लूणी में जर्जर भवन में पढ़ाई करने को मजबूर हैं मासूम, स्कूल में भरा पानी
सरकार एक तरफ सुविधायुक्त विद्यालय भवन और स्मार्ट क्लास जैसी सुविधाओं को बढ़ावा दे रही है तो दूसरी ओर राजेश्वर नगर के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में ज्योति स्कूल के कमरों की स्थिति नाजुक है.
Luni: शिक्षा व्यवस्था बेहतर करने के लिए शासन नित नए प्रयोग कर सुविधायुक्त विद्यालय भवन, स्मार्ट क्लास जैसी सुविधाओं को बढ़ावा दे रहा है, लेकिन धवा पंचायत समिति के ग्राम पंचायत मैलबा में स्थित राजेश्वर नगर के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में ज्योति स्कूल के कमरों की स्थिति नाजुक है. ग्रामीण स्तर के शासकीय विद्यालयों में ये सुविधाएं फिलहाल कोसों दूर हैं. आधुनिक शिक्षा तो दूर की बात बच्चों के बैठने के लिए उपयुक्त भवन ही उपलब्ध नहीं है.
मरम्मत नहीं कराई जा रही
उच्च प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है, लेकिन स्कूलों के जर्जर भवनों की मरम्मत का कार्य नहीं कराया जा रहा है. विद्यालयों में शिक्षण सत्र शुरू हो गया है. ऐसे में बच्चे स्कूलों के जर्जर भवन में पढ़ने के लिए मजबूर हैं. स्कूलों के खस्ताहाल भवनों को देख अभिभावक भी बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं. इसका असर स्कूलों में होने वाले नामांकन पर भी पड़ रहा है. ग्राम पंचायत के राजेश्वर नगर में स्थित प्राथमिक विद्यालय का 22 साल से अधिक पुराने कमरे जर्जर हो गये हैं. स्कूल की दीवारों में जगह-जगह दरार पड़ गई हैं. दीवारों का प्लास्टर उखड़ रहा है. वर्षाकाल में दीवारों में सीलन हो जाती है. जर्जर भवन से दुर्घटना की आशंका बनी रहती है.
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जान जोखिम में डालने को विवश
विधार्थी अभिभावक पुनाराम ने बताया कि भवन की पुरानी छत में लगी फर्शियां आपस मे ज्वाइंट छोड़ चुकी हैं. बारिश होने पर कभी भी गिरने की आशंका बनी हुई है. दीवारों में भी दरारें पड़ चुकी हैं और प्लास्टर हाथ लगाने भर से उखड़ रहा है. बारिश के दिनों में सीलन के कारण कमरों में नमी और उमस महसूस किया जा सकता है. गांव के छोटे परिवार के बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ने के लिए विवश हैं. शिक्षकों ने इस दिशा में कई बार मांग की है, परंतु ध्यान नहीं दिया जा रहा है. बच्चों के साथ शिक्षक भी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं. पालकों ने नया स्कूल भवन बनाने की मांग की है.
सभी विद्यार्थी एक ही गैलरी में पढ़ने को मजबूर
यह विद्यालय आठवीं तक है, जिसमें करीब 40 विद्यार्थी के नामांकन हैं. विद्यालय की कमरों की हालत जर्जर होने के के कारण कक्षा एक से आठवीं तक के सभी विद्यार्थी एक ही छत के नीचे बैठकर बड़े अध्ययन कर रहे हैं, साथी कक्षा एक से आठवीं तक के विद्यार्थियों को अध्ययन करवाने के लिए सिर्फ 3 शिक्षक के भरोसे यह स्कूल चल रही है जिसके तहत सभी विद्यार्थियों को एक साथ बिठाकर अध्ययन करवाने को मजबूर हो रहे हैं शिक्षक.
स्कूल के चारों तरफ फैला रासायनिक पानी
स्कूल के चारों और रासायनिक युक्त पानी फैलने से मासूम बच्चों को उच्च प्राथमिक तक पढ़ाई ग्रहण करने के लिए 1 किलोमीटर तक रासायनिक युक्त पानी में से गुजर कर आना पड़ रहा है. इसी तहत बच्चों के पैरों में छाले फुंसियां होनी शुरू हो गई है इसी के तहत विद्यालय में बना पीने के लिए पानी के टाके में भी रासायनिक आ सुका पानी आ चुका है और उस पानी को पीने के लिए विद्यार्थी और शिक्षक मजबूर हैं बच्चों ने प्रशासन से अपील की है कि जल्द से जल्द इस समस्या को दूर करे.
मौत के साए में संवार रहे भविष्य
स्कूल की बिल्डिंग और छत जर्जर अवस्था में है. ऐसे में कभी और किसी वक्त भी हादसा हो सकता है. लेकिन स्कूल के मासूम छात्र भ्रष्ट शिक्षा विभाग के आगे बेबस होकर मौत के साए में भविष्य संभाल रहे हैं. हालांकि स्कूल के अध्यापकों द्वारा शिक्षा विभाग के अफसरों को कई बार जर्जर बिल्डिंग के बारे में अवगत भी कराया गया, लेकिन शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अफसरों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. लिहाजा समय रहते शासन ने कोई ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में बड़ी घटना हो सकती है. जिसका खामियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ेगा.
अनदेखी से हो सकता है बड़ा हादसा
उधर, प्राथमिक विद्यालय की जर्जर इमारत होने की वजह से कभी भी हादसा हो सकता है. जिसका खामियाजा जर्जर इमारत की छत के नीचे पढ़ रहे मासूम छात्रों को भुगतना पड़ सकता है. लेकिन, पीलीभीत जिले के भ्रष्ट शिक्षा विभाग के अफसरों को इसकी कोई परवाह नहीं है. इसी वजह से जर्जर छत के नीचे मासूम छात्रों के जीवन में मौत का साया लगातार मंडरा रहा है. स्थानीय ग्रामीण और विद्यार्थियों का कहना है कि अगर प्रशासन और जनप्रतिनिधि ने जल्द ही समस्या पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं किया तो कभी भी हो सकता है बड़ा हादसा प्रधानाध्यापक पूनाराम ने बताया कि स्कूल की मरम्मत के लिए विभाग के अधिकारियों समेत जनप्रतिनिधियों को भी अवगत करवा चुके हैं, लेकिन अभी कोई हल नहीं निकल पाया है, इसलिए भवन की इस स्थिति में भी बच्चों को कक्षों में बिठाकर पढ़ाना मजबूरी है.
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