Udaipurwati, Jhunjhunu News: करीब 66 साल तक सेना से पेंशन लेने वाले प्रदेश के एकमात्र सेवानिवृत्त फौजी बोयतराम डूडी का निधन हो गया. झुंझुनूं के भोड़की गांव निवासी बोयतराम करीब 100 वर्ष के थे. वे द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल हुए. वहां से लौटने के बाद सेना में भर्ती हुए. सेना से 1957 में सेवानिवृत्त हो गए, तब उन्हें पहली पेंशन के रुपये में 19 रुपए मिले थे. इसमें लगातार बढ़ोतरी होती रही. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हाल ही में उन्हें आखिरी पेंशन के रुपये में 35,460 रुपये मिले. पिछले करीब 66 साल तक पेंशन लेने वाले वे प्रदेश के एकमात्र सेवानिवृत्त फौजी थे. संभवतया देश के भी एकमात्र फौजी हैं. अब उनकी 92 वर्षीय पत्नी चंदा देवी को आजीवन इस पेंशन की आधी राशि मिलती रहेगी. 


1923 में जन्मे बोयतराम डूडी 1942 में ब्रिटिश फौज में राजरिफ में भर्ती हुए थे. दूसरे विश्व युद्ध में शामिल होकर बहादुरी का परिचय दिया. इसके लिए उन्हें चार सेना मेडल मिले थे. इस युद्ध में बटालियन के 80 फीसदी सैनिक शहीद हो गए थे. ब्रिटिश राज की तत्कालीन भारतीय आर्मी ज्वॉइन की थी. उनके पोते मुकेश कुमार ने बताया कि उस समय नीमकाथाना में भर्ती हुई थी, जहां वे गांव से पैदल ही पहुंचे थे. बोयतराम ने लीबिया और अफ्रीका में छह मोर्चों पर जंग लड़ी. यहां से लौटने के बाद उन्हें भारतीय आर्मी में शामिल कर लिया गया. आर्मी से वे 1957 में रिटायर हुए, तब से वे लगातार पेंशन ले रहे थे. 


बहादुरी के लिए मिले थे चार सेना मेडल
66 साल से लगातार सैनिक कोटे से पेंशन लेने का अनूठा रिकॉर्ड बनाने वाले बोयतराम डूडी को दूसरे विश्व युद्ध में बहादुरी के लिए चार सेना मेडल मिले थे. उनका कई बार ग्रामीणों और सेना के अधिकारियो की ओर से सम्मान किया गया था. उनको ग्राम गौरव अवार्ड देकर सम्मानित किया गया. 21 जुलाई 1923 को जन्मे बोयतराम डूडी जिले के सबसे अधिक उम्र दराज फौजी थे. 1942 में जब वे 19 वर्ष के हुए तब ब्रिटिश सेना में भर्ती हो गए थे. देश की आजादी के बाद वे सेना में शामिल हो गए थे. सन् 1957 में वे सेना से रिटायर हुए. उस समय उनकी पेंशन 16 रुपये मासिक थी. अभी उनको सेवानिवृत्त सैनिक के रुप में 35 हजार 460 रुपये मिल रहे थे. 


शतायु होने के बाद भी युद्ध के किस्से सुनाते थे डूडी
बोयरात डूडी इस उम्र में भी स्वस्थ थे. सेना में भर्ती होने से लेकर द्वितीय विश्व युद्ध में लड़ने और वहां भारतीय सैनिकों के शहीद होने से लेकर युद्ध के किस्से सुनाते थे. उस दौरान युद्ध में लड़े शेखावाटी के जवानों के बारे में भी बताते थे. वे बताते थे कि युद्ध के बाद वापस स्वदेश लौटने के बाद वे महात्मा गांधी और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिले. उन्होंने ही उनकी बहादुरी के लिए उन्हें भारतीय आर्मी में शामिल होने के लिए कहा.


100 साल की उम्र में भी खुद करते थे अपने काम
100 वर्षीय बोयतराम डूडी इस उम्र में भी स्वस्थ थे और अपने दैनिक दिनचर्या के काम खुद करते थे. उनके पैतृक गांव भोड़की में उनका अंतिम संस्कार किया गया. उनके बेटे भरताराम व मुकंदाराम ने मुखाग्नि दी. उनके 4 पोते धर्मवीर, सत्यप्रकाश, मुकेश व सुरजीत है और दो पड़ पोते हैं. उनकी अंतिम यात्रा में गणमान्य लोग रिश्तेदार शामिल हुए. 


यह भी पढ़ेंः राजस्थान के बाद देश में इस जगह बनेगा खाटूश्याम का मंदिर, खुदाई में मिली मूर्ति तो उमड़े भक्त