Rajasthan Politics: राजस्थान की राजनीतिक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि विधायक बनने से पहले किसी प्रत्याशी को मंत्री बनाया गया हो,लेकिन फिर भी चुनावी मैदान हार मिली. मामला श्रीकरणपुर विधानसभा चुनाव का है, जहां भाजपा प्रत्याशी सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी को मंत्री दिया गया,लेकिन उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी. इस चुनाव में कांग्रेस के रूबी कुन्नर की जीत से साबित हो गया कि राजस्थान में पॉवर पर हमेशा सहानुभूति की लहर भारी रही है.


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 पिछले उपचुनावों में भी इसी प्रकार के मामले सामने आए थे जब विधायकों की मौत के बाद उनके परिजनों को जीत मिली थी. 


श्रीकरणपुर विधानसभा क्षेत्र की जनता ने सियासी सबक का नया इतिहास रचा. बीजेपी ने चुनाव जीतने के लिए पूर्व मंत्री और प्रत्याशी सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को मंत्री बनाया. मंत्रीमंडल में भी उस क्षेत्र की जरूरत के हिसाब से कृषि विप्पणन,कृषि सिंचित क्षेत्र विकास एवं जल उपयोगिता विभाग,इंदिरा नहर विभाग दिया ताकि जीत का मार्ग प्रशस्त हो सके, लेकिन फिर भी टीटी को हार का मुंह देखना पड़ा.


 कांग्रेस प्रत्याशी रूपिंदर सिंह कुन्नर ने बीजेपी के सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को 11283 वोटों से हारा दिया.सरकार में होने बावजूद हुई इस हार ने भाजपा को आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया.भजनलाल सरकार बनने के बाद पहली बार हुए चुनाव में भाजपा ने टीटी को मंत्री पद की शपथ दिलाकर बड़ा प्रयोग किया,लेकिन वो विफल रहा.भजन लाल सरकार अपनी पहली सियासी परीक्षा में फेल हो गई.


लोकसभा चुनावों में विश्लेषण को मजबूर 


दूसरी ओर भाजपा में हार के कारणों पर विश्लेषण की बात कही जा रही है, विश्लेषण जरूरी भी है, क्योंकि पांच महीने बाद ही लोकसभा चुनाव होने है. भाजपा की हार के पीछे हार के कई कारण माने जा रहे हैं इनमें चार प्रमुख कारण ये हैं. पहला- पार्टी ने नये चेहरे पर भरोसा नहीं करके टीटी को लगातार 7वीं बार टिकट दिया,जबकि टीपी 2018 के चुनाव ने तीसरे स्थान पर हे थे,जिसकी वजह से स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी रही और पार्टी इस भितरघात पर पार नहीं पा सकी. 


दूसरा बीजेपी ने विधायक बनने से पहले ही टीटी को मंत्री बना और ओवर कॉन्फिडेंस दिखाया.कांग्रेस ने बीजेपी के इस मास्टर स्ट्रोक को जनादेश का अपमान बताते हुए अपने पक्ष में माहौल खड़ा किया.


ज्यादा सक्रीय दिखाई नहीं दिया


तीसरा सबसे बड़ा कारण राष्ट्रीय नेतृत्व से तो दूर प्रदेश के कोई बड़ा चेहरा इस चुनाव में ज्यादा सक्रीय दिखाई नहीं दिया, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी और सीएम भजन लाल शर्मा ने एक सभा,जबकि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे इस चुनाव के प्रचार से दूर दिखाई दी. चौथा और बड़ा कारन सहानुभूति फैक्टर का लाभ कांग्रेस को मिला .


राजस्थान में सहानुभूति कार्ड 


श्रीकरणपुर विधानसभा चुनाव के परिणाम ने इस बात को फिर सही साबित कर दिया कि प्रदेश की जनता पावर और पद को नहीं बल्कि सहानुभूति पर मतदान करती है.पूर्व विधायक गुरमीत सिंह के पुत्र रूपिंदर सिंह कुन्नर को उतारकर,गुरमीत की पत्नी ने बेटे के लिए झोली फैलाकर वोट मांगा तो सहानुभूति कार्ड चला. 


सहानुभूति का दांव सफल..


ऐसा नहीं है कि सहानुभूति का पहला चुनाव हो जिसमे जीत मिली हो,इससे पहले पिछली सरकार में हुए उपचुनाव का ट्रेंड भी देखे तो जहां पर भी पार्टी ने दिवंगत विधायक के परिवार के सदस्य को प्रत्याशी बनाया तो उसे जीत मिली है.फिर सत्ता में हो या सत्ता से बहार,दिवंगत परिवार से बहार जाकर पार्टी ने प्रयोग करने की कोशिश की तो जनता ने उसे नकार दिया.भाजपा हो या कांग्रेस,सहानुभूति का दांव सफल ही रहता आया है.


इन मामलों चल चुका था सहानुभूति कार्ड


पिछली सरकार में हुए उपचुनावों में सुजानगढ़ से मास्टर भंवरलाल के पुत्र मनोज मेघवाल की जीत इसकी उदाहरण हैं.वल्लभनगर में गजेंद्र सिंह शक्तावत की पत्नी प्रीति,सहाड़ा में कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री,राजसमंद में किरण माहेश्वरी की पुत्री दीप्ति माहेश्वरी भी प्रबल उदाहरण हैं , जिन्हे सहानुभूति की लहर पर जीत मिली.


खेत सिंह को चुनावी मैदान में उतरा


2021 के उपचुनाव में बीजेपी ने धरियावद विधानसभा सीट पर हुए चुनाव में नया प्रयोग कर दिवंगत विधायक गौतम लाल मीणा के बेटे कन्हैया लाल को टिकट न देकर खेत सिंह को चुनावी मैदान में उतरा तो भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था . यानी मतलब साफ़ राजस्थान की जनता पावर को नहीं बल्कि स्वाभिमान को चुनती है और सहानुभूति पर मतदान करती है.


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