इस माता के मंदिर में 56 भोग और शराब का लगता है भोग, भक्तों के हाथ से मां पीती हैं शराब
Shardiya Navratri 2023: जयपुर के कोटपूतली के डाबला रोड स्थित ग्राम सरूंड में सरूंड माता का मंदिर अपने आप में विशेष महत्व रखता है. माता का मंदिर गाँव की एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है.
Shardiya Navratri: राजस्थान की राजधानी जयपुर के कोटपूतली के डाबला रोड स्थित ग्राम सरूंड में सरूंड माता का मंदिर अपने आप में विशेष महत्व रखता है. माता का मंदिर गाँव की एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है. इस मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की 9 दिनों तक मेले जैसा आयोजन होता है. जिसमे भारी भीड़ रहती है. राजस्थान समेत पुरे देश के कोने- कोने से हजारों की तादाद में श्रद्धालु, माता के दर्शन करने आते हैं. और अपनी मन्नते मांगते है.
महाभारत कालीन शुभ नवरात्र यह मंदिर ग्राम सरूंड में एक पहाड़ी पर स्थित है. जिस पर पहुंचने के लिए 284 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. कहा जाता है कि मंदिर में मां की मूर्ति पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान स्थापित की थी. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मंदिर में स्थापित चिलाय देवी मां की मूर्ति पांडवों की कुल देवी का ही रूप है. किवदंती है कि माता की मूर्ति के मदिरा का भोग लगने की बात सुनकर 16वीं सदी में मुगल बादशाह अकबर ऊंटों पर मदिरा का जखीरा लेकर आया था. लेकिन हर बार मंदिर की आधी चढ़ाई में ही ऊंटों पर रखी मदिरा खाली हो जाती थी. ऐसा देख मुगल बादशाह अकबर को भी झुकना पड़ा था. इसके बाद अकबर ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. मूर्ति पहाड़ी पर एक गुफा में स्थित है. जिसमें सात द्वार से होकर गुजरना पड़ता है.
दिल्ली छोड़ने के बाद माता की मूर्ति की दुबारा से स्थापना
दिल्ली से युद्ध हारने के बाद राजा अंतपाल को माता स्वप्न मे आकर दुबारा मूर्ति की स्थापना करने बात कही जिसके बाद राजा अंतपाल ने पांडवो द्वारा स्थापित की गई मूर्ति के दबने के बाद वापस निकाला और फिर से मूर्ति की स्थापना विक्रम समवंत 1052 दुबारा की गई. बताया जाता है राजा अंतपाल तोमर दिल्ली मे युद्ध हार गये थे जिसके बाद घायल होने पर माता ने चील का रूप धारण कर अपने पंजो से उठाकर राजा को कही दूर छोड़ा था जिसके बाद से माता का नाम चिलाये माता के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ.
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सीढ़ियों के मार्ग में माता के बने हैं पदचिन्ह
मान्यता है कि रात्रि के समय में सिंह पर सवार होकर माता रानी भ्रमण करती है. मंदिर पर चढ़ाई के दौरान आधे रास्ते में माता के पदचिन्ह आते हैं, जबकि मंदिर के परिक्रमा मार्ग में पुजारियों के अनुसार 52 भैंरू, 56 कलवा, 64 योगिनी, 9 नृसिंह व 5 पीर क्षेत्रपाल के रूप में स्थित है. इसके अलावा 500 वर्ष पुरानी बावड़ी, छतरी एवं गुफा के बीचों-बीच हनुमानजी का भी ऐतिहासिक मंदिर भी स्थित है.
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विशेष तीन दिवसीय भरता है मेला
यहां नवरात्र की सप्तमी से नवमी तक तीन दिवसीय मेला भरता है. सप्तमी की रात्रि को जागरण भी होता है. इसके अलावा प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष अष्टमी को भी जागरण का आयोजन होता है. मंदिर का पाटोत्सव वैशाख शुक्ल षष्टी से नवमी तक लगातार चार दिन तक प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है.