Jhunjhunu: झुंझुनूं के वाल्मीकि बस्ती के अनिल डुलगच जब सात साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया. मां गीता देवी के सामने तीन बच्चों की परवरिश करने की जिम्मेदारी आ गई. ऐसे में गीता देवी ने निजी छात्रावास में सफाईकर्मी का काम पकड़ा और घर चलाना शुरू किया. उस समय अनिल के बड़े भाई नरेंद्र की उम्र 11 साल की थी. तीनों बच्चों की पढ़ाई और घर चलाने में दिक्कत आने लगी तो नरेंद्र ने पढ़ाई छोड़कर मजदूरी करना शुरू कर दिया. मां और बड़े भाई ने मजदूरी कर छोटे अनिल को पढ़ाया. मां ने बेटे को एकेडमिक शिक्षा ही नहीं दिलवाई बल्कि इंसान बनना भी सिखाया. मां ने उसे अभावों से लड़कर अपनी मंजिल हासिल करने की सीख दी.


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उसी के परिणाम स्वरूप मां का यह बेटा और बड़े भाई का लाडला स्वायत्त शासन विभाग में जेईएन बन गया. मां के सपने को पूरा करने वाले अनिल डुलगच ने हाल ही में राज्य कर्मचारी चयन आयोग की ओर से करवाई गई स्वायत्त शासन निकाय की जेईएन भर्ती परीक्षा में सफलता हासिल की है. अनिल जब 7 साल का हुआ तब पिता किशनलाल डुलगच का निधन हो गया. परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा. इसके बाद अनिल की मां गीता देवी ने परिस्थितियों को संभाला और शहर के एक निजी छात्रावास में सफाई का काम शुरू किया. सफाई से जो कुछ मिलता, उससे अपने दोनों बेटों को पढ़ाने लगी लेकिन महंगाई और स्कूलों की मोटी फीस ने रात की नींद और दिन का सुकून छीन लिया.


तब अनिल का बड़ा भाई नरेंद्र 11 साल का था. वह मां की परेशानियों को समझने लगा था. या यूं कहें कि मां ने उसे घर के हालातों से अवगत कराना शुरू कर दिया था. इसलिए इसके लिए अनिल के बड़े भाई नरेन्द्र ने पढ़ाई छोड़ काम में मां का हाथ बंटाना शुरू कर दिया. घर की परिस्थितियों को देखकर अनिल का बड़ा भाई नरेन्द्र मां के साथ काम पर जाने लगा. ताकि अनिल पढ़ सके. अनिल को एक सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाया. 12वीं पास करने के बाद अनिल को आईआईटी की परीक्षा के लिए बड़ी मुश्किल से फार्म फीस का जुगाड़ हो पाया. लेकिन मां की हिम्मत के सहारे अनिल ने इस परीक्षा को पास कर राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान कुरुक्षेत्र से बीटेक की डिग्री हासिल की.


ये ही प्रदीप कुमार की कहानी


इसी तरह सूरजगढ़ ब्लॉक के लाडूंदा गांव के प्रदीप कुमार की कहानी भी अनिल जैसी ही है. प्रदीपकुमार जब महज एक साल के थे, तब पिता धर्मवीरसिंह का बीमारी से निधन हो गया था. उस समय प्रदीप की मां नीलम देवी के सामने तीन बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई. इसलिए नीलम ने खेत में मेहनत करनी शुरू की. उसके जज्बे को देखकर सास-ससुर, देवर-देवरानी और जेठ-जेठानी ने भी साथ दिया. नीलम का सपना सिर्फ बच्चों को सक्सेस करना था. इसके लिए उसने संयुक्त परिवार में रहकर खेत की जिम्मेदारी उठाई. 


तब परिवार ने उसके बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठाया. राजस्थान कर्मचारी चयन आयोग द्वारा स्वायत्त शासन विभाग के लिए कनिष्ठ अभियंता प्रतियोगी परीक्षा में सफल रहे प्रदीपकुमार का कहना है कि जिन्दगी में कामयाबी आसानी से नहीं मिलती है. इसके लिए कड़ी मेहनत के साथ बुलंद हौंसला होना सबसे बड़ी जरूरत है. जिन्दगी के सबसे कठिन दौर से गुजरने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी. परिवार की मदद से कामयाबी की नई कहानी लिखी है. कामयाब होने के लिए कड़ी मेहनत जरूरी है.


 प्रदीप की मां नीलम देवी कहती हैं, कि उनके निधन पर एक बार तो पूरी तरह से टूट गई थी. कैसे तीन बच्चों की परवरिश कर पाऊंगी, लेकिन परिवार ने साथ दिया. उनके संबल से संभली और बच्चों की खातिर मेहनत करने लगी. मेरा सिर्फ एक ही ध्येय था कि बच्चों को कामयाब होते देखना है. इसके लिए मैंने दिन रात खेत में मेहनत की. परिवार के सहयोग से बच्चों को पढ़ाया. इसी का परिणाम है कि आज बड़ा बेटा आईबी में इंस्पेक्टर बन गया और अब यह छोटा जेईएन बन गया.


Reporter-Sandeep Kedia


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