Jaipur: राजधानी में ई-ग्रास चालान के जरिए राज्य सरकार (State Government) को करोड़ों रुपये के राजस्व नुकसान पहुंचाने वाला गिरोह जयपुर (Jaipur) में सक्रिय है. यह गिरोह ई-ग्रास चालान के जरिए अलग-अलग विभागों में सांठगांठ करके राज्य सरकार को स्टाम्प खरीदने, रजिस्ट्रियां करवाने समेत कई मामलों में करोड़ो रुपये के राजस्व का नुकसान पहुंचाया है.


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पिछले दिनों जब जयपुर के पंजीयन एवं मुद्रांक शाखा (Registration & Stamps Branch) में केस सामने आया और उसके बाद रैंडमली अन्य केसों की जांच की गई विभाग के अधिकारियों के होश उड़ गए. इस मामले में पंजीयन एवं मुद्रांक विभाग के कर्मचारियों के अलावा रजिस्ट्री करवाने वाले कुछ एजेंटों की भी भूमिका संदिग्ध लग रही है.


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जयपुर सहित चार जिलों में रजिस्ट्री कराने वाले करीब 500 से ज्यादा लोग ठगी का शिकार हो गए हैं. पहले से यूज किये हुए ई-ग्रास से 500-600 दस्तावेजों की रजिस्ट्री करवाकर करीब 9 से 10 करोड़ का राजस्व गबन का मामला सामने आया है. मामला NIC अजमेर की डेटा माइनिंग सेल ने जब रैंडम जांच की तो ये पूरा मामला खुलकर सामने आया. विशेषज्ञों और मुद्रांक एवं पंजीयन शाखा में ही काम करने वाले कर्मचारियों की माने तो यह बिना मिलीभगत के संभव नहीं है क्योंकि ई-ग्रास का चालान जब उपयोग होता है तो उसके जीआरएन नंबर को डिएक्टिवेट किया जाता है.


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डिएक्टिवेट करने के बाद वह चालान (जीआरएन नंबर) दोबारा दूसरी जगह उपयोग नहीं होता. यहां मिलीभगत करते हुए विभाग में काम करने वाले कर्मचारी उस नंबर को डिएक्टिवेट नहीं करते ताकि उस चालान को कहीं दूसरे विभाग में भी काम में लिया जा सके. इस मामले में मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग के अधिकारी कुछ खास जवाब नहीं दे रहे क्योंकि अधिकारियों का कहना है कि वे भी समझ नहीं पा रहे कि इस मामले में चालान को डिएक्टिवेट नहीं किया गया या तकनीकी रूप से चालान डिएक्टिवेट नहीं हुआ हालांकि इस मामले की जांच अब अतिरिक्त महानिरीक्षक मुद्रांक एवं पंजीयन (विजीलेंस) की ओर से शुरू कर दी है.


यूं समझिए मामले
केस-1- अलवर के रहने वाले कुलदीप मीणा ने 21 जनवरी को एक युगल किशोर मीणा निवासी मीणा कॉलोनी आमेर से एक सम्पत्ति खरीदी थी. इस सम्पत्ति की रजिस्ट्री उपपंजीयन कार्यालय सेकंड (जयपुर) के ऑफिस में करवाई. इस रजिस्ट्री पर 2.64 लाख रुपये की स्टाम्प ड्यूटी, सरचार्ज और पंजीयन शुल्क बना. जिसे आवेदक ने ई-ग्रास चालान के जरिए अपने एजेंट के माध्यम से जमा करवाया. इस ई-ग्रास चालान का गर्वमेंट रेवेन्यू नंबर (जीआरएन) 0046659341 था. रजिस्ट्री होने के बाद बाद विभाग ने रजिस्ट्री के दस्तावेज भी कुलदीप को दे दिए. अगस्त में जब पता चला कि जिस ई-ग्रास चालान को इस रजिस्ट्री में लगाया गया है, उसका पैसा खाते में आया ही नहीं. ई-ग्रास चालान को जब डिएक्टिवेट करने की प्रोसेस की गई तो पता चला कि वह पहले से डिएक्टिवेट हो चुका है और वह चालान कहीं दूसरे विभाग में उपयोग हो चुका है. ऐसे में उक्त चालान के पेटे जो राशि 2.64 लाख रुपये सरकारी खाते में नहीं आने पर उपपंजीयन कार्यालय सेकंड ने 24 सितम्बर को कुलदीप मीणा को एक नोटिस जारी कर स्टाम्प ड्यूटी, सरचार्ज और पंजीयन शुल्क के पेटे की राशि जमा करवाने का डिमाण्ड नोटिस भेजा. 7 दिन में जमा करवाने वरना कानूनी कार्यवाही की चेतावनी जारी की.


केस-2- बस्सी निवासी विक्रेता मदनलाल ने क्रेता राधेश्याम निवासी सांगानेर के हक में 14 दिसंबर 2020 को विक्रय पत्र पंजीयन और मुद्रांक विभाग जयपुर द्वितीय में तस्दीक करवाया. मुद्रांक शुल्क 5.28 लाख रुपये नीति पत्र लेखक योगेंद्र उर्फ जोगेंद्र कुमार के मार्फत अर्जुन लाल चौधरी को नकद दिया. इसके पेटे फर्जी कूट रचित ई-चालान बनाया गया, जो पहले से काम मे लिया हुआ था. उसके बाद विभाग ने क्रेता-विक्रेता को वसूली नोटिस जारी कर दिया.


केस-3- मालपुरा निवासी विक्रेता राकेश कुमार ने क्रेता सांगानेर निवासी शंकरलाल के हक में 10 फरवरी 2021 को डीआईजी द्वितीय में तस्दीक करवाया. मुद्रांक शुल्क के 1.76 लाख रुपये का फर्जी कूट रचित ई-चालान बनाकर दे दिया गया. 


केस-4- सांगानेर निवासी विक्रेता रामजीलाल शर्मा मथुरावाला ने क्रेता विनीत के हक में 5 मई को जयपुर द्वितीय में दस्तावेज दस्दीक करवाए. इसके शुल्क के 90 हजार रुपये का फर्जी कूट रचित ई-चालान दिया गया.
क्या कहना है मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग के आईजी महावीर प्रसाद का मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग के आईजी महावीर प्रसाद का कहना है कि राजस्व गबन मामले की जांच डीआईजी स्टांप जयपुर को दी गई है. एक सप्ताह में जांच रिपोर्ट आ जाएगी. आरोपियों और लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई की जाएगी. 


मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग से जुड़े अधिकारियों की माने तो जयपुर के 5 उप-पंजीयन कार्यालयों के अलावा 3 अन्य जिलों के उप पंजीयन कार्यालयों में इस तरह के केस सामने आए हैं. भीलवाड़ा, बांसवाड़ा और भरतपुर में भी मामले पकड़ में आए है. उधर डीआईजी स्टाफ वीरेंद्र मीणा का कहना है कि मामला सामने आने के बाद जब दस्तावेजों की जांच की गई थी. बहरहाल, फर्जी ई-चालान से रजिस्ट्री करवाने का यह खेल कब से चल रहा था अब इसकी जांच में मुद्राक एवं पंजीयन विभाग के अफसर जुटे हुए हैं. लेकिन सवाल ये है कि जब मुद्रांक एवं पंजीयन विभाग के खाते में पैसा नही आया तो फिर रजिस्ट्री करवाने वालों को रजिस्ट्री डॉकूमेंट्स कैसे दिए गए?


क्या सिस्टम में इतना लीक है कि पंजीयन और मुद्रांक शुल्क के अधिकारियों को पता तक नहीं लगा. विभाग ने कोई विभागीय जांच भी नहीं करवाई. अब मकानों, भूखंडों की रजिस्ट्रियां करवाने वाले लोगों को पंजीयन और शुल्क की राशि जमा कराने के नोटिस जारी कर दिए गए. जबकि वो तो खुद ही ठगी का शिकार हो गए हैं.