Jaisalmer: जैसलमेर के लाधुराम बल्लानी 95 साल के हैं, लेकिन आज भी वे शादी का कोई कार्ड बाहर नहीं फेंकते हैं. गणेश भगवान में श्रद्धा के चलते ये संभव हो पाया.


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दरअसल, पिछले 50 सालों से जैसलमेर के चैनपूरा इलाके में रहने वाले बुजुर्ग लाधुराम बल्लानी बताते हैं कि भगवान का फोटो लगा होने के बाद भी लोग इसको कूड़े-कचरे में कैसे फेंक सकते हैं. इसलिए वे बताते हैं कि करीब 50 साल पहले जब उन्होने घर में कोई शादी का कार्ड देखा और पाया कि शादी का कार्यक्रम खत्म होने के बाद वो अब किसी काम का नहीं है और उसको बाहर कचरे में फेंका जाना है तो मुझे बहुत बुरा लगा. बस उस दिन के बाद से ही ये सिलसिला ये जुनून शुरू हो गया जो आज भी कायम है.


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लोहे के ट्रंक में ताले में बंद है करीब 50 हजार कार्ड
लाधुराम बल्लानी 95 साल के होने के बाद भी इन कार्ड का ख्याल भी इतना रखते हैं कि सभी कार्ड्स को लोहे के ट्रंक में भरकर रखा है ताकि घर का कोई सदस्य इनको बाद में बाहर नहीं फेंक दें. घर के किसी भी सदस्य को इन कार्ड्स को हाथ लगाने और छेड़ने कि इजाजत नहीं है. 95 साल के बुजुर्ग कन्हैयालाल बल्लाणी आज भी संभाल कर रखते हैं शादी के कार्ड.


50 हजार कार्ड का कलेक्शन
लाधूराम बल्लानी बताते हैं कि शुरुआत में एक अलमारी में कार्ड रखने लगे. धीरे-धीरे जैसे जैसे कार्ड बढ़ने लगे तो इन्हें बड़ी बड़ी लोहे की पेटियां खरीदनी पड़ी. वर्तमान में इनके पास 50 हजार से अधिक कार्ड हैं. करीब 50 साल पहले जब यह सफर शुरू किया तब से लेकर आज तक इन्होंने इनके घर आए शादी के एक भी कार्ड को नष्ट नहीं किया. बुजुर्ग बल्लाणी बताते हैं कि उनके पास 1960 से लेकर आज तक के जितने भी कार्ड आए वे सब उनके यहां मौजूद है. वे बताते हैं कि लोगों के पास उनकी शादी के कार्ड अब नहीं रहे मगर वे उनकी यादों को संजोए आज भी बैठे हैं.


पुराने सड़ गए कार्ड, लेकिन फेंकने की नहीं है परमिशन
लाधुराम बल्लानी के घर 50 से 60 साल पुराने कई कार्ड तो ऐसे हैं जो फट गए हैं जर्जर अवस्था में है, इसके बावजूद भी घर के किसी भी सदस्य को कार्ड फेंकने की परमिशन नहीं है. उनके बेटे चंद्र प्रकाश बल्लानी बताते हैं कि इतने कार्डों को संभालकर रखना मुश्किल होता है लेकिन हम सब परिवारजनों ने साथ दिया तो हो गए. लाधुराम बल्लाणी के घर के एक कमरे में हजारो शादी कार्ड बड़े बॉक्स, अल्मारिया और कपडे में बंधे पड़े है. उनके पोते सुमित बल्लानी बताते हैं कि हमने खुद ने पहली बार इन कार्डों को देखा है क्योंकि हमको भी इन कार्डों को छूने कि इजाजत नहीं है. सुमित ने बताया कि आज दादाजी ने आपके आने से आदेश दिया की बॉक्स को खोलो खोलो तब ये खुला अन्यथा हमको कभी भी इन बॉक्स और कार्ड आदि को खोलने की परमिशन नहीं है.


हर कार्ड पर भेजते हैं बधाई के पैसे
समाज में प्रचलन है कि शादी का कार्ड आने पर शादी वाले घर में बनावा या नैतरा (बधाई के पैसे) भेजना पड़ता है. लाधुराम बल्लानी ने एक भी शादी ऐसी नहीं छोड़ी जिसमें बनावा या नैतरा नहीं भेजा हो. भेजी गई राशि को उस शादी के कार्ड के पीछे नोट करके लिख दी गई. हर कार्ड के पीछे राशि लिखी हुई है. देश के किसी भी कोने से शादी का कार्ड यदि इन्हें मिला है तो ये वहां पर बनावा या नैतरा जरूर भेजते हैं. और कार्ड पर लिखते हैं ताकि परिवार को याद रहे. ऐसे अनूठे भक्त जो केवल मात्र भगवान के एक फोटो लगे होने पर छ्पा हुआ कार्ड तक सदियों से बाहर नहीं फेंक रहे हैं वे बिरले ही होते हैं.