UCC prepared in Uttarakhand: Uniform Civil Code यानी UCC एक बार फिर चर्चा में है. समान नागरिक संहिता पूरे देश में उत्तराखंड की पहल पर लागू होने जा रही है. यूनिफॉर्म सिविल कोड विशेषज्ञ समिति अंतिम रूप देकर जल्द ही सरकार को सौंपने का ऐलान किया है. नागरिक संहिता का प्रारूप तैयार करने के लिए जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई (सेनि) की अध्यक्षता ने दिल्ली में इस संबंध में घोषणा की. ऐसे में जानें की समान नागरिक संहिता (UCC)  क्या है और इसके क्या फायदे हैं.


उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट हुआ तैयार


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शादी, तलाक़, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में भारत में विभिन्न समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग क़ानून हैं. हालांकि, देश की आज़ादी के बाद से समान नागरिक संहिता या यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (UCC) की मांग चलती रही है. इसके तहत इकलौता क़ानून होगा जिसमें किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव की परवाह नहीं की जाएगी. यहां तक कि संविधान कहता है कि राष्ट्र को अपने नागरिकों को ऐसे क़ानून मुहैया कराने के 'प्रयास' करने चाहिए. लेकिन एक समान क़ानून की आलोचना देश का हिंदू बहुसंख्यक और मुस्लिम अल्पसंख्यक दोनों समाज करते रहे हैं.


उत्तराखंड में सिविल कोड लागू करने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड विशेषज्ञ समिति कुछ अहम सिफारिशें की है. ऐसे में जल्द ही यूसीसी (UCC) में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने पर अहम फैसला आ सकता है. जिसके बाद  हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समेत किसी भी धर्म के लोगों के महिलाओं को परिवार और मां बाप की संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा. 


बेटियों की शादी की उम्र को लेकर होगा बदलाव


बेटियों की शादी की उम्र को लेकर भी Uniform Civil Code में बड़ा फैसला हो सकता है. भारत में 1978 से लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है. मौजूदा कानून के मुताबिक, देश में पुरुषों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 और महिलाओं की 18 साल है.  मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक कोई भी मुसलमान अपने शरियत और शर्तों के आधार पर जिसमें कुछ शब्द भी शामिल हैं साथ शादी कर सकता है लेकिन उत्तराखंड यूसीसी के तहत किसी भी पुरुष और महिला को बहु विवाह करने की अनुमति नहीं होगी. दूसरी और मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत कोई भी मुसलमान शर्तों के साथ 4 शादियां कर सकता है. लेकिन उत्तराखंड में प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के तहत किसी भी पुरुष और महिला को बहुविवाह करने की अनुमति नहीं होगी.


बुजुर्गों को मिलेगी राहत


उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए यूसीसी के तहत लिव इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन के प्रावधान पर भी विचार किया गया है. इसके साथ एक प्रस्ताव यह भी है कि परिवार की बहू और दामाद को भी अपने ऊपर निर्भर बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी निभानी होगी. 


UCC में बराबर हक की वकालत


उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता में यह प्रस्ताव दिया जा सकता है कि किसी भी धर्म की महिला को संपत्ति में समान अधिकार मिलना चाहिए. इस नियम से मुस्लिम महिलाओं को अधिक अधिकार मिल सकता है. हालांकि अब तक पैतृत संपत्ति के बंटवारे की स्थिति में पुरुष को महिला के मुकाबले दोगुनी संपत्ति मिलती है, लेकिन UCC में बराबर के हक की वकालत की जाएगी. इस तरह किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाली महिलाएं संपत्ति में बराबर की हकदार होंगी. 


गोद ली जाने वाली संतानों को मिलेगा हक


यूनिफॉर्म सिविल कोड विशेषज्ञ समिति पैनल ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि लड़कियों की शादी के लिए लड़कों की तरह ही कर दी जाए. इसके साथ गोद ली जाने वाली संतानों के अधिकारों को लेकर भी बड़ा फैसला हो सकता है. हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत दत्तक पुत्र या पुत्री को भी जैविक संतान के बराबर करेगी हक मिलता है, लेकिन मुस्लिम, पारसी और यहूदी समुदायों के पर्सनल लॉ में बराबर हक की बात नहीं है. अगर UCC लागू होता है, तो देशभर में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम लागू होंगे.


दो से ज्यादा बच्चे होने पर हो जाएंगे वंचित


यूनिफॉर्म सिविल कोड उत्तराखंड में अहम बदलाव लाने जा रहा है. बेटियों को संपत्ति बंटवारे, अधिकार और शादी की उम्र को लेकर कुछ मुस्लिम संगठनों की ओर से विरोध हो सकता है. यूनिफॉर्म सिविल कोड एक्सपर्ट कमेटी ने जनसंख्या नियंत्रण कानून को भी सम्मिलित किया है. यदि राज्य में किसी भी जाति समुदाय में दो से ज्यादा बच्चे होते हैं तो उसे चुनाव में वोटिंग के अधिकार से वंचित किया जाएगा. इसके साथ ही उन्हें सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं के लाभ नहीं मिल सकेंगे


मुस्लिम समाज के लिए कई बड़े बदलाव


मुस्लिम समाज में हलाला और इद्दत की रस्म है, जिसे यूसीसी लागू होने के बाद खत्म कर दिया जाएगा. मुस्लिम समाज में हलाला का प्रचलन है. बता दें कि निकाह हलाला एक प्रक्रिया है जिसके हिसाब से अगर आपने अपनी पत्नी को तीन बार तीन तलाक दे दिया तो आप उससे तब तक दोबारा विवाह नहीं कर सकते जब तक वो एक बार फिर किसी और से शादी न कर ले. साथ ही वह अपने दूसरे पति के साथ शारीरिक संबंध भी बनाए.  यहीं नहीं, तलाक लेने के लिए पति और पत्नी के आधार अलग-अलग हैं, लेकिन यूसीसी के बाद तलाक के समान आधार लागू हो सकते हैं. इसके साथ ही यूसीसी में अनाथ बच्चों की गार्जियन शिप की प्रक्रिया को आसान और मजबूत बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया है.


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आम तौर पर, पति द्वारा तलाक़ दी गयी महिला के लिए यह अवधि तीन महीने होती है, लेकिन अगर शादी के पश्चात सहवास नहीं हुआ तो कोई 'इद्दत' नहीं होती है. जिस महिला के पति की मृत्यु हो गई हो, उसके लिए इद्दत पति की मृत्यु के बाद के चार महीने और दस दिन होती है, चाहे शादी के पश्चात सहवास हुआ हो या नहीं. अगर कोई गर्भवती महिला विधवा हो जाती है या उसका तलाक हो जाता है, तो 'इद्दत तब तक चलती है जब तक संतान का जन्म नहीं हो जाता. जिसे यूसीसी लागू होने के बाद खत्म कर दिया जाएगा.


उत्तराखंड में UCC का ड्राफ्ट तैयार


उत्तराखंड (Uttarakhand) में समान नागरिक संहिता (UCC) का ड्राफ्ट तैयार गया है. ये ऐलान एक्सपर्ट कमेटी ने किया है. अगर यूसीसी कानून बनता है तो अल्पसंख्यकों के पर्सनल लॉ पर लगाम लगेगी और सिविल मामलों में भी सभी को एक कानून मानना पड़ेगा. बता दें कि मई 2022 को उत्तराखंड समान नागरिकता संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था. इस समिति ने अपने गठन के बाद से लेकर मसौदा तैयार करने तक ढाई लाख से अधिक सुझाव ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से प्राप्त किए. यूनिफॉर्म सिविल कोड समिति इस संबंध में 13 जिलों में लोगों के साथ सीधे संवाद कर चुकी है, जबकि नई दिल्ली में प्रवासी उत्तराखंडियों से भी कई मुद्दों पर चर्चा की गई.