जयपुर: राजधानी जयपुर में झोटवाड़ा ग्राम की चौमूं पुलिया स्थित 350 करोड़ की बेशकीमती जमीन का म्यूटेशन खोलने के मामले में तहसीलदार संदीप बेरड और लीव रिजर्व आईएलआर प्रमोद शर्मा पर निलंबन की गाज भले ही गिर चुकी हो लेकिन एक दिन में पटवारी से नायब तहसीलदार तक म्यूटेशन खोलने लॉक कर जमाबंदी में दर्ज करने वालों पर कार्रवाई नहीं करने पर जिला प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं.


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चार्ज देकर म्यूटेशन लॉक


एक ही दिन में सुबह से लेकर रात तक किस तरह से 'वजनदार' वाली फाइल दौड़ती हैं. इसकी बानगी टाइटन मॉल के पास 18 बीघा बेशकीमती जमीन के नामांतरण खोलने में देखने में मिली. छुट्टी पर भू-अभिलेख निरीक्षक होने के बावजूद दूसरे को चार्ज देकर म्यूटेशन लॉक करवा दिया गया.द रअसल मामला जयपुर में झोटवाड़ा ग्राम की चौमूं पुलिया टाइटन मॉल के पास 18 बीघा जमीन के म्यूटेशन खोलने से जुड़ा हैं. करीब 350 करोड़ की निलंबित जयपुर तहसीलदार संदीप बेरड ने बिना रजिस्ट्री 18 बीघा औद्योगिक जमीन का नामांतकरण खोल दिया.


जमाबंदी में जमीन की किस्म गैस मुमकिन फैक्ट्री हैं और मौके पर फैक्ट्रियां भी बनी हुई हैं. जयपुर जिला कलेक्टर प्रकाश राजपुरोहित की सिफारिश पर रेवन्यू बोर्ड ने तहसीलदार संदीप बेरड को निलंबित भी कर दिया.साथ में लीव रिजर्व आईएलआर प्रमोद शर्मा को भी निलंबित कर दिया हैं.लेकिन इस म्यूटेशन को एक दिन में खोलने वाले पटवारी से लेकर नायब तहसीलदार पर कोई एक्शन लिए जाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं. कलक्ट्रेट के गलियारों में चर्चा ये है की नामांतरण प्रकिया में शामिल पटवारी महेन्द्र सिंह शेखावत, नायब तहसीलदार सीताराम जाट, भू अभिलेख निरीक्षक मनोज फौजदार पर क्यों कार्रवाई नहीं की गई.


जबकि म्यूटेशन की फाइल 17 जुलाई को एक ही दिन में सुबह से शाम तक पटवारी से से नायब तहसीलदार तक पहुंची और फिर रात तक म्यूटेशन लॉक होकर जमाबंदी में दर्ज भी हो गया. इतना ही नहीं जयपुर तहसील के झोटवाड़ा सर्किल के भू अभिलेख निरीक्षक प्रवीण मीना 17 जुलाई को छुट्टी पर थे लेकिन फाइल रूक नहीं सकती थी इसलिए बस्सी सीतारामपुरा के भू-अभिलेख निरीक्षक मनोज फौजदार को चार्ज दिया और उसी दिन जमाबंदी में म्यूटेशन पर रिपोर्ट करवाई गई.


हालांकि जो लोग इस प्रकरण में बच गए उनके तर्क अलग अलग हैं. नायब तहसीलदार सीताराम जाट का कहना है कि तहसीलदार संदीप बैरड़ के आदेशों की पालना में ही म्यूटेशन खोला है. पटवारी महेंद्र सिंह शेखावत व भू अभिलेख निरीक्षक मनोज फौजदार ने रिपोर्ट की थी. इसके बाद ही हस्ताक्षर किए गए हैं.पटवारी महेंद्र सिंह शेखावत का कहना है कि यह तहसीलदार कोर्ट का आदेश के कारण इस मामले में मौका देखने व मौका रिपोर्ट देने की जरूरत नहीं थी


मामला यही खत्म नहीं हुआ. प्रशासनिक सुधार एवं समन्वय विभाग ने परिपत्र जारी कर निर्देश दे रखे है कि किसी भी दस्तावेज पर नोट, टिप्पणी करेत समय संबंधित अधिकारी-कर्मचारी को अपना नाम, पदनाम व तिथि अंकित करनी होगी. आदेशों पर पालना नहीं करने पर कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन झोटवाड़ा के म्यूटेशन प्रक्रिया में पटवारी, भू अभिलेख निरीक्षक व नायब तहसीलदार के हस्ताक्षर है...लेकिन उनका नाम ही नहीं लिखा गया. ताकि जांच प्रक्रिया को गुमराह किया जा सके.



गौरतलब हैं की जयपुर तहसील के गांव झोटवाड़ा के खाता नं. 202 के खसरा नंबर 1087, 1088, 1089 व 1090 की करीब 18 बीघा जमीन स्थित है.. इस जमीन पर फैक्ट्री लगी हुई है और पिछले 80 साल से इसका औद्योगिक उपयोग हो रहा है.यहां पर कृषि कभी नहीं रही. राजस्थान काश्तकार अधिनियम 1955 में तहसीलदार केवल कृषि भूमि का नामातंकरण ही ट्रांसफर खोल सकता है. तहसीलदार ने मामले को राजस्थान भू राजस्व अधिनियम 1956 धारा 135 (2) में दर्ज कर सुनवाई की. फिर म्यूटेशन खोलने का पटवारी को आदेश दिया. जबकि राजस्थान भू-राजस्व नियम-2007 के परिपत्र में है की अकृषि प्रयोजनार्थ रूपांतरित भूमि का विक्रय, दान, वसीयत, बख्शीश और उत्तराधिकार द्वारा ट्रांसफर होने पर नामांतरण दर्ज नहीं होगा. सॉफ्टवेयर में कृषि भूमि से अकृषि होने पर केवल एक बार ही नामांतकरण दर्ज होने का प्रावधान हैं.


कभी सर्वर डाउन तो कभी राजकार्य में व्यस्त


बहरहाल, राजस्व विभाग की जमाबंदी में म्यूटेशन के जरिए आम काश्तकारों को अपना नाम दर्ज करवाने के लिए पटवार भवन से तहसील के एक महीने तक चक्कर लगाने पड़ते है. कभी सर्वर डाउन तो कभी राजकार्य में व्यस्त होने का बहाना, लेकिन जयपुर तहसील के झोटवाड़ा ग्राम की चौमूं पुलिया स्थित 350 करोड़ की बेशकीमती 18 बीघा जमीन का एक ही दिन में म्यूटेशन खुल गया.


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