Surajgarh, Jhunjhunu news: राजस्थान के सीकर में बसे खाटू श्याम बाबा के मेले का आगाज 22 फरवरी से हो चुका है. वहीं, आज हम आपको उस निशाना की कहानी बताने जा रहे हैं, जो खाटूधाम के मंदिर के शिखर बंद पर 12 महीने लहरता है. वो निशान जिसका डंका बाबा के खाटूधाम की तरह पूरे विश्व में बजता है.  


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साथ ही, ऐसे बाबा श्याम के भक्त के बारे में भी बताएंगे, जिसने पूरे विश्व में सूरजगढ़ के निशान को ख्याति दिलवाई, इतना ही नहीं अंग्रेजी हुकूमत के भी छक्के छुड़ा दिए थे. श्याम भगत रूकमानंद की माने तो देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था. अंग्रेजी हुकूमत काल का दौर था, बाबा श्याम के प्रति भक्तों में खाटूधाम को लेकर आस्था बढ़ रही थी. आस्था के इस सैलाब से अंग्रेजी हुकूमत खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी. अंग्रेजी सरकार ने खाटू के श्याम दरबार के लिए बढ़ती आम श्रद्धा को देखते हुए आस्था को ठेस पहुंचाते हुए खाटू मंदिर में ताला लगा दिया. वहीं, दर्शन नहीं करने का फरमान भी जारी कर दिया. मंदिर के ताला लगाने के बाद अंग्रेजों के इस अत्याचार से दुखी भक्तों के पास अब बाबा के किसी चमत्कार का ही आसरा बचा था. 


मंगला भक्त ने हिला दी अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें
अंग्रेजी सरकार के आस्था पर ठेस पहुंचाने के बाद सूरजगढ़ निशान को लेकर खाटूधाम पहुंचा बाबा श्याम का वो सच्चा भक्त मंगलाराम है, जो अंग्रेजी हुकूमत की चेतावनी के बाद भी अपने गुरू गोर्धनदास का आदेश पाकर मंदिर की और बढ़ता गया. वहीं, बाबा श्याम का नाम लेकर मोर पंख जब ताले पर मारा तो बाबा श्याम की कृपा से उसी वक्त मंदिर पर लगा ताला चकनाचूर हो गया. ऐसा नजारा देख अंग्रेजी हुकूमत ने भी पैर पीछे कर लिए.


मान्यता बढ़ी, ध्वज लहराया मंदिर के शिखर पर
ऐसे नजारे और चमत्कार को देखकर अंग्रेजी हुकूमत ने तो पैर पीछे किए ही बल्कि श्याम भक्तों में सूरजगढ निशाना के प्रति आस्था बढ़ गई. माना जाने लगा कि सूरजगढ़ निशान में खुद बाबा श्याम चलते हैं. मंदिर कमेटी ने सूरजगढ़ के निशान को बाबा के मुख्य शिखर पर चढ़ाने का निर्णय लिया, जो परंपरा आज भी निभाई जा रही है. सूरजगढ़ के निशान को खाटू के श्याम दरबार में मुख्य शिखर पर चढ़ाया जाता है. यही एकमात्र निशान है, जो पूरे साल बाबा के मुख्य शिखर पर लहराता है. वहीं, पूरे विश्व में यही निशान हैं, जो वापस पदयात्रा के साथ सूरजगढ़ पहुंचता है. 


देश-विदेश शामिल होते हैं भक्त
इस चमत्कार के बाद सूरजगढ़ कि निशान का डंका देश में ही नहीं विदेशों में बजने लगा. सूरजगढ़ निशान यात्रा में देश-विदेशों से पदयात्री शामिल होते हैं. 10 से 15 हजार पद यात्रियों के साथ सूरजगढ़ निशान हर वर्ष फागुन में खाटू धाम के लिए रवाना होता है. 


सिर पर सिगड़ी रखकर चलती हैं महिलाएं
बता दें कि सूरजगढ़ से श्याम भक्त अनूठे अंदाज में निशान लेकर खाटूधाम पहुंचते हैं, जैसे-जैसे सूरजगढ़ से निशान लेकर पदयात्रा आगे बढ़ती है. वैसे-वैसे पैदल यात्रियों की संख्या में इजाफा हो जाता है. रास्ते में पैदल यात्रियों की सेवा करने वालों में भी होड़ मची रहती है. इस निशान के साथ महिलाएं भी अपने सिर पर सिगड़ी रखकर चलती हैं. इसके पीछे मान्यता है कि जिस महिला ने बाबा के सामने अपनी मुराद रखी और वह पूरी हो गई, तो वह पदयात्रा में पूरे रास्ते सिर पर सिगड़ी रखकर पहुंचती है और बाबा को अर्पित करती है. ये महिलाएं पूरे रास्ते बाबा के भजनों पर नाचते-गाते श्रद्धाभाव के साथ पहुंचती हैं. फागुन शुक्ला को बाबा के मंदिर के मुख्य शिखर पर निशान चढ़ाया जाता है.


फागुन शुक्ला द्वादशी को मंदिर पर लहराएगा सूरजगढ़ निशान
भगत रूकमानंद सैनी की माने तो सूरजगढ़ से दो निशान खाटू धाम के लिए रवाना होते हैं. इसमें एक निशान तो 26 फरवरी फागुन की छठ को रवाना होगा. वहीं, दूसरा निशान 27 फरवरी फागुन की साते को रवाना होगा. उन्होंने बताया कि 374 निशान खाटू धाम में चढ़ाए जा चुके हैं. वहीं, 375वां निशान फागुन शुक्ला द्वादशी 4 मार्च को खाटू मंदिर पर विधिवत पूजा-अर्चना के साथ चढ़ाया जाएगा. 


152 किलोमीटर की यात्रा कर पहुंचते हैं खाटू धाम
फागुन शुक्ला छठ व साते को भक्त श्रद्धालु निशान के साथ नाचते-झूमते सूरजगढ़ से रवाना होकर 152 किलोमीटर की यात्रा तय कर सूरजगढ़ से सुल्ताना, गुढ़ा, गुरारा व खाटूधाम पहुंचते हैं. निशान पद यात्रियों के लिए रास्ते भर में मेडिकल कैंप, भोजन के भंडारे आदि की व्यवस्थाएं भी की जाती है. 


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