जैसलमेर में हटड़ी पूजा के बिना अधूरी रह जाती है दीपावली,ऐसा करने से बन जाता है खुदका मकान
Deepawali 2023: जैसलमेर अपनी संस्कृति, त्योहारों और परंपराओं को लेकर राजस्थान में एक अलग पहचान रखता है, दीपों के इस पर्व पर यहां हटड़ी पूजन का भी विशेष महत्व है. आखिर क्या है ये पूजा, दीपावली से जानें इसका कनेक्शन
Deepawali 2023: जैसलमेर अपनी संस्कृति, त्योहारों और परंपराओं को लेकर राजस्थान में एक अलग पहचान रखता है, दीपों के इस पर्व पर यहां हटड़ी पूजन का भी विशेष महत्व है. आखिर क्या है ये पूजा, दीपावली से जानें इसका कनेक्शन
राजस्थान समेत आज पूरा देश दीपावली मना रहा है, इसे में दीपावली के इस प्रकाश की चमक स्वर्ण नगरी जैसलमेर में भी दिखाई दे रही है. यहां कहा जाता है कि दीपावली का सेलिब्रेशन हटड़ी पूजा के बिना अधूरा माना जाता है,यहां इसीलिए दीपावली के दिन हटड़ी पूजन का विशेष महत्व है. आपको बता दें कि हटड़ी घोड़े की लीद से बनी होती है. हालांकि,अब बदलते समय के साथ-साथ स्टील व अन्य धातु से बनी हटड़ी का भी प्रचलन बढ़ा है, लेकिन मंगणियार परिवार द्वारा पारम्परिक तरीके से बनाई गई हटड़ी को बुजुर्ग लोग शुभ मानते हैं.
हटड़ी बनाना इनका खानदानी पेशा
जैसलमेर में फकीरचंद मिरासी बताते हैं कि हटड़ी निर्माण उनका खानदानी काम है, खास बात ये है कि ये रिवाज सिर्फ जैसलमेर में प्रचलित है.
यहां हटड़ी मां लक्ष्मी का स्वरूप मना जाता है, लेकिन एक बात यहां आपको बता दें कि हटड़ी के निर्माण से लेकर इसको देने तक का सब काम शुभ-अशुभ मुहूर्त देखकर किया जाता है. जानकारों कि मानें तो यह हटड़ी को घोड़े की लीद और एक विशेष स्थान से लाई गई मिट्टी से बनाई जाती है. विभिन्न आकृतियों के सांचे में ढालकर इसे आकर्षक बनाया जाता है.
आकृतियां बनाकर आकर्षक बनाया जाता
हटड़ी एक विशेष स्थान से लाई गई मिट्टी से बनाई जाती है. इसके बाद इस पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाकर आकर्षक बनाया जाता है.उन्होंने बताया कि दिवाली के दिन हटड़ी पूजन का विशेष महत्व है.केवल जैसलमेर में है. फकीरचंद ने बताया कि हटड़ी को एक प्रकार से लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है.उन्होंने बताया कि हटड़ी के निर्माण मिट्टी लाने से लेकर हटड़ी को बनाने और किसी को देने तक का काम शुभ और अशुभ का मुहूर्त देखकर ही किया जाता है.
हटड़ी निर्माण के कार्य संरक्षण की जरूरत
जैसलमेर में मंगणियार परिवार के लोग हटड़ी बनानें का काम करते हैं, लेकिन आधुनिकता के इस दौर में इस वास्तु कला को संवर्धन और संरक्षित करने की जरूरत है. क्योंकि अब बाजार में कृत्रिम और धातु से बनी हटड़ी भी आनें लगी हैं. जिससे हटड़ी की मौलिकता पर खतरा है. यदि नई पीढ़ी का इस ओर रुझान कम हुआ तो ये कला विलुप्त होने की कगार पर पहुंच जाएगी.
दीपावली पर ऐसा करने पर मिलता है घर
हटड़ी के पीछे एक और पौराणिक कथा है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जब लंका से रावण का वध करके आयोध्या लौटे थे तो लोगों ने उनके स्वागत में घी के दीप जलाए थे.इस बीच एक खास बात ये है कि जो लोग घरौंदा भी बनाया था,
घरौंदा का खास बात ये है कि जिन लोगों के पास मकान नहीं है, वो घरौंदा बनाकर पूजा करते हैं, उसे सुसज्जित करते हैं. इसे नगरी करण के जोड़कर भी देखा जाता है. ऐसा मना जाता है कि जो लोग घरौंदा बनाकर पूजा करते हैं, भगवान उनको अगले वर्षा खुदका मकान देते हैं.
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