जयपुर:9 साल पहले गठित हुई राजस्थान पुलिस की इस फॉर्स ने अब तक बचाई 10 हजार जानें
Rajasthan: एडीजी एसडीआरएफ सुष्मित बिश्वास का कहना है कि साल 2013 में एसडीआरएफ का गठन होने के बाद जवानों को 2 साल की ट्रैनिंग करवायी गयी. साल 2016 से SDRF के जवानों को प्रदेश में संभाग स्तर पर तैनात कर दिया गया.
Jaipur: गुजरात के मोरबी में हुए पुल हादसे के बाद वहां एनडीआरएफ के योगदान से कई लोगों की जान बचायी जा सकी और शव भी एनडीआरएफ के गोताखोरों ने गहरे पानी से निकाले. राजस्थान में 9 साल पहले एनडीआरएफ की तर्ज पर ही SDRF का गठन किया गया, जिसके बाद से कई तरह की प्राकृतिक आपदाएं होने पर प्रदेश के किसी भी हिस्से में तुरंत सहायता मिलने लगी. SDRF के जवानों को एनडीआरएफ के प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण दिलवाया गया.
एडीजी एसडीआरएफ सुष्मित बिश्वास का कहना है कि साल 2013 में एसडीआरएफ का गठन होने के बाद जवानों को 2 साल की ट्रैनिंग करवायी गयी. साल 2016 से SDRF के जवानों को प्रदेश में संभाग स्तर पर तैनात कर दिया गया. जिन्होंने आपदाओं से निपटाते हुए लोगों की जान बचाने का काम शुरू कर दिया. अब तक के आंकड़ों की बात करे तो एसडीआरएफ ने प्रदेश में अलग-अलग तरह की आपदाओं में फंसे 10 हजार से अधिक लोगों की जान बचायी है.
प्रदेश में एसडीआरएफ के गठन से पहले किसी भी तरह की आपदा में एनडीआरएफ से मदद मांगी जाती थी. एनडीआरएफ के जवान गुजरात से आते थे, जिसके चलते आपदा में रेस्क्यू शुरु करने में ही काफी देरी हो जाती थी. गुजरात एनडीआरएफ के कुछ जवान अजमेर में भी तैनात थे, लेकिन वे पूरे राजस्थान को सहायता करने के लिए नाकाफी थे, लेकिन 9 साल पहले तैयार की गयी एसडीआरएफ की ये फोर्स अब किसी भी आपदा से मुकाबला करने के लिए हाईटेक संसाधनों के साथ मौजूद है. जो कि समय पड़ने पर कई बार दूसरे राज्यों के भी काम आ चुके है.
साथ ही एडीजी सुष्मित बिश्वास का कहना है कि प्रदेश की एसडीआरएफ को काफी मजबूत बनाया गया है. सीबीआरएन रेस्क्यू यानी की केमिकल बायोलॉजिकल रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर डिजास्टर के दौरान किसी तरह के रसायन या गैस का रिसाव होने पर लोगों को बचाने के लिए एसडीआरएफ के जवानों को विशेष ट्रेनिंग और विशेष किस्म के उपकरण दिए गए हैं. मुख्य रूप से एक्वेटिक डिजास्टर मैनेजमेंट यानी की बाढ़ राहत में बेहतर काम कर रही है और पिछले कुछ वर्षों से राजस्थान में बाढ़ प्रभावित इलाकों में फंसे हुए लोगों का बड़े पैमाने पर रेस्क्यू किया गया है. एक्वेटिक डिजास्टर मैनेजमेंट में फास्ट वाटर रेस्क्यू और डीप वाटर रेस्क्यू जैसे सेगमेंट शामिल है. इसी तरह से कॉलेप्स स्ट्रक्चर यानी की किसी इमारत के ढ़हने या मिट्टी में दबे लोगों का रेस्क्यू करने की भी विशेष ट्रेनिंग दी गई है. इसके साथ ही एसडीआरएफ का प्रत्येक जवान एमएफआर यानी कि मेडिकल फर्स्ट रिस्पांडर की ट्रेनिंग से पूरी तरह प्रशिक्षित है, जो हर तरह की आपदा में फंसे हुए लोगों को मेडिकल रिलीफ पहुंचाने में भी सक्षम है.
डीप डाइविंग की तो राजस्थान एसडीआरएफ के पास जो संसाधन मौजूद है. उनके जरिए पानी में 35 फीट और 70 फीट तक की गहराई तक डीप डाइविंग की जा सकती है. बिना संसाधनों के इतनी गहराई तक डाइव नहीं की जा सकती और यदि जुगाड़ के साथ ऐसा किया जाता है तो यह गोताखोर और राहत पाने वाले व्यक्ति दोनों के लिए जानलेवा सिद्ध हो सकता है. डीप डाइविंग के लिए एसडीआरएफ के जवानों को महाराष्ट्र के कोलाड जिला और पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हार्ड ट्रेनिंग दी जाती है. जवानों को हुगली नदी और बंगाल की खाड़ी में डीप डाइविंग की कठोर ट्रेनिंग दी जाती है. इसके साथ ही इमारत ढहने पर चलाए जाने वाले रेस्क्यू और रसायन और गैस रिसाव के दौरान किए जाने वाले रेस्क्यू की ट्रेनिंग जवानों को एनडीआरएफ और भारत के अलग-अलग जिलों में बने हुए ट्रेनिंग सेंटर पर दी जाती है. एसडीआरएफ को सबसे लेटेस्ट और उन्नत किस्में के संसाधन मुहैया करवाए गए हैं, जिनकी ट्रेनिंग भी सभी यूनिट को दी गई है.
आपको बता दें कि SDRF को और अधिक हाइटेक बनाने के लिए फिलहाल ट्रैनिंग कैंप चलाया जा रहा है. आपदा के समय जवान 70 फीट से अधिक गहरे पानी में जाकर रेस्क्यू कर सके. इसके लिए भी जल्द ट्रैनिंग शुरु की जायेगी. प्रदेश में 10 हजार से अधिक लोगों की जान बचाने वाली ये फॉर्स आने वाले समय में और अधिक हाइटेक संसाधनों की बदोलत किसी भी तरह की आपदा में प्रदेशवासियों के लिए काफी मददगार रहेगी.
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