राजस्थान में फैली एक ऐसी बीमारी, जिसका इलाज सिर्फ मौत
Bagru News: घोड़ों में पाई जाने वाली ग्लैंडर्स नामक बीमारी ने राजस्थान में दस्तक दे दी है और इसका संक्रमण फैलने का खतरा मंडराने लगा है. ये बीमारी ज्यादा खतरनाक इसलिए भी है कि संक्रमण घोड़े के संपर्क में आने वाले इंसानों को भी अपनी चपेट में ले सकती है.
Bagru, बगरू: राजस्थान में गोवंश में फैले लंपी वायरस का कहर अभी थमा भी नहीं था कि इसी बीच पशुओं में फैली एक और गंभीर बीमारी ने पशु चिकित्सा महकमे को सकते में डाल दिया है. दरअसल घोड़ों में पाई जाने वाली ग्लैंडर्स नामक बीमारी ने राजस्थान में दस्तक दे दी है और इसका संक्रमण फैलने का खतरा मंडराने लगा है. ये बीमारी ज्यादा खतरनाक इसलिए भी है कि संक्रमण घोड़े के संपर्क में आने वाले इंसानों को भी अपनी चपेट में ले सकती है. राजधानी जयपुर के बगरू कस्बे में भी एक घोड़ी के ग्लैडर्स वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई है.
राजकीय प्रथम श्रेणी पशु चिकित्सालय एवं पशुपालन विभाग बगरू के नोडल अधिकारी डॉ राजेंद्र सिंह ने बताया कि कस्बे के सिराज खान की घोड़ी के ग्लैडेंर्स वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि होने पर निदेशालय पशुपालन विभाग के आदेश पर गठित पशुपालन विभाग बगरू की कमेटी ने घोड़ी को यूथेनाइज कर वैज्ञानिक विधि से घोड़ी के शव का निस्तारण किया.
नोडल अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (NRCE) हिसार की रिपोर्ट से घोड़ी में ग्लैंडर्स रोग होने की पुष्टि होने के बाद घोड़ी मालिक सिराज खान को सूचना दी गई. इसके बाद आज घोड़ी को कमेटी के सदस्य डॉ संदीप सिंह, डॉ प्रमोद यादव, डॉ रोहिताश कुमार के साथ नगरपालिका बगरू एवं उप तहसील बगरू के प्रतिनिधि की उपस्थिती में घोड़ी को यूथेनाइज कर नगर पालिका प्रशासन के सहयोग से घोड़ी के शव का वैज्ञानिक विधि से निस्तारण किया.
नोडल अधिकारी डॉ राजेंद्र सिंह ने बताया कि ये घोड़ा प्रजाति में फैलने वाला खतरनाक संक्रमण है. यह संक्रमण रोगी पशु से दूसरे पशु में फैलता हैं और रोगी पशु से मनुष्य में भी फैल सकता है. इस कारण घोड़ी को भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की गाइडलाइन अनुसार, यूथेनाइज किया है. घोड़ी मालिक को एस्केड योजना के अंतर्गत नियमानुसार सहायता राशि दी जाएगी. इस दौरान पशु पालन विभाग के जानकीलाल मीणा रामजीलाल आदि उपस्थित थे.
संक्रमित होने पर नहीं होता इलाज
दरअसल घोड़ों को चपेट में लेने वाली इस बीमारी को ग्लैंडर कहा जाता है, जो घोड़ा इसके संक्रमण की चपेट में आ जाता है, उसका कोई उपचार नहीं होता, यदि घोड़ा ग्लैंडर्स पॉजिटिव पाया जाता है, तो उसे (यूथेनाइज) मार दिया जाता है. उस इलाके के 5 किलोमीटर तक के एरिए में रहे जानवरों की भी जांच की जाती है, ऐसे में संक्रमित घोड़े की देखभाल करने वाले पालक की भी जांच की जाती है. गधा, खच्चर आदि में इसका संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा रहता है.
बीमारी के ये हैं लक्षण
ये ग्लैंडर वायरस जनित बीमारी है अगर किसी घोड़े को ये बीमारी होती है तो उसके नाक से तेज पानी बहने लगता है. शरीर में फफोले हो जाते हैं. सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है. साथ ही, बुखार आने के कारण घोड़ा चुस्त हो जाता है. यही बीमारी की पहचान है. एक जानवर से दूसरे जानवर में ये बीमारी फैल सकती है. यह बीमारी आमतौर पर घोड़ों में होती है. इस बीमारी से मुकाबला करने के लिए अभी तक दुनिया में कोई दवा इजाद नहीं हुई है.
25 हजार रुपये तक का मुआवजा
यदि किसी घोड़े को ग्लैंडर्स वायरस का संदिग्ध माना जाता है तो उसके ब्लड की जांच करने के लिए राजस्थान में कोई उचित व्यवस्था नहीं है. इसके सैंपल को हरियाणा के हिसार में स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र भेजा जाता है. वहां दो चरणों में इसकी जांच की जाती है. उसके बाद रिपोर्ट को अंतिम रूप देकर जारी किया जाता है. अगर कोई घोड़ा ग्लैंडर वायरस संक्रमित होता है, तो उसे मार दिया जाता है. इसके बाद मालिक को केंद्र सरकार मुआवजे के तौर पर 25 हजार रुपये तक का मुआवजा देती है, जबकि संक्रमित गधा और खच्चर की मौत होने पर उसके मालिक को 16 हजार रुपये तक का मुआवजा दिया जाता है.
संक्रमण के कारण और बचने के उपाय
वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ राजेंद्र सिंह ने बताया कि यदि किसी घोड़े में घांव, खरोच, कट लगा होने से 1 से 5 दिन में संक्रमण हो सकता है. ऐसा होने पर पशुओं से दूर रहें. घोड़ों को निमोनिया, पल्मोनरी एबसिसेस, प्लुरल इफ्युजन होने की स्थिति में फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है. बीमार होने पर पशुओं से दूर रहें, मास्क लगाकर काम करें. उन्होंने कहा कि ग्लैंडर्स का समय पर इलाज नहीं किया जाए तो 7 से 10 दिन में यह मौत का कारण बन सकता है इसलिए पशुओं में लक्षण दिखते ही डॉक्टर से जांच करवाएं.
Reporter- Amit Yadav