Samudra Manthan: क्षीरसागर में देवताओं और राक्षसों ने मिलकर अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया गया. जब मंथन शुरु हुआ तो सबको आखिर उस अमृत की तलाश थी जिसे पाने के लिए देवता और दानवों में होड़ मची हुई थी.ऐसे में दोनों ने परस्पर मंथन जारी रखा. इस मंथन में सबसे पहले कालकूट नामक विष जिसे हलाहल कहा जाता है वो निकला. विष निकलने के बाद 14 तरह के अद्भुत रत्न प्राप्त हुई थी जिसमें सबसे अंत में अमृत निकला. इस मंथन में हलाहल (विष),  कामधेनु, उच्चै श्रवा,ऐरावत, कौस्तुभ मणि,कल्पवृक्ष, रंभा,देवी लक्ष्मी,वारुणी(मदिरा), चंद्रमा, पारिजात पुष्प,पांचजन्य शंख,धन्वन्तरि और अंत में अमृत निकला. कहा जाता है कि इसके गंध और निकल रही तीव्र ज्वाला से सभी देवता तथा राक्षस बेचैन होकर त्राहिमाम करने लगे. इसे कहीं फेंका नहीं जा सकता था क्योंकि इसका तेज इतना था कि समस्त सृष्टि विनाश हो सकती थी. 


 समुद्र मंथन के दौरान जब देवता और दानव हुए परेशान


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अब तक हुए इस मंथन में अमृत निकलना बाकी था. अब देवता और दानव  दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि इस विष (हलाहल) का क्या किया जाए. अमृत तो सभी को चाहिए था ऐसे में इस विष का क्या करें इस बात की चिंता दोनों पक्षों को सता रही थी. जब देवता और दानवों को कोई उपाय नजर नहीं आया तो सभी मिलकर देवों के देव महादेव के पास सहायता मांगने पहुंच गए.


शिव से मांगी मदद तो खुद उठाया विष का प्याला


उन्होंने महादेव से कहा- महादेव अब आप ही हमलोगों का कल्याण कर सकते है और इस मंथन से निकले विष का क्या उपाय किया जाए इसे लेकर याचना करने लगे. महादेव ने देखा कि देवता और दानव इस हलाहल का कोई हल नहीं निकाल पा रहे है और इसे कहीं सृष्टि पर छोड़ा गया तो इस विष के द्वारा संपूर्ण सृष्टि का विनाश हो जाएगा. इसे ना तो किसी राक्षस में इतनी क्षमता थी और ना ही देवों में इसे ग्रहण करने की ताकत. तब स्वयं  देवों के देव महादेव ने ही इस हलाहल (विष)  को पीने का बीड़ा उठाया.


भगवान महादेव का कंठ नीला पड़ते ही माता पार्वती ने रोका


इसके पश्चात महादेव ने उस विष का प्याला लिया तथा एक पल में ही संपूर्ण विष को मंद- मंद मुस्काते हुए अपने कंठ में उतार लिया. कंठ तक आते आते भगवान महादेव का कंठ नीला पड़ने लगा. इसे देख माता पार्वती ने महादेव के कंठ पर फौरन हाथ रख दिया और  उस विष को नीचे उतरने से रोक लिया. जिसकी वजह से वह विष महादेव के कंठ में ही  स्थिर यानी रुक गया.


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इस विष का प्रभाव इतना ज्यादा था कि महादेव का कंठ नीला पड़ गया. तब से महादेव को नीलकंठ महादेव के नाम से पुकारा जाने लगा. कहा गया कि जब महादेव विष ग्रहण कर रहे थे इस दौरान इसकी कुछ बूंदे पृथ्वी पर गिर गई, जिसे साँप, बिच्छू जैसे विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया.इसलिए तो महादेव को तीनों लोक का स्वामी कहा गया है.