Sanchore News: देश की आजादी की लड़ाई देख देशभक्ति जगी तो 1948 में सेना में भर्ती हुए. 1965 और 1971 की लड़ाई लड़ने वाले सूबेदार तेजाराम पूनिया 101 वर्ष की उम्र में 75वां गणतंत्रता दिवस मना रहे हैं. लड़ाई के उन लम्हों को याद कर आज भी उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. 


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सांचौर जिले के आकोली निवासी पूर्व सूबेदार तेजाराम पूनिया का जन्म देश की गुलामी की समय 1923 में हुआ था. 19 मार्च 1948 को भारतीय सेना में भर्ती हुए पूर्व सूबेदार तेजाराम ने जवानी में जब देश के आजादी की लड़ाई देखी तो उनके मन में भी देशभक्ती जगी. इसके बाद उन्होंने सेना में भर्ती होकर देश के लिए दो प्रमुख लड़ाइयां लड़ीं. 


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तेजाराम इन दिनों अपनी उम्र का शतक पूरा कर चुके हैं. अब उनकी उम्र 101 वर्ष है लेकिन उसके बावजूद तेजाराम के मन में न तो देशभक्ति का जज्बा कम हुआ है और ना ही हौसला क्योंकि तेजाराम पूनिया 1965 और 1971 की लड़ाई खुद लड़ चुके हैं. उन्होंने बताया कि 1965 की लड़ाई में लाहौर और अमृतसर के बीच में खेमकरण सेक्टर पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे. वे बताते हैं कि देश के लिए लड़ने के लिए जोश होता था. बिना डरे गोला बारूद के बीच दुश्मनों पर टूट पड़ते थे. जोश जज्बे के साथ लड़ाई लड़ते थे. उस समय सुविधाओं का अभाव होता था. 


पुराने समय में बिना सुविधाओं के भी मजबूत था जज्बा
तेजाराम पूनिया बताते हैं कि कश्मीर में उस समय नंगे पांव रहकर कई बार बिना कपड़े के दिन निकाले थे. सड़कों की सुविधाएं नहीं होती थी. बर्फीला इलाका था. फिर भी देश के लिए लड़ने का जोश था. तेजाराम पूनिया परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद के साथ 1965 की जंग में अपनी बहादुरी दिखा चुके हैं. लड़ाई में पांच अमेरिकी पैटेन्ट टैंक को तोड़ने के बाद में अब्दुल हमीद शहीद हो गए थे. उनकी वीरता को देखकर सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र प्रदान किया. युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि जहां भी हो देश के लिए मरने मिटने के लिए तैयार रहना चाहिए.