जैन मुनियों की पालकी में होती है अंतिम यात्रा, लकड़ी के तख्ते पर देह और फिर लगती है बोली
Jain Sages : जैन मुनियों और साध्वियों की अंतिम यात्रा बिल्कुल अगल तरह की होती है. वैसे अंतिम यात्रा तक पहुंचने की प्रक्रिया भी बहुत कष्ट से भरी होती है. भोजन-पानी को छोड़ कर मृत्यु का वरण करने वाले जैन मुनियों और साध्वियों की अतिंम यात्रा डोली पर होती है, और इस दौरान बोली लगायी जाती है.
अंतिम यात्रा लेटा कर नहीं बैठाकर
सल्लेखना या संथारा में प्राण त्याग करने वाले जैन मुनियों की अंतिम यात्रा डोली या पालकी में होती है. लकड़ी के एक तख्ते पर पार्थिव देह को पद्म आसन की अवस्था में बैठकर , उनके हाथों और पैरों को ऐसे बांधकर रखा जाता है ताकि वो प्रार्थना की मुद्रा में रहें.
कैसा होता है अंतिम संस्कार
अंतिम यात्रा के बाद जैन मुनियों को मुखाग्नि दी जाती है और फिर जैन संतों या मुनियों की अस्थियों को विसर्जित नहीं किया जाता है. अगर किसी संत की समाधि बनाई जाती है तो उनकी अस्थियों को कलश में रखकर जमीन में गाड़ देते हैं और उसके ऊपर समाधि बना दी जाती है. सर्दी हो या गर्मी कभी स्नान नहीं करते जैन साधु-साध्वी, जानें कैसा होता है जीवन
कुछ दिन तक दिया जाता है भोजन, फिर बंद
संथारा में जैन मुनि खुद ही भोजन पानी बंद कर देते हैं. कोई जबरदस्ती नहीं होती है. अपनी इच्छा से देह को त्याग दिया जाता है. इस प्रक्रिया में पहले नियमों के अनुसार भोजन दिया जाता है और फिर धीरे धीरे बंद कर दिया जाता है. इसके बाद जैन मुनि प्राण त्यागने के लिए भोजन ग्रहण नहीं करते हैं.
संथारा
जब जैन मुनियों को ज्ञात हो जाता है कि, अंतिम समय आ गया है. तो वो भोजन-पानी को त्याग देते हैं. जैन मुनियों की पवित्र प्रथा तब तक चलती है जब तक मृत्यु नहीं आ जाती. इसे अतिंम साधना भी कहा जाता है (हालांकि कुछ लोग इसे सही नहीं मानते हैं और इस मुद्दे को कोर्ट तक ले जाया जा चुका है )
अंतिम यात्रा में लगती है बोली
जैन समाज से जुड़े लोग दायां कंधा लगाने, बायां कंधा लगाने, गुलाल उछालने, सिक्के उछालने और अग्नि संस्कार समेत कई दूसरी बोलियां भी इस दौरान लगाते हैं. जो करोड़ों रुपये तक जा सकती हैं. बोली के जरिए इकट्ठा धन का इस्तेमाल जैन मंदिर निर्माण, गरीब कल्याण समेत दूसरे सामाजिक कामों में होता है.
जैन धर्म की अतिंम यात्रा
जैन मुनियों में जब किसी का अंतिम संस्कार होता है. तो उससे पहले अंतिम यात्रा में जैन समाज के लोग बोले लगते हैं. ये बोली वो लोग लगाते हैं जो अंतिम विदाई के वक्त डोली को कंधा देना चाहते हैं.