Alwar: आजाद भारत का अलवर जिला जो पहले अलवर रियासत हुआ करती थी. इस जगह का नाम अलवर क्यों पड़ा इसको लेकर अलग अलग तर्क है. उन्हीं में से एक तर्क ये है कि आमेर के महाराजा काकिल के दूसरे बेटे महाराज अलाघराज ने ग्यारहवीं शताब्दी में इस इलाके पर शासन किया. सन 1049 में अलाघराज ने अपने नाम पर अल्पुर शहर की स्थापना की जिसे आज अलवर कहते हैं. 


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अलवर नाम की उत्पति के पीछे का ये तर्क महाराजा जयसिंह के शासनकाल में हुए शोध से पता चलता है. जयसिंह ने अलवर पर करीब 40 साल तक राज किया. 1933 में अंग्रेजों ने जयसिंह को देश निकाला दे दिया था, अलवर रियासत में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन काफी तेज रहा. 1925 में हुए नीमूचला हत्याकांड ने देशभर में आंदोलन को उग्र किया. 


जयसिंह की सेना अक्सर ऐसे आंदोलनों को दबाती दिखी लेकिन अंग्रेजों का ये तर्क था कि अलवर महाराजा जयसिंह की मूक सहमति से ही ये सब हो रहा है. जिसकी वजह से 1933 में अंग्रेजों ने अलवर रियासत पर कब्जा कर लिया और जयसिंह को देश निकाला दे दिया. चार साल बाद 1937 में अलवर की सत्ता चंदपुरा के ठाकुर गंगासिंह के बेटे तेजसिंह को दी.  


वैसे अलवर महाराजा काफी पढ़े लिखे थे. उन्होंने अलवर की राजभाषा को उर्दू की जगह हिंदी बनाया. जयसिंह ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लिया था. उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि कई वायसराय उनके प्रभाव में रहे, लेकिन साल 1975 में एक किताब प्रकाशित हुई. आजादी आधी रात को. ये किताब डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिन्स ने लिखी.  डोमिनीक लापिएर फ्रांसीसी लेखक है और दूसरे लैरि कॉलिंस अमेरिकी लेखक थे. 1975 में प्रकाशित हुई किताब का साल 2004 में हिंदी अनुवाद किया गया. इस किताब में अलवर महाराजा को लेकर कई सनसनीखेज दावे किए गए है. जो बेहद ही विवादित है.  


दावा- खुद को श्री राम का अवतार मानते थे जयसिंह 


इस किताब के एक चैप्टर में आजादी से कुछ साल पहले भारत में राजे रजवाड़ों की स्थिति, उनकी ताकत, उनकी संपत्ति और निजी जीवन से जुड़ी बातों का जिक्र है. इसी सिलसिले में अलवर महाराज को लेकर भी उन्हौने लिखा है कि- जयसिंह ने खुद को भगवान राम का अवतार घोषित कर दिया था. उनके राज्य के समस्त आदेश श्रीराम के आदेश के रूप में जारी होते थे. वो हमेशा हाथों पर काले दस्ताने पहनते थे ताकि आम लोगों के स्पर्श से उनके हाथ अपवित्र न हो जाए. इंग्लैंड के बादशाह से हाथ मिलाने के लिए भी हाथों के दस्ताने नहीं उतारे.  


सबसे रौचक बात तो ये थी कि उन्होंने कई पंडितों को ये हिसाब लगाने में लगा रखा था कि पंडित ये हिसाब लगाकर बताएं कि भगवान श्रीराम की पगड़ी कितनी बड़ी थी ताकि वो भी उसी हिसाब से अपनी पगड़ी बनवाएं. 


दावा- भूखे शेर के आगे फेंक देते थे छोटे बच्चे 


किताब "आजादी आधी रात" को में डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिन्स ने अलवर महाराज को बेहद क्रूर दिखाया है. इस किताब में पशु क्रूरता के कई किस्से बताए है. जयसिंह की गिनती उस वक्त के गिने चुने निशानेबाजों में होती थी लेकिन वो एक तरफ खुद को भगवान मानते थे. दूसरी तरफ पशु क्रूरता की हदें पार कर देते थे. वो अक्सर शेर का शिकार करने निकलते थे. शेर को अपने निशाने के दायरे में लाने के लिए बकरी या दूसरे जानवर को उसके आगे नहीं फैंकते थे बल्कि इंसान के बच्चे को शेर के आगे फेंक देते थे. 


जब भी शेर उनके निशाने के दायरे में नहीं होता था तो वो अपने सिपाहियों को आसपास के इलाके में भेजते थे. जहां भी छोटा बच्चा दिखता था, सिपाही उठा ले आते थे. महाराजा जयसिंह उनके परिवार को ये विश्वास दिलाते थे. कि शेर के बच्चे तक पहुंचने से पहले ही वो शेर को मार गिराएंगे. लेकिन जब कभी निशाना चूक जाता था. तो शेर बच्चे का शिकार कर लेता था. 


दावा- वासना के लिए औरत नहीं मर्दों की होती थी जरूरत 


इस किताब में डोमिनीक लापिएर और लैरी कॉलिन्स ने अलवर महाराज के चरित्र को लेकर भी कई दावे किये है. किताब में किए दावे के मुताबिक अलवर महाराजा अपनी वासना तृप्त करने के लिए औरतों  की बजाय मर्दों को पसंद करते थे. अलवर रियासत के फौजी अफसरों के लिए तरक्की का रास्ता ही शाही बिस्तर से होकर जाता था. जिस युवा को फौज का अफसर बनना होता था. उसे एक बार शाही बिस्तर जरुर करना होता था. अफसर बनने के बाद भी ऐसे फौजियों को शाही रंगरेलियों का हिस्सा बनना पड़ता था. ऐसी ही रंगरेलियों के बीच कई बार युवा सिपाहियों या फौजी अफसरों का बेरहमी से कत्ल कर दिया जाता था.  


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महाराजा जयसिंह से नाराज क्यों हुए थे अंग्रेज? 
अंग्रेजों को किसी राजा से तब तक कोई समस्या नहीं होती थी जब तक वो उनके लिए कोई समस्या खड़ी न कर दें. अपने आप को भगवान राम का अवतार बताने वाली और मर्दों से हमबिस्तर होने वाले जयसिंह ने कुछ ऐसी गलतियां की जिसकी वजह से उन्हैं राजसत्ता से हाथ धोना पड़ा. 


पहली गलती 
ये बात उस दौर की है जब लॉर्ड विलिंग्डन वायसराय थे. एक बार वायसराय हाउस में जयसिंह को दावत पर बुलाया. इस दौरान लेडी विलिंग्डन की नजर उनकी अंगूठी पर पड़ी. उसने उस अंगूठी की तारीफ कर दी. परंपरा ये थी कि वायसराय या उसकी पत्नी को राजा की कोई चीज पसंद होती थी तो वो उन्हैं भेंट कर दी जाती थी. जयसिंह ने भी अंगूठी लेडी विलिंग्डन को भेंट कर दी. लेकिन वायसराय के पत्नी ने देखने के बाद अंगूठी लौटा दी. जयसिंह ने अपने वेटर को बुलाया. एक कटोरे में पानी मंगवाया और उस अंगूठी को वहीं धुला दिया. ताकि वायसराय के पत्नी के स्पर्श से वो अपवित्र न हो जाए.  


दूसरी गलती 
ये गलती पोलो मैदान में हुई थी. मैच शुरु होने से पहले राजा का घोड़ा हठ कर गया. वो अपने जगह से टस से मस नहीं हो रहा था. गुस्साए राजा जयसिंह ने मिट्टी का तेल मंगवाया. और वहीं पर घोड़े को आग लगा दी. इस गलती को वायसराय ने राजा की उस गलती से भी ज्यादा गंभीरता से लिया जो अपनी वासना तृप्त करने के लिए राजा मर्द सैनिकों के साथ करते थे.  


यहीं से वायसराय ने ने जयसिंह से उनकी रियासत छीनने की ठान ली थी. इसके बाद अलवर महाराजा को लेकर वायसराय ने हमेशा खराब रिपोर्ट ब्रिटेन भेजी. और फिर अलवर में हो रहे विद्रोह का हवाला देकर उनसे सत्ता छीन ली. 


हालांकि स्थानीय लोग विदेशी लेखकों के इन दावों पर विश्वास नहीं करते है. उनका ये मानना है कि विदेशी लेखकों ने भारतीय राजा महाराजाओं को छवि खराब करने के लिए उन्हैं क्रूर और चरीत्रहीन बताया है.


क्या अलवर महाराजा के खिलाफ अंग्रेजों ने किया था षड़यंत्र ?
इस किताब में जो दावे किये गए है. उसको लेकर कई सवाल भी खड़े होते है. क्योंकि स्थानीय जानकार भी ये मानते है. कि राजपरिवार को यहां की प्रजा बेहद सम्मान की नजर से देखती थी. ऐसे में क्या अंग्रेजों ने उस दौर में महाराजा के रवैये से परेशान होकर उनकी छवी को खराब करने की कोशिश की.


जब अंग्रेजी कंपनियों को दिखाई थी औकात
ये कहानी साल 1920 के आसपास की है. जयसिंह उस वक्त लंदन में थे. एक दिन वो सादे कपड़ों में रोल्स रॉयस के शोरुम पहुंचे. वो यहां लग्जरी गाड़ी देखने पहुंचे. लेकिन शोरुम के लोगों ने उनकी भारतीय शक्ल देखकर वहां से बाहर निकाल दिया. जिसके बाद महाराज अपनी होटल लौटे. शाही पहनावा धारण किया. और नौकरों को आदेश दिया को शोरुम में जाकर सूचित करो. कि अलवर महाराजा आ रहे है. शोरुम के लोगों ने महाराजा की आवभगत की पूरी तैयारी कर ली थी. जब महाराजा वहां पहुंचे तो वो लोग हक्के बक्के रह गए जिन्हौने उन्हैं वहां से लौटाया था.
महाराज ने उसी दिन वहां से रोल्स रॉयस की 6 लग्जरी गाड़ियां खरीदी. उसे भारत ले आए. और अलवर नगर पालिका को कचरा उठाने के लिए सौंप दी. दुनिया की लग्जरी गाड़ियों में गिनी जाने वाली गाड़ियों को जब कचरा उठाने में लगाया. तो ये कंपनी के लिए बेहद बेइज्जती वाला काम था.
इस कदम से रोल्स रॉयस की मजाक उड़ने लगी. आखिरकार कंपनी ने पत्र लिखकर महाराजा से माफी मांगी और गाड़ियों से कचरा उठाना बंद कराने का अनुरोध किया.


ऐसे में कुछ लोगों का ये भी तर्क है. कि अंग्रेज अधिकारियों ने उस दौर में अलवर महाराजा की छवि खराब करने के लिए ऐसा दुष्प्रचार किया. उन्हें गद्दी से हटाने के लिए उनको लेकर खराब रिपोर्ट ब्रिटेन भेजी गई. और फिर उन्हीं रिपोर्टों के सहारे विदेशी लेखकों ने किताबें लिखी. जो सच्चाई से काफी दूर है.