Jaipur: सांसद किरोड़ी लाल मीणा का धरना स्थगित हो गया है, मगर धरने के साथ ही बीजेपी की गुटबाजी भी सामने आ गई है. किरोड़ी ने प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया से नाराजगी जताई और यहां तक कह दिया कि मुझे पूनिया से निराशा हाथ लगी है. ऐसे में साफ है कि बीजेपी में भी कहीं न कहीं अंदरूनी गुटबाजी है.


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सांसद किरोड़ी ने कहा कि मैंने यह धरना और कार्यक्रम पार्टी की अनुमति से किया था. प्रभारी अरुण सिंह और प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया की अनुमति के बाद ही मैं धरने पर बैठा. पूनिया मुझसे मिलने भी आए थे और कहकर गए थे कि इस मुद्दे पर भारतीय जनता युवा मोर्चा पूरे प्रदेशभर में आक्रामक आंदोलन करेगी. मगर मुझे तो नहीं दिखा. क्यों नहीं दिखा आप उनसे पूछिए. उन्होंने कहा कि सतीश पूनियाकी अगुवाई में पेपर लीक को लेकर जो आक्रामक आंदोलन चलना चाहिए था, वो उन्होंने नहीं दिखाया. पूनिया को इस मुद्दे पर जो आक्रामकता दिखाई जानी चाहिए थी, वो नहीं दिखाई दी, मुझे उनसे निराशा हाथ लगी.


मीणा का सब्र का बांध फूटा 


सांसद किरोड़ी मीणा लगातार पेपर लीक का मुद्दा उठा रहे हैं, मगर पार्टी की ओर से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिल रहा है. मीणा के धरने पर पहले दिन उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, विधायक रामलाल मीणा पहुंचे थे. इन दोनों नेताओं के बाद पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और प्रदेश प्रभारी अरूण सिंह ने सांसद से धरने के बारे में फोन तक पर नहीं पूछा. दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने ट्वीट कर मीणा को समर्थन दिया और लिखा कि सरकार मीणा को अकेला नहीं समझे हम सब उनके साथ हैं. इसके बाद 31 जनवरी को प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया धरना स्थल पर पहुंचे. 


उनके साथ पार्टी के तीन मोर्चों युवा, एसटी, अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष, शहर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित भारी लवाजमा था. पूनियां ने डा मीणा को भरोसा दिया था आंदोलन को तेज करेंगे, लेकिन पूनियां के जाते ही पार्टी के सभी नेता-कार्यकर्ता वहां से चले गए और दूसरे दिन भी नहीं आए. हालांकि इस दौरान व्यक्तिगत रूप से सांसद, विधायक नेता आकर समर्थन जताते रहे. ऐसे में आज मीणा के सब्र का बांध फूट पड़ा.


सांसद मीणा ने कहा- जिस मुद्दे पर सतीश पूनिया के नेतृत्व में BJP को खड़ा होना था. मुझे दुख है, उस मजबूती से पूनिया और बीजेपी खड़ी नहीं हुई. पूनिया के पास राजस्थान बीजेपी की जिम्मेदारी है. वह पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष है. इस मामले पर बिल्कुल भी आक्रामक नजर नहीं आए. इस मामले पर मैंने आला नेताओं से भी बात की है.


आंदोलन के दौरान साफ दिखा कि भाजपा में भी कहीं न कहीं अंदरूनी कलह है. नेता धरने पर पहुंचे, लेकिन पूरी पार्टी एकजुट नजर नहीं आई. हालांकि सभी नेताओं का कहना है कि बीजेपी पूरी पार्टी एकजुट है, लेकिन इस मामले को लेकर कोई भी कुछ बोल नहीं पा रहे हैं. दस महीने बाद चुनाव है, ऐसे मे यदि पार्टी एक जुट नहीं रही तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.


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