उपराष्ट्रपति धनखड़ की न्यायपालिका को हद में रहने की दी नसीहत, कहा- दूसरों के क्षेत्राधिकार में ना दें दखल
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कानून बनाने की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के दखल पर नाराजगी जताते हुए कहा संसद को कानून बनाने के लिए किसी दूसरी संस्था की मान्यता की ज़रूरत नहीं है, अगर किसी संस्था ने इसे अमान्य किया तो यह लोकतन्त्र के लिए खतरा है.
जयपुर: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका एख दूसरों के क्षेत्राधिकार में दखल देना बंद करें. अगर इस तरह की दखलांदाजी बढ़ेगी तो यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है. धनकड़ ने संसद की सर्वोच्चता की पैरवी करते हुए कहा कि देश की संसद के बनाए कानून को किसी भी आधार पर अगर कोई दूसरी संस्था अमान्य करती हैं? तो यह लोकतन्त्र के लिए ठीक नहीं है. अगर ऐसा हुआ तो यह कहना भी मुश्किल होगा कि क्या हम वाकई लोकतान्त्रिक देश हैं.
देशभर के विधानमण्डलों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार तय हैं? और किसी को भी दूसरे के कार्य क्षेत्र में दखल करने का आधिकार नहीं है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती हैं? और न न्यायपालिका इसमें दखल दे सकती है.
कार्यपालिका को तो कानून को फॉलो ही करना होगा. धनखड़ ने कहा कि विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका तीनों ही संवैधानिक संस्थाएं हैं और सबको अपनी हद में रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि क्या संविधान में संशोधन के लिए संसद के अधिकार को किसी और संस्था पर निर्भर माना जा सकता है? धनखड़ ने कहा कि, क्या भारत के संविधान में कोई नया थिएटर हैं? जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाए हैं उस पर हमारी मुहर लगेगी तभी कानून होगा.
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ऑल इंडिया स्पीकर कॉन्फ्रेंस में धनकड़ ने बेबाकी से रखी अपनी बात
बुधवार को जयपुर में ऑल इंडिया स्पीकर कॉन्फ्रेंस में उद्घाटन सत्र में बोलते हुए धनखड़ ने केशवानन्द भारती मामला का ज़िक्र करते हुए उसे गलत परम्परा बताया. उपराष्ट्रपति ने कहा कि साल 1973 में एक बहुत गलत परंपरा चालू हुई. केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने बेसिक स्ट्रक्चर का ज़िक्र करते हुए कहा कि ससंद संविधान संशोधन तो कर सकती है, लेकिन इसके बेसिक स्ट्रक्चर को नहीं. उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका के प्रति सम्मान जताते हुए कहा कि वे कोर्ट के इस विचार से सहमत नहीं हैं. धनखड़ ने कहा कि संसद बदलाव कर सकती है. उन्होंने पूछा, यह सदन बताए कि क्या इसे किया जा सकता है ? क्या ससंद को यह अनुमति दी जा सकती है कि उसके फैसले को कोई और संस्था रिव्यू करें.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि जब उन्होंने राज्यसभा के सभाापति का चार्ज लिया तब कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है. ससंद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए घातक होगा. उन्होंने कहा कि संसद ने 2015 में ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी कानून पारित किया, जिसे सर्वसममति से पारित किया गया. 16 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया. उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के सामने ससंद की संप्रभुता से समझौता कैसे हो सकता है.
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ससंद और विधानसभाओं का माहौल निराशाजनक
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि आज ससंद और विधानसभाओं में जो माहौल है, वह बहुत निराशाजनक है. हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधियों का बर्ताव संसद और विधानसभा सदनों में बहुत गिरता जा रहा है. इस निराशाजनक माहौल का समाधान निकाला जाए, इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है. ससंद और विधानसभा सदनों में जनप्रतिनिधियों के अशोभनीय बर्ताव से जनता नाराज है.
धनखड़ ने कहा कि राज्यसभा का सभापति बनने के बाद देशभर के लोगों से मेरी चर्चा हुई है. लोगों ने कहा कि यह क्या कर रहे हो? क्या यह कल्पना थी हमारी. यह समझ से परे हैं, गले नहीं उतरता कि संविधान की शपथ लेने वाले जनप्रतिनिधि ऐसे आचरण करते हैं. लोग सोचते हैं कि हमारे चुनकर भेजे हुए जनप्रतिनिधि रास्ता दिखाएंगे, समस्याओं का हल निकालेंगे, लेकिन वे नियमों का पालन नहीं करते. धनखड़ ने कहा कि सदन को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना गलत है. उन्होंने संविधान सभा का ज़िक्र करते हुए कहा कि उस वक्त कितनी अलग-अलग विचारधाराओं के लोग थे, लेकिन इस तरह का आचरण नहीं हुआ.