जयपुर न्यूज: असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक विजयदशमी पर्व 24 अक्टूबर को देश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाएगा. गली, मोहल्ला, विकास समिति की ओर से होने वाले रावण के पुतले छोटी काशी जयपुर में बनकर तैयार हो रहे हैं. दशहरे के अवसर पर शहर के विभिन्न हिस्सों में रावण के पुतलों को खरीदने में आमजन में खासा उत्साह देखने को मिलता है.


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रावण के पुतलों की संख्या में हर साल अच्छी वृद्धि हो रही है. जयपुर शहर में रावण के पुतलों बनाने की मंडी कई जगह लग रही है. विभिन्न रंगों में विभिन्न साईज के रावण के पुतले खरीदने के लिए लोगों में खासा उत्साह नजर आ रहा है. जयपुर के गुर्जर की थड़ी में रावण के पुतले बनाने वाले कारीगर ने बताया पुतलों की बिक्री ने अभी जोर नहीं पकड़ा है. 20, 21 तारीख के बाद पुतले खरीदने वालों की भीड़ मोल भाव करती हुई नजर आने लगेगी. 


2 फीट से 15 फीट के पुतलों की ज्यादा मांग हैं. इस साईज के पुतलों को ले जाना और दहन के स्थान पर लगाना आसान होने के साथ साथ ये सस्ते भी होते है. पिछले कुछ सालों से ''रावण मंडी'' के नाम से मशहूर स्थान गोपालपुरा बाईपास के आसपास पांच छह स्थानों पर विभिन्न साईज के अलग अलग रंगों के बड़ी संख्या में रावण के पुतले बिक्री के लिये तैयार है.



कारीगर ने बताया हर साल रावण के पुतलों की मांग बढ़ रही है. साल के दो महीने परिवार के लोग रावण के पुतले बनाने में व्यस्त रहते है और बाकी समय दूसरा काम करते है. एक फीट से 50 फीट की ऊंचाई में मिलने वाले पुतलों को लकड़ी के बांस और रंगीन कागज की सहायता से तैयार किया जाता है. 100 रूपये से 15000 रूपये की कीमत वाले रावण के पुतले में पटाखों की कीमत शामिल नहीं की जाती है. रावण के पुतले बनाने वाले एक अन्य कारीगर ने बताया कि मध्यम साईज के पुतलों को खरीदने वाले अधिकतर लोग युवा होते हैं जबकि ज्यादा उंचाई वाले पुतलों की मांग कम होती है.


अधिकतर मध्यम साईज के पुतले स्थानीय कॉलोनियों के अनुसार खरीदे जाते है. बड़े पुतले केवल ग्राउंड में मेले को आयोजित करने वाले ही खरीदते है. रावण मंडी के अलावा जयपुर में रावण के पुतले मानसरोवर, टोंक रोड, सांगानेर, प्रतापनगर में भी खूब बिकते हैं. कारीगरों में महंगाई का हवाला देते हुए कहा पुतले में काम आने वाली सभी वस्तुएं महंगे दामों में खरीदनी पड़ती है.


जैसे कि बांस, तार, कागज, कपड़ा, मैदा सभी की कीमतें आसमान छू रही है, ग्राहक सब जगह रावण के पुतले की कीमत पूछताछ करके आता है. जहां उसे सस्ता मिलता है. वहीं से वह रावण का पुतला दहन करने के लिए लेकर जाता है. इसी के साथ ही कई बार रावण दहन के समय मौसम की मार भी झेलनी पड़ती है, जिसके कारण पर पुतले बारिश में भीग कर खराब हो जाते हैं, जिससे कारीगर की सारी मेहनत बरसात के पानी में बह जाती है.


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