राजस्थान की इस दरगाह के गुंबद में निकलती थी शक्कर, अजान के साथ होती है आरती, चढ़ता है नारियल
नरहड़ में स्थित शक्करबार पीर बाबा की दरगाह की मजार पर चादर, कपड़े, मिठाइयां, नारियल चढ़ाया जाता है. इसी के साथ यहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं और लंगर-भंडारे लगाते हैं.
Jhunjhunu: राजस्थान के झुंझुनूं जिले के चिड़ावा से 10 कीलोमीटर दूर शक्करबार पीर बाबा की दरगाह स्थित है, जहां एकता की एक अनोखी मिसाल देखने को मिलती है, यहां सभी धर्म के लोग पूजा-अर्चना करने आ सकते हैं. इसी के चलते यहां 750 सालों से से भी ज्यादा पुराने समय से कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशाल मेला लगता है और सभी धर्म के लोग मिलकर जन्माष्टमी मनाते हैं. यह जन्माष्टमी मेला 3 दिन लगता है.
दरगाह की गुंबद से निकलती थी शक्कर
नरहड़ में स्थित दरगाह के बारे में लोगों का कहना है कि किसी समय में इस दरगाह की गुंबद से शक्कर बरसती थी, इसलिए यह शक्करबार बाबा के नाम से जानी जाती है. शक्करबार शाह सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के समय के सिद्ध पुरूष थे और शक्करबार शाह ख्वाजा साहब के 7 साल बाद अल्हा को प्यारे हो गए थे.
मजार पर चढ़ाया जाता है नारियल
दरगाह में जायरिन मजार पर चादर, कपड़े, मिठाइयां, नारियल चढ़ाया जाता है. जन्माष्टमी पर मेला पीढ़ी दर पीढ़ी लगता आ रहा है. जानाकारी के अनुसार, 1947 में भारत से जब पाकिस्तान अलग हो रहा था जब पूरे में देश में तनाव का महौल था, लेकिन शक्करबार बाबा की दरगाह और नरहड़ में शांति थी.
अजान के साथ-साथ गूंजती है आरती
नरहड़ में स्थित शक्करबार पीर बाबा की दरगाह में अजान के साथ- साथ आरती भी गूंजती है और ये देश की पहली दरगाह है, जहां जन्माष्टमी पर मेला लगता है. इसी के साथ इस मेले में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर कृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं.
जन्माष्टमी पर सजती है दरगाह
शक्करबार पीर बाबा की दरगाह में कृष्ण जन्माष्टमी मन्नते मांगने के बाद पूरी होने पर देशभर से लोग जियारत और पूजा-पाठ करने आते हैं. वहीं, जन्माष्टमी के दिन कव्वाली का आयोजन किया जाता है और मुस्लिम-हिंदू भाई मिलकर लंगर और भंडारे लगाते हैं. इसी के साथ कृष्ण जन्माष्टमी पर दरगाह को सजाया जाता है और छप्पन भोग की झांकी भी सजाई जाती है.