Harem: मुगल बादशाहों के साथ जब भी मुगल सल्तनत की बात होती है तो उनके हरम (Harem) को लेकर भी जिक्र किया जाता है. अरबी शब्द हराम से हरम शब्द बना है. जिसका मतलब बताया गया है वर्जित या पवित्र. अभयारण्य फारसी में हरम का मतलब होता है. महल संस्कृत में हरम्या का कहा जाता है.


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बेहद खास दर्जा मुगल काल में हरम को दिया गया था. ऐसे माना जाता है कि सैकड़ों महिलाएं तमाम मुगल बादशाहों की हरम में हुआ करती थीं. इतिहासकार सर थॉमस कोरयाट की माने तो 1000 महिलाएं मुगल बादशाह जहांगीर ने अपनी हरम में खुद अपने लिए रख रखी थी.


एक दूसरे लेखक थॉमस रो के मुताबिक हजारों महिलाएं मुगलों के हरम में हुआ करती थीं. इतिहासकार राणा सफवी के अनुसार जितनी महिलाएं मुगल हरम में होती थीं उन्हीं में बादशाह के साथ शारीरिक संबंध बनाने का मौका महज 5 फीसदी को महिलाओं को ही मिलता था. अन्य महिलाएं रोजना के काम देखती थी.


पहली बार हरम को संस्थागत दर्जा बादशाह अकबर के शासन काल में दिया गया. जिसके बाद इसका नाम ‘महल’रखा गया. हरम में लोगों को विभिन्न पद भी दिए गए. नाज़िर-ए-महल हरम के मुख्य अधिकारी को कहा गया जो आम तौर पर एक हिजड़ा ही हुआ करता था. महिलाओं या हिजड़ों को ही हरम में रखा जाता था. सम्मानित परिवारों की महिलाओं को हरम में तैनाती अकबर के शासनकाल में मिली. जिसके बाद उन्हें ‘दरोगा’ का दर्जा मिला.  अस्मत बेगम नूरजहां की मां हरम की दरोगा हुआ करती थीं.


किसी भी पुरुष को हरम के अंदर जाने की परमिशन नहीं होती थी. उस समय ‘ख्वाजा सार’ भी हिजड़ों को कहा जाता था. बादशाह की सुरक्षा के जिम्मेदार यही हरम कें अंदर  होते थे.राणा सफवी dailyo के मुताबिक बादशाह जब भी हरम के अंदर जाते थे तो हिजड़े उनके आस-पास एक घेरा बना लेते थे. तुर्की और कश्मीरी महिलाओं को हरम के अंदर गार्ड ड्यूटी के लिए मुगल सल्तन में रखा गया.इसके पीछे का कारण ये था कि वो महिलाएं स्थानीय भाषा को समझ नहीं पाती थी और इसी वजह से लीक होने या जासूसी का डर नहीं होता था.


हरम के अंदर जिन महिलाओं-हिजड़ों की तैनाती होती थी उनको सैलेरी भी मिलती थी. दरोगा को सबसे अधिक 1000 रुपये महीने की सैलेरी दी जाती थी.वहीं नौकरों को दो रुपए महीना सैलरी मिलती थी. 17वीं शताब्दी के इतालवी लेखक निकोलाओ (Niccolao Manucci) की माने तो जब भी कोई हरम में बीमार होता था तो हकीम को बुलाया जाता और हकीम को पूरी तरह से कवर के बाद ही हरम में ले जाया जाता था.अंग्रेज यात्री-लेखक जॉन मार्शल (John Marshall) के अनुसार हकीम मरीज के पूरे शरीर पर एक रूमाल रगड़ता था. इसके बाद इस रूमाल को पानी के एक जार में रखा जाता था और इसकी सुगंध से हकीम बीमारी का पता लगाता था.मुगल इतिहास (Mughal History) के जानकार और मशहूर लेखक प्रो. आर नाथ (R. Nath) की माने तो अंडरग्राउंड कोठरी या फांसीघर हरम के अंदर होता था.