हुई हुए किर्लोस्कर ग्रुप का उस समय नाम किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड था. लक्ष्मणराव किर्लोस्कर के नेतृत्व में इस कंपनी को ऐतिहासिक सफलता मिली. आज किर्लोस्कर ग्रुप पंप, इंजन, वाल्व और कंप्रेसर की इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग करता है. इस कंपनी में करीब 28,000 कर्मचारी कार्यरत हैं. कंपनी की कुल आमदनी है 2.50 बिलियन डॉलर की है.
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