मंत्रियों की नहीं सुन रहे अधिकारी, नकेल कसने के लिए परेशान मंत्रियों ने मांगे अधिकार
ब्यूरोक्रेसी से नाखुश खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास ने जमकर भड़ास निकाली और मुख्यमंत्री गहलोत और चीफ सेकट्री को डिपार्टमेंट में लगे अफसरों की एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट ) भरने के अधिकार संबंधित मंत्रियों को देने के लिए पत्र भी लिखा.
Ministers Vs Bureaucracy : ब्यूरोक्रेसी से नाखुश खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास ने जमकर भड़ास निकाली और मुख्यमंत्री गहलोत और चीफ सेकट्री को डिपार्टमेंट में लगे अफसरों की एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट ) भरने के अधिकार संबंधित मंत्रियों को देने के लिए पत्र भी लिखा. जब मंत्रियों के हाथ में अधिकार रहेंगे तो आईएएस अफसर सुधरेंगे. नहीं तो बात नहीं मानेंगे जनता के कैसे काम होंगे?
ब्यूरोक्रेसी पर भड़के खाचरियावास
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में एक यूटिलिटी सर्टिफिकेट केंद्र सरकार को समय पर नहीं भेजने के कारण राज्य का 46 हजार मेट्रिक टन गेहूं लेप्स हो गया हैं. जिसको लेकर खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास ने तत्कालीन खाद्य सचिव रहे आईएएस आशुतोष एटी को जिम्मेदार ठहराया. खाचरियावास ने कहा की कई पत्राचार करने के बाद भी कोई असर नहीं हुआ. जिस अधिकारी को विभाग के बारे में जानकारी नहीं है, वो सरकार की योजनाओं का लाभ कैसे आमजनता को पहुंचाएगा. यदि आईएएस अफसर से काम करवाना और सुधारना है तो उनकी एसीआर अधिकार मंत्रियों को देने होंगे. जैसे की दूसरे राज्यों में विभागों के मंत्रियों के पास हैं. इसलिए खाचरियावास ने आईएएस पर कंट्रोल रखने के लिए खाचरियावास ने सीएम गहलोत को पत्र लिखकर आईएएस अधिकारियों की एसीआर भरने के अधिकार मांगे हैं.
अवमानना करने वाले आईएएस अफसरों पर कार्रवाई की जगह उन्हे अच्छी पोस्टिंग दी जा रही हैं. उनके विभाग में खाद्य सचिव पर रहे आईएएस अधिकारी आशुतोष एटी पेंडनेणकर को अक्षय ऊर्जा में लगाकर प्रमोशन कर दिया. लेकिन में छोडने वाला नहीं हूं. गैर-जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ एक्शन के लिए मुख्यमंत्री को पत्र लिखा हैं. खाचरियावास ने जी मीडिया से बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार से खाद्य सुरक्षा योजना के तहत गेहूं का आवंटन होता हैं. जिसका यूटिलिटी सर्टिफिकेट राज्य सरकार को केंद्र को भेजना होता हैं. लेकिन जिम्मेदार अफसर आशुतोष एटी ने समय रहते नहीं भेजा. जिसके कारण 46 हजार मेट्रिक टन गेहूं लेप्स हो गया.
कम गेहूं आने से वंचित रह गए उपभोक्ता
केंद्र से जब गेहूं कम आया तो राशन दुकानों पर भी उसी तरह से आवंटन हुआ. जिससे कुछ उपभोक्ता वंचित रह गए. सितंबर माह में जब दिवाली पर एक तरफ तो लोग दिवाली की खुशियां मना रहे हैं. दूसरी तरफ लोग अनाज के लिए दर-दर भटक रहे थे. दरअसल खाद्य सुरक्षा योजना के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूं दिया जाता है परिवार के प्रत्येक सदस्य को हर महीने 5 किलो गेहूं मिलता है और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत भी परिवार के प्रत्येक सदस्य को हर महीने 5 किलो गेहूं फ्री बिना पैसे के मिलता है मिलता है. जो की कोरोना महामारी के समय से निशुल्क दिया जाता हैं.
सितंबर माह में राजस्थान में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 1.62 लाख मेट्रिक टन गेहूं ही आवंटित किया गया. जबकि हर माह 2.20 लाख मेट्रिक टन गेहूं का आवंटन होता हैं. जिसका यूटिलिटी सर्टिफिकेट केंद्र सरकार को भेजना पडता हैं. लेकिन अफसरों ने यूटिलिटी सर्टिफिकेट नहीं भेजा जिसके कारण केंद्र सरकार ने सितंबर माह में 46 हजार मेट्रिक टन गेहूं कम आवंटित किया. गेंहू का आवंटन कम होने से राशन डीलरों और उपभोक्ताओं के बीच आए दिन झगड़ते हुए देखा जा रहा है. यही नही वितरण के दौरान निशुल्क गेंहू को आए दिन उपभोक्ताओं की शिकायतें जिला रसद अधिकारी के पास भी पहुंच रही है. लेकिन समझाइस के बावजूद भी उपभोक्ता गेंहूं की कम आने की बात को नहीं मान रहे है.
ब्यूरोक्रेसी का कंट्रोल राजनीति हाथों में जाएगा तो आएंगी जटिलता
उधर खाद्य मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास के ब्यूरोक्रेसी पर दिए गए बयान पर रिटायर्ड आईएएस जगरूप सिंह यादव कहते हैं की प्रशासनिक अधिकारी का कंट्रोल राजनीति हाथों में जाएगा तो जटिलता आएंगी. नौकरशाही स्थाई स्तंभ है. और राजनीतिक नेतृत्व परिवर्तन शील होता हैं जो पांच साल में बदलता रहता हैं. ऐसे में अस्थाई तंत्र को स्थाई तंत्र जो प्रशासन की रीढ हैं उसको मूल्याकंन का राइट दिया जाएगा तो दिक्कतें होंगी और ये उचित नहीं होगा. यदि नौकरशाही को उनके हाथों में दे दिया तो प्रशासन पंगु हो जाएगा. जिसे की प्रशासन के सिद्धातों को कमजोर करेगा. अधिकारी तो घोडे की तरह होते हैं वह सवार देखकर कार्य करते हैं. इसलिए दोनों के बीच तालमेल होना चाहिए. यदि आपका तालमेल ठीक नही हैं तो ट्रांसफर एक प्रकिया हैं.
अक्सर देखा जाता हैं कि जो अफसर सत्ता को रास नहीं आता, उसे दूर-दराज में भेज दिया जाता है. कई बार थोक में तबादले कर दिए जाते हैं. कई बार पावर की लड़ाई में नेता-ब्यूरोक्रेट आमने-सामने होते हैं. तो कई बार अवांछित दबाव भी टकराव की वजह बनता है. दरअसल जनप्रतिनिधि जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप काम करवाना चाहते हैं. जबकि अधिकारी नियम-कायदों में बंधे होते हैं. दोनों के इस अलग-अलग नजरिए के चलते भी टकराव की स्थितियां बनती हैं. इस टकराव में आम जनता का काम प्रभावित होता है. .यह सही बात है कि कई बार अधिकारियों पर ऐसे काम करने का भी दबाव होता है जो करने के लिए वह अधिकृत नहीं है या जो नियम-कायदों से परे है. .हालांकि उनका कहना है कि जो काम करना अधिकारी का कर्तव्य है और अगर वह उसे नहीं करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
बहरहाल, वैसे इन बातों से यह भी साबित नहीं हो जाता कि नौकरशाही में सभी संत हैं और सभी राजनेता एक जैसे हैं. नौकरशाही और राजनीति, दोनों में अच्छे और बुरे लोग हैं. . . . . माननीयों की ब्यूरोक्रेट्स से खींचतान और बयानबाजी से नुकसान जनता को हो रहा हैं. गरीबों को हक का निवाला नहीं मिल रहा हैं. .गरीबों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं हैं. अब माननीयों ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर बंम फोडा है तो कितना धमाका करता है ये देखना होगा. या फिर ये बंम भी ब्यूरोक्रेट्स के सामने फुस्स हो जाएगा.
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