Padma Awards 2023 Rajasthan: राष्ट्रपति ने 2023 के लिए पद्म विभूषण और पद्म भूषण पद्मश्री सम्मान की घोषण कर दी. राजस्थान के मशहूर गजल गायक अहमद हुसैन और मुहम्मद हुसैन के अलावा मूल चंद सोढ़ा और लक्ष्मण सिंह को भी पद्म श्री पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाएगा. अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन को संयुक्त रूप से कला के क्षेत्र में पद्मश्री अवार्ड के लिए चुना गया है. जबकि मूलचंद लोढ़ा और लक्ष्मण सिंह को सामाजिक कार्य के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री दिया गया.आइये जानते है सबसे पहले उस्ताद अहमद हुसैन और मुहम्मद हुसैन के बारे में-


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उस्ताद अहमद हुसैन और मुहम्मद हुसैन भारत के राजस्थान सूबे के शहर जयपुर से दो भाई हैं जो क्लासिकी गजल गायकी करते हैं. उनके वालिद साहिब का नाम उस्ताद अफजल हुसैन है जो गजल और ठुमरी के उस्ताद माने जाते थे. सुरीली आवाज का जादू बिखेरने वाले उस्ताद अहमद हुसैन और उस्ताद मोहम्मद हुसैन की जोड़ी का नाम आज भी गजल प्रेमियों की पसंदीदा जोड़ियों में शुमार है.


दोनों भाइयों की गजलों की लगभग 65 एल्बम


अब तक दोनों भाइयों की गजलों की लगभग 65 एल्बमें बाजार में आ चुकी है. इनमें कुछ एल्बमों के नाम गुलदस्ता, हमख्याल, मेरी मोहब्बत, द ग्रेट गजल्स, कृष्ण जनम भयो आज, कशिश, रिफाकत, याद करते रहे, नूर-ए-इस्लाम आदि प्रमुख है. यदि हम सम्मानों की बात करें तो हमें राजस्थान सरकार द्वारा स्टेट अवार्ड, राजस्थान संगीत नाटक अकेडमी अवार्ड, 'बेगम अख्तर अवार्ड', नईदिल्ली, उ.प्र. सरकार द्वारा 'मिर्जा गालिब अवार्ड', महाराष्ट्र सरकार द्वारा 'अपना उत्सव अवार्ड' आदि अनेक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है.


मूलचंद लोढ़ा ने समाजिक क्षेत्र में विशिष्ट सेवा दी


भारत सरकार ने इस साल पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी है. इस सूची सामाजिक क्षेत्र में अति विशिष्ट सेवा कार्यों के लिए पद्मश्री मूलचंद लोढ़ा को पद्म भूषण सम्मान से नवाजने का एलान किया है. मूलचंद लोढ़ा ने सामाजिक क्षेत्र में अति विशिष्ट सेवा प्रदान की. इन्होंने आपातकाल में लोगों की आंखों की पीड़ा को समझकर दूसरों से मदद लेकर नेत्र हॉस्पिटल खोला. अब तक 15 हजार लोगों को आंखों में रोशनी दी है. संघ के प्रचारक रहे मूलचंद लोढ़ा आपातकाल के दौरान डूंगरपुर और बांसवाड़ा में प्रचारक थे. इनके द्वारा डूंगरपुर के वागदरी में खोले गए अस्पतालों में निशुल्क आंखों के ऑपरेशन, अनाथालय और स्कूल का संचालन हो रहा है.


लक्ष्मण सिंह समाजिक क्षेत्र में दुनिया भर में  मिसाल बने


लक्ष्मण सिंह अपने जीवन में सामाजिक क्षेत्र में कार्यों की शुरुआत शिक्षा क्षेत्र में दी. खुद पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई कर लगभग 40 से 50 स्कूल खोलकर शिक्षादान दिया. इसके बाद उन्होंने राजस्थान में पेयजल संकट को देखते हुए तालाबों का निर्माण कराया. जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर लापोड़िया गांव में रहने वाले लक्ष्मण सिंह ने आज से करीब 40 साल पहले अपने गांव की सूरत बदलने का बीड़ा उठाया था. तब उनको इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनके द्वारा किया गया प्रयास एक मिसाल बनेगा.


लक्ष्मण सिंह का जन्म जयपुर के लापोड़िया गांव में हुआ था. उन्होंने पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई अपने लापोड़िया गांव से ही की. तब गांव में आगे पढ़ाई के लिए स्कूल नहीं था. इसलिए पढ़ाई करने के लिए लक्ष्मण सिंह अपने ननिहाल जयपुर चले गए.लक्ष्मण सिंह ने गांवों में स्कूल चलाने के लिए एक अभियान की शुरूआत की. जिन गांवों में स्कूल नहीं थे, वहां लक्ष्मण सिंह ने स्कूल खोले और सभी पढ़े-लिखे लोग बारी-बारी से इन स्कूलों में पढ़ाना शुरू किया.


तीन मिशन पर किया काम


लक्ष्मण सिंह ने पहले गांव की शिक्षा व्यवस्था को ठीक किया उसके बाद जल संरक्षण और तीसरा पौधरोपण को लेकर राजस्थान में उस वक्त नई लकीर खींची जब ना तो व्यवस्था ही और ना ही साधन. इन तीनों कामों से लक्ष्मण सिंह ने गांवों की बड़ी समस्याओं को काफी हद तक सुलझा दिया. धीरे-धीरे लक्ष्मण सिंह ने गांवों में 40 से 50 स्कूल खोलकर शिक्षा के क्षेत्र में मिसाल कायम कर दिये थे.


पानी की किल्लत को देखते हुए तालाब बनाने की ठानी


इसके बाद लक्ष्मण सिंह ने नई चुनौती ली. राजस्थान में पानी की किल्लत को देखते हुए तालाब बनाने की ठानी. गांव के लोगों के साथ मिलकर कई तालाब बनाने का काम किया. लक्ष्मण सिंह ने इसके बाद अपने गांव के युवकों को संगठित करने के लिए ‘ग्राम विकास नवयुवक मंडल लापोड़िया’ बनाया. यह कोई रजिस्टर्ड संस्था नहीं थी. लेकिन फिर भी इसके 80 सदस्य अपने गांव में तालाब बनाने के काम में सहयोग करने के लिए स्वयंसेवा करने को तैयार रहते थे.


अपने गांव के तालाबों को ठीक करने के बाद लक्ष्मण सिंह ने अपनी संस्था के लोगों को दूसरे गांवों में भी लोगों को तालाब बनाने के लिए प्रेरित करने भेजा. लक्ष्मण सिंह ने राजस्थान के लोगों ने जीवण में विशेष योगदान के लिए इनके द्वारा किये गए कार्यों की आज भी सराहना की जाती है.