Jhunjhunu: झुंझुनूं के खेतड़ी कस्बे में वाराही देवी का अनूठा मंदिर है.जहां पर मां वार्ताली वाराही के अवतार में मनुष्य के शव पर विराजमान हैं, मान्यता है कि यहां के लोग खेतड़ी की कुलदेवी के चरणों में धोक लगाकर ही शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं.मंदिर के पुजारी ने बताया कि मंदिर की स्थापना करीब 500 साल पहले मेघ गर्जना के दौरान वार्ताली वाराही हर रूप में माता की प्रतिमा प्रकट हुई थी. उन्होंने बताया कि वाराही माता के 2 स्वरूप होते हैं.


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 पहला स्वरूप वाराही जो शांत स्वरूप की घोड़ी पर सवारी करती है तथा दूसरा मां वार्ताली वाराही जिसमें माता विकराल रूप में भैंस की सवारी करते हुए मानी जाती हैं. मंदिर में स्थापित वाराही माता मनुष्य के शव पर विराजमान है. इसकी स्थापना से पहले सामने शिव की प्रतिमा स्थापित करवाई गई.


खेतड़ी में कोई भी मांगलिक कार्य वार्ताली वाराही मां की पूजा के बिना शुरू नहीं किया जाता.नवरात्र में यहां विशेष आयोजन होते हैं. छठ और महाष्टमी पर यहां मेले जैसा माहौल रहता है.


रियासतकाल से राजा महाराज इनकी चौखट पर शीश नवाते आए हैं. खेतड़ी के राजा भोपालसिंह अपना हर कार्य शुरू करने से पहले मां के चरणों में धोक लगाने आते थे.खेतड़ी के अंबे मार्केट में स्थित मां वाराही देवी खेतड़ी निवासियों की आराध्य देवी मानी जाती है.यहां के व्यापारी व ग्रामीण अपना कार्य मां वाराही देवी के चरणों में धोक लगा कर ही शुरु करते हैं. पहले यहां जंगल था. जो धीरे-धीरे आबादी में परिवर्तित हो गया. 


खेतड़ी वासियों की आराध्य देवी मां वाराही देवी की पूजा अर्चना के साथ ही खेतड़ीवासी अपना कार्य शुरू करते हैं. शादी विवाह या अन्य मांगलिक कार्यों में सबसे पहले मां वाराही देवी के मंदिर में पूजा पाठ व प्रसाद चढ़ाया जाता है.यहां के निवासियों की भी दिन की शुरुआत मां वाराही के दर पर धोक लगाकर ही होती है.


खेतड़ी के माता वाराही की स्थापना नवरात्र के छठ के दिन हुई मानी जाती है.इसलिए यहां छठ पूजन का विशेष महत्व है.अष्टमी व चतुर्दशी को ही माता वाराही की विशेष पूजा होती है. अष्टमी को वाराही देवी मंदिर में मेले जैसा माहौल रहता है.दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं.


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