Navratri 2022: शहर में दुर्गापूजा महोत्सव को लेकर तैयारियां जोरों पर है. बंगाली समाज की ओर से इस बार दुर्गा पूजा को विश्व विरासत की थीम पर मनाने की तैयारी की जा रही है. माता दुर्गा के पांडाल को बंगाल के प्राचीन मंदिरों की थीम पर सजाया जा रहा है. जयपुर समेत जोधपुर,कोटा, नागौर ,सीकर,भीलवाड़ा, श्रीगंगानगर, आदि इलाकों के लिए इन दिनों पूरे राजस्थान में मूर्तियां तैयार हो रही हैं.


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माता की स्थापना से पहले मां की मूर्ति को तैयार किया जाता है. क्या आप जानते हैं कि मां की मूर्ति की मिट्टी कहां से मंगवाई जाती है. आपको जानकर बेहद हैरानी होगा कि मां दुर्गा की मूर्ति का निर्माण करने के लिए वेश्यालय की मिट्टी का प्रयोग किया जाता है. देश के अलग अलग राज्यों में तो बन रही प्रतिमाओं में कोलकता के फेमस रेड लाईड एरिया सोनागाछी की मिट्टी का उपयोग किया जा रहा है. यहां की मिट्टियों को ऑर्डर देकर मंगाया जा रहा है.


रेड लाइट एरिया की मिट्टी का करते हैं प्रयोग
माता दूर्गा की स्थापना से पहले मां की मूर्ति को तैयार किया जाता है. इन मूर्ति को बनाने में कलाकार गोमूत्र, गोबर, लकड़ी, सिंदूर, धान के छिलके, पवित्र नदियों के मिट्टी,वनस्पतियां और पानी के साथ ही रेड लाइट एरिया की मिट्टी का प्रयोग करते हैं. खासकर मूर्ति का चेहरा बनाने के लिए जो मिट्टी उपयोग होती है, उसमें सोनागाछी की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा प्राकृतिक रंगों से मूर्ति को रंगने के बाद श्रृंगार के लिए वस्त्र सजाकर एवं अन्य सामग्री का उपयोग किया जाता है. साथ ही मूर्ति में अस्त्र-शस्त्र एवं अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग किया जाता है.


ऐसी मान्यता है कि जब तक वेश्यालय के बाहर पड़ी मिट्टी को मूर्ति के सृजन के लिए इस्तेमाल न किया जाए तब तक वह मूर्ति अधूरी ही रहती है. इसलिए हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान सोनागाछी से उठाई गई मिट्टी का उपयोग दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए किया जाता है.


मूर्ति अधूरी ही मानी जाती है
कोलकाता के दुर्गा पंडालों को लेकर आज भी मान्यता है कि जब तक वैश्यालय के बाहर पड़ी मिट्टी को मूर्ति के सृजन के लिए इस्तेमाल में ना लाया जाए, तब तक वह मूर्ति अधूरी ही मानी जाती है. इसलिए हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान बंगाल के सोनागाछी से मंगाई जाने वाली मिट्टी का उपयोग अब देश के विभिन्न राज्यों में दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए किया जाने लगा है.


हिंदुओं के लिए दुर्गा पूजा सबसे बड़ा त्योहार
वैसे तो पूरे देश में अलग-अलग राज्यों में मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा का अपना महत्व है. लेकिन इन सभी पूजाओं में पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है. बंगाली हिंदुओं के लिए दुर्गा पूजा से बड़ा कोई त्योहार नहीं है. हर साल बंगाल की दुर्गा पूजा पंडालों की भव्यता के चलते सुर्खियों में रहती है. लेकिन जहां- जहां बंगाली समाज बसा वहां अपनी विरासत को समेटे रहा.


जयपुर दुर्गाबाड़ी एसोसिएशन द्वारा बनाया जा रहा
जयपुर दुर्गाबाड़ी एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर सुदीप्तो सेन ने बताया कि इस बार दुर्गा पूजा विश्व विरासत की थीम पर आयोजित होगी. माता का पंडाल बंगाल के प्राचीन मंदिरों की प्रतिमूर्ति पर बनाया जा रहा है. इसमें बंगाली संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी. एक ही कैनवास में माता रानी का पूरा परिवार यानी 5 मूर्तियां बनाई जा रही है.


जानें क्या है मान्यता
बंगाल में मान्यता है कि, बहुत समय पहले एक वेश्या, देवी दुर्गा की बहुत बड़ी उपासक हुआ करती थी. लेकिन तवायफ होने के कारण उसे समाज में सम्मान प्राप्त नहीं था. समाज से बहिष्कृत वेश्या को उन दिनों तरह-तरह की यातनाएं सहन करनी पड़ती थी, इसलिए अपनी भक्त को तिरस्कार से बचाने के लिए दुर्गा पूजा के दौरान स्वयं मां दुर्गा ने उसे आदेश देकर उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित कराने की परंपरा शुरू कराई थी. साथ ही देवी ने वेश्या को वरदान दिया था कि यहां की मिट्टी के उपयोग के बिना दुर्गा प्रतिमाएं पूरी नहीं होंगी.


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महार्णव मंत्र महोदधि ग्रंथों में है उल्लेख
जानकारों के मुताबिक शारदा तिलक महार्णव मंत्र महोदधि आदि ग्रंथों में इस कहानी का उल्लेख मिलता है, इसके अलावा एक सामाजिक मान्यता यह भी है कि जब कोई व्यक्ति किसी वेश्यालय में जाता है तो वह अपनी सारी पवित्रता तवायफ की चौखट के बाहर ही छोड़ देता है, इसलिए चौखट के बाहर की मिट्टी सबसे पवित्र मानी जाती है.