धनतेरस पर कीजिए जयपुर के प्रमुख महालक्ष्मी के मंदिरों के दर्शन, जानें क्या है महिमा और इतिहास
Jaipur News: हिंदू धर्म की मान्यताओं के आधार पर दीपावली के पर्व पर महालक्ष्मी का पूजन करने से घर में लक्ष्मी का आगमन होता है. इसलिए महालक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है. छोटीकाशी में भी प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर है,जहां दीपावाली के पर्व पर लाखों लोगों की भीड़ जुटती है और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए पूजन अर्चन की जाती है. आइए आपको इस दिवाली करवाते हैं प्राचीन महालक्ष्मी मंदिरों के दर्शन-
हर मंदिर की एक विशेषता और एक अलग कहानी
लाइट फेस्टिवल के नाम से पहचाने जाने वाले दिवाली के पर्व के दिन सभी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करते हैं ताकि घर में मां लक्ष्मी का आगमन हो लेकिन आज हम आपको मां लक्ष्मी के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बेहद ही खास है. हमारे देश में हर मंदिर की एक विशेषता और एक अलग कहानी है. शहर के प्रमुख महालक्ष्मी के मंदिर शहर स्थापना के समय से खासा महत्व रखते हैं.
पुराना महालक्ष्मी मंदिर
रोचक इतिहास के साथ ही यहां माता लक्ष्मी की अलग अलग रूपों की प्रतिमाएं मनोकामना पूर्ण करने वाली हैं. शहर बसने के समय का लगभग 250 साल से अधिक साल पुराना महालक्ष्मी मंदिर. नाहरगढ़ रोड पर स्थित लाल हाथियों के मंदिर के पास स्थित हैं. यह प्रतिमा एक पाषण से बनी है. जगत जननी राजराजेश्वरी माता के इस प्रकार के एकल विग्रह का अपने आप में मिलना अद्भुत अस्मिता लिए हुए होता है, जो जयपुर शहर के अंदर मात्र दो जगह है. दिवाली के पर्व पर माता के स्वरूपों की हर घर में पूजा की जाती है इस स्वरूप की विशेष पूजा आराधना का फल है. महंत हनुमान सहाय शर्मा ने बताया कि एक शिला से निर्मित मां लक्ष्मी की प्रतिमा हाथी पर विराजमान हैं. मां के चार हाथों में से दो हाथों में कमल फूल, एक हाथ में वेद के अलावा हाथी कलशों से माता का अभिषेक कर रहे हैं. युवाचार्य पं. धर्मेश शर्मा ने बताया कि जयपुर के अलावा अन्य जगहों से भी दर्शनार्थी मनोकामना लेकर मंदिर पहुंचते हैं. इसके साथ ही दिवाली पर सवामण से अभिषेक होगा, 16 श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती हैं. दिनभर भक्तों का दर्शनों के लिए तांता लगा रहता हैं.
माता महालक्ष्मी का गज लक्ष्मी स्वरूप
आपको अब आगरा रोड स्थित महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन करवाते हैं. 156 साल से प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर आगरा रोड स्थित अग्रवाल कॉलेज के सामने है. इस मंदिर में माता महालक्ष्मी का गज लक्ष्मी स्वरूप है. माता के विग्रह के ऊपर दोनों तरफ हाथियों के द्वारा अमृत वर्षा के रूप में सुवर्ण कलश से अमृत वर्षा की जा रही है. इस स्वरूप का निर्माण एक पत्थर से ही किया गया और वह एक शिलाखंड के अंदर उकेरा गया, जो करीब 156 साल से अधिक पुराना है. दीपावली के दिन माता का तीन बार शृंगार होता हैं. सुबह काली पोशाक, दोपहर में लाल रंग की पोशाक में माता का शृंगार होता हैं. वहीं शाम को गुलाबी रंग की पोशाक में माता भक्तों को दर्शन देती हैं. वहीं हर शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी के रूप में माता की पूजा होती है. कई भक्त रोजाना सुबह अपनी दुकानों व प्रतिष्ठानों पर जाने से पहले माता के दर्शन करते हैं.
मनोकामना पूरी होती
दीपावली के दिन मंदिर में तडक़े 5.30 बजे और दोपहर 1 बजे माता का अभिषेक होता हैं. शाम सवा सात बजे लक्ष्मीजी की विशेष आरती के बाद खीर और खाजा (मैदा की पपड़ी) का भोग लगाया जाता हैं. इस विग्रह की स्थापना जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय के शासनकाल में सन 1865 में की गई थी. इसकी स्थापना सन 1865 में पंचद्रविड़ श्रीमाली ब्राह्मण समाज द्वारा की गई थी. श्रीमाली ब्राह्मणों की कुलदेवी होने से इस प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर में सेवा पूजा भी इसी समाज के ब्राह्मण करते हैं. यह एक मात्र ऐसा मंदिर होगा, जहां लक्ष्मी जी गज लक्ष्मी के रूप में विराजित है. मां लक्ष्मी यहां दो हाथियों पर सवार है. मंदिर में सेवा पूजा कर रहे पुजारी का कहना हैं की दीपावली पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है कि मनोकामना पूरी होती है. अविवाहित लड़कियों के मां लक्ष्मी के पूजन से शादी भी जल्दी होती है, जहां भी श्रीमाली ब्राह्मण रहते हैं, वहीं पर मां लक्ष्मी जी का मंदिर जरुर होता है. जयपुर वेधशाला का निर्माण करने वाले अपने प्रधान राज्य ज्योतिषी पंडित केवलराम श्रीमाली के पूर्वजों को करीब 200 साल पहले जयपुर लाया गया था, तब जयपुर में महालक्ष्मी के पूजन के लिए मंदिर का निर्माण किया गया था.
लक्ष्मीनारायण बाईजी मंदिर
अब आपको बड़ी चौपड़ स्थित लक्ष्मीनारायण बाईजी मंदिर के दर्शन करवाते हैं. जयपुर की स्थापना के समय महाराजा जयसिंह ने एक मीणा सरदार भवानी राम मीणा को जयगढ़ के खजाने की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी. जयपुर में वास्तु के नजरिए से तीन चौपड़ बनाई गई और इन चौपड़ों पर मां दुर्गा, महालक्ष्मी व सरस्वती के यंत्र स्थापित किए गए. बड़ी चौपड़ पर धन की देवी महालक्ष्मी का यंत्र स्थापित करने के साथ महालक्ष्मी का शिखरबंध मंदिर बनवाया गया. सरदार भवानीराम की पुत्री बीचू बाई ने माणक चौक चौपड़ पर लक्ष्मीनारायण मंदिर बनवाने में विशेष सहयोग किया, इसीलिए इसे बाईजी का मंदिर भी कहा जाता है. करीब 70 फीट ऊंचे चार शिखरों का लक्ष्मीनारायण मंदिर दक्षिणी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है. उस समय जयसिंह राजदरबार के विद्वान ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान पंडित जगन्नाथ शर्मा के मार्गदर्शन में विधिपूर्वक महालक्ष्मी को मंदिर में विराजमान किया गया. यहां चांदी, सोना और बहुमूल्य माणक आदि रत्नों का व्यवसाय करनेवाले जौहरियों के लिए जौहरी बाजार बनाया. जौहरियों को बसाने के बाद चौपड़ का नाम भी माणक चौक रखा गया.
लक्ष्मी नारायण मंदिर
अब आपको वहीं बिड़ला मंदिर, मोती डूंगरी किले के समीप मंदिर के दर्शन करवाते हैं. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित ये मंदिर हैं. प्रारंभ में यह लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से प्रचलित था. शुद्ध सफेद संगमरमर से बना बिडला मंदिर परंपरागत प्राचीन हिन्दू मंदिरों से विपरीत, एक आधुनिक दृष्टिकोण के साथ बनाया गया था. मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी व अन्य देवी-देवताओं की, संगमरमर के पत्थर से तराशी गई सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं. यह मंदिर अपनी बारीक नक्काशी के काम के लिए भी प्रसिद्ध है. मंदिर की दीवारों पर खुदे धार्मिक चिन्हों, पौराणिक घटनाओं, गीता के श्लोक और उपनिषद इस मंदिर की सुंदरता में चार-चांद लगाते हैं. देवी-देवताओं की मूर्तियों के अलावा इस मंदिर में कई महान संतों व गौतम बुद्ध की तस्वीरें भी रखी गई हैं. इस मंदिर के चारों ओर हरा-भरा उद्यान और परिसर में एक छोटा सा संग्रहालय भी स्थित है.
धन की कमी नहीं होती
बहरहाल, यह हम सभी जानते हैं कि मां लक्ष्मी ''धन की देवी'' हैं. मां लक्ष्मी को जो भक्त सच्चे मन से पूजा-पाठ करता है, उसके घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है, इसलिए भक्त मां लक्ष्मी का दर्शन करने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों में मौजूद लक्ष्मी मंदिर का दर्शन करने पहुंचते हैं. धनतेरस और दिवाली के दिन लगभग हर घर में मां लक्ष्मी की पूजा बड़े ही उत्साह के साथ की जाती है. कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे दिल से पूजा पाठ करता है उसपर मां का आशीर्वाद बना रहता है.