Rajasthan News : राजस्थान की जनता का मिजाज एक बार फिर नेताओं के लिए रहस्य बन गया है. यह तय करना मुश्किल हो गया है कि जनता किस पर भरोसा कर रही है, भाजपा पर या कांग्रेस पर. नवंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर भाजपा को मौका दिया, लेकिन कुछ ही महीनों बाद हुए लोकसभा चुनाव में स्थिति पलट गई. जहां भाजपा सभी 25 सीटों पर जीत का दावा कर रही थी, वहीं जनता ने उसे 14 सीटों पर ही सीमित कर दिया. यह अचानक परिवर्तन कैसे हुआ, यह सवाल नेताओं के लिए अबूझ पहेली बन गया है.


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कांग्रेस के लिए यह चुनावी परिणाम संतोषजनक रहे, क्योंकि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट न जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार 11 सीटों पर जीत हासिल की. 3 सीटों पर गठबंधन के जरिए और 8 सीटों पर अपने दम पर जीत दर्ज की. इस जीत से उत्साहित राजस्थान कांग्रेस के नेता हरियाणा विधानसभा चुनाव में जुट गए, लेकिन वहां की जनता ने उनके लिए एक अलग ही तस्वीर पेश की. 


हरियाणा में कांग्रेस को लगा झटका



हरियाणा चुनाव के नतीजे कांग्रेस की उम्मीदों के उलट आए, जिससे नेताओं को गहरा झटका लगा. जनता का मिजाज बदलना नेताओं के लिए एक चुनौती है, लेकिन 'राजनीति में स्थायी कुछ नहीं होता,' जैसा कि चर्चिल ने कहा था. आज जो हवा आपके पक्ष में बह रही है, कल वह किसी और दिशा में चल सकती है.


राजस्थान में क्या कहता है जनता का मूड



लोकसभा चुनाव के बाद जोश में आए राजस्थान के कांग्रेस नेता, हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से हतोत्साहित हो गए. अब उन्हें आगामी सात विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों की चिंता सता रही है. कांग्रेस के नेताओं को समझ नहीं आ रहा कि जनता का मूड आखिर क्या है. अगर लोग कांग्रेस की नीतियों से खुश नहीं थे, तो उन्होंने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ क्यों दिया? और अगर भाजपा की नीतियों से खुश हैं, तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को क्यों हराया? अब यह सवाल कांग्रेस के नेताओं को परेशान कर रहा है कि इन सात विधानसभा सीटों पर जनता किसका समर्थन करेगी.


क्यों बढ़ी कांग्रेस की चिंता?



कांग्रेस की चिंता इसलिए भी बढ़ी हुई है क्योंकि उसे चार सीटों को बचाने के साथ-साथ तीन और सीटों पर जीत दर्ज करनी है. रामगढ़ (अलवर), दौसा, झुंझुनूं और देवली-उनियारा सीटें कांग्रेस के पास हैं, जिन्हें बनाए रखना उनके लिए जरूरी है. इसके अलावा, खींवसर, चौरासी और सलूंबर सीटों पर जीत हासिल करना भी उनकी प्राथमिकता है. दूसरी ओर, भाजपा के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि इन सात सीटों में से केवल सलूंबर सीट भाजपा के पास थी. ऐसे में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को उपचुनावों को लेकर अधिक चिंता सता रही है.