Jalore: पहाड़ों के बीच छटा बिखेर रहा जागनाथ महादेव मंदिर, पांडवकालीन शिवालय भी यही है मौजूद
जालोर जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर नारणावास के ऐसराणा पर्वत पर स्थित श्री जागनाथ महादेव मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है.
Jalore: जालोर जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर नारणावास के ऐसराणा पर्वत पर स्थित श्री जागनाथ महादेव मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है.
नारणावास कस्बे के पूर्व की ओर साढ़े चार किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रृंखला की उपशाखा ऐसराणा पहाड़ पर सुनहरे रेतीले दोनों के बीच श्री जागनाथ महादेव मंदिर में विराजित है, यहां की प्राकृतिक सट्टा बरबस ही श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है. ऊंचे-ऊंचे विशाल हरे भरे पहाड़, रेत के बड़े-बड़े धोरे और उन पर उगी विभिन्न प्रकार की झाड़ियां आकर्षित करती हैं.
नारणावास के रूप सिंह राठौड़ ने बताया कि श्री जागनाथ महादेव मन्दिर के आस पास बहते हुए झरने, सदा बहार चलने वाली छोटी नदी जो स्थानीय श्रद्धालुओं में छोटी गंगा के नाम से जानी जाती है और आगुन्तको का मनमोह लेती हैं. जालोर जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर स्थित श्री जागनाथ महादेव मंदिर बहुत प्राचीन और ऐतिहासिक है.
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यह मंदिर कई वर्ष पहले मोरली गिरी महाराज ने बनवाया था, जिसे नया मन्दिर कहा जाता है. यहां से प्राप्त एक प्राचीन शिला लेख के अध्ययन से पता चलता हैं कि इस स्थल पर देवी का शिलालेख है और इस पर उत्कृत लेख मन्दिर की कहानी का गवाह है. यह लेख चौकोर स्तंभों के निचले भाग में स्थित है. मध्य भाग में मूर्तियां उत्कीर्ण है. स्तंभों के ऊपरी भाग में मन्दिर के शिखर की आकृति बनी हुई है.
इसके अलावा उदय सिंह के लेख है. स्तंभ लेखों में जिन पर स्त्री मूर्तियां बनी हैं, यह मूर्तियां स्थल देवी की जान पड़ती है. इस मंदिर का स्थापना काल 1182 ई. से 1207 ई. जान पड़ती है. इसी प्रकार वि. सं.1278 के एक शिला लेख में उदय सिंह को अपनी महारानी सहित प्रणाम मुद्रा में दिखाया गया है. इसके अलावा 1264 ई. का शिलालेख एक चबूतरे पर लगा हुआ है.
इस जागनाथ महादेव का शिवलिंग इतना प्राचीन हैं कि इस सफेद मार्बल की पट्टियों से ढक दिया गया हैं जिससे जलघात से शिवलिंग को बचाया जा सके. मन्दिर परिसर में कई शिलालेख और स्तम्भ रखे हुए है. कुछ तो 700 से 800 वर्ष पुराने बताए जाते है. ये सभी पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत ही महत्वपूर्ण है. शिवालय परिसर में सोनगरा जुझार बावसी का स्थान भी है, जिनको सबसे पहले पूजा करने का वचन दिया हुआ है, यह परिपाटी आज भी कायम है.
युद्ध में काम आए सोनगरा सिपाई
इस जागनाथ महादेव मन्दिर के साथ ऐतिहासिक दृष्टांत जुड़े हुए है. कहते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी के जालोर पर आक्रमण के समय सोनगरा वंशीय कुछ सैनिक लड़ाई में घायल होकर इस मंदिर में आए और शरण ली थी. वीर वीरमदेव के 140 सैनिक जिन्होंने यहां शरण ली थी उनका मुगल फौज ने पीछा किया और यहीं पर उनके बीच घमासान यद्ध हुआ जिसमें सोनगरा सैनिक शहीद हो गए.
इसलिए यहीं प्रतिष्ठित किए सोनगरा जुझार
कहते है कि सिपाहियों के शहीद होने की घटना के काफी समय बाद तपस्वी मोरली गिरी महाराज ने यहां मन्दिर निर्माण का कार्य शुरू करवाया लेकिन दिन भर बना निर्माण रात को गिर जाता था.
मन्दिर गिरने की घटना प्रतिरोज होने लगी तो योगिराज मोरली गिरी ने ध्यान लगाकर विघ्न उत्पन्न करने वालों का पता लगाया. इस पर पता लगा कि श्राद्ध और तर्पण नहीं होने से 140 सैनिकों की मुक्ति नहीं हुई हैं और वे मन्दिर के काम में रुकावट डाल रहे है. महाराज ने सैनिकों की आत्मा को आश्व्स्त किया की वे उनकी अस्थियों को हरिद्वार में विसर्जित कर तर्पण करेंगे. साथ ही उन्होंने ऐसा किया भी लेकिन एक शहीद की अस्थियां विसर्जित होने से रह गई.
मन्दिर निर्माण में फिर बाधा पहुंची तो योगिराज मोरली गिरी ने ध्यान लगाया जिसमें यह जानकारी हुई तब योगिराज ने कहा कि अब वापस हरिद्वार जाना सम्भव नही हैं लेकिन उनकी मूर्ति इस मंदिर के प्रांगण में स्थापित की जाएगी. साथ ही शिवालय की रक्षा करने की बात कही. इस पर सैनिक की आत्मा ने कहा कि इस मंदिर में सबसे पहले मेरी पूजा होनी चाहिए तो मैं मान जाऊंगा. इस पर योगिराज ने यह शर्त मान ली. इसके बाद आज भी सबसे पहले सोनगरा जुझार की पूजा की जाती है.
यहां पांडवकालीन शिवालय भी है
नारणावास के रूप सिंह राठौड़ ने बताया कि जागनाथ महादेव परिसर में एक और शिव मंदिर हैं जो पांडवों के काल का बताया जाता हैं, जो आज से 220 वर्ष पूर्व एक रेतीले धोरे के बीच से निकला था. इसे जूना महादेव मन्दिर के नाम से जाना जाता है.
वर्तमान श्री जागनाथ महादेव मन्दिर तत्कालीन मंहत सोमवार भारती महाराज के अथक प्रयासों से 1984 में संगमरमर मंदिर का पुननिर्माण करवाया गया था, जिसकी प्रतिष्ठा उनके बाद महंत गंगा भारती महाराज ने करवाई थी. श्री जागनाथ मन्दिर के महंत गंगा भारती महाराज सोमवार भारती महाराज के परम शिष्य थे, जो बड़े तपस्वी थे.
मन्दिर में एक प्राचीन बावड़ी भी है, जिसका जल कभी नहीं सूखता है. शिवरात्रि के साथ-साथ प्रति वर्ष दो मेलों का आयोजन होता है. इसमें जालोर, सिरोही, पाली और गुजरात के श्रद्धालु भाग लेते है. साथ ही सावन महीने में आने वाले प्रत्येक सोमवार को यहां मेले सा नजारा दिखता है. ब्रह्मलीन गंगा भारती महाराज के शिष्यों में से महंत महेंद्र भारती और विष्णु भारती मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सेवा करते है.
जागनाथ जी के नाम से रेलवे स्टेशन भी
जालोर और बागरा रेलवे ट्रेक के बीच नारणावास से भागली प्याऊ जाने वाले सड़क मार्ग पर जागनाथ जी के नाम से एक रेलवे स्टेशन भी आया हुआ है. श्रद्धालुओं और यात्रियों की सुविधा के लिए लोकल रेल गाड़िया रुकती है और रेल यात्री और जागनाथ महादेव आने वाले श्रद्धालु इसी जागनाथ स्टेशन से यात्रा करते है.
Reporter: Dungar Singh
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